त्रिभुवनेश भारद्वाज जिंदगीसबका हक हैअगर कुछ रुपयों की खातिरदवाई वाला दवाई छुपा लेअस्पताल वाला बेड छुपा लेऑक्सीजन वाला ऑक्सीजनएम्बुलेंस...
साहित्य
‘जीवन के दुःख-दर्द हमारे बीच ही हैं और खुशियां भी हमारे करीब।ज़रूरत इन्हें देखने और महसूस करने की है। सड़क पर चलते हुए जब किसी आदिवासी के फटे पैर दिखते हैं तो भीतर का कवि जाग जाता है।उस पीड़ा को वही समझ सकता है जो उस आदिवासी के प्रति संवेदना रखता हो।‘ इन संवेदनाओं को अपने सक्रिय जीवन में कई बार अभिव्यक्त करते रहे हिन्दी और मालवी के कवि, डाॅ. देवव्रत जोशी आम जनता की पीड़ा, दुःख-दर्द से, कलम और देह से उसी तरह जुड़े रहे जिस तरह कोई शाख पेड़ से जुड़ी रहती है। पाॅच दशक तक निरंतर लिखते हुए देवव्रत जी ने साहित्य के कई उतार-चढ़ाव देखे। वे छंदबद्ध रचना छंदमुक्त दौर के सर्जक/साक्षी रहे। उन्होंने गीत-नवगीत और नई कविताएॅं लिखी। उनकी कलम जब भी चली नई परिपाटी को गढ़ती चली गई। ज़िन्दगी से लम्बी जद्दोजहद के...
डॉ. नीलम कौर गीत, गजल गुलाबी ह्वै गईकविता भी थोड़ी सयानी ह्वै गई,पी कर गम-खुशी की भांगकथा -कहानी शराबी...
हरमुद्दारतलाम, 22 मार्च। शहर के उभरते शायर दिनेश चंद्र उपाध्याय "दीपक" द्वारा होली मिलन उत्सव एवम् साहित्य सम्मान समारोह का...
🔲 आशीष दशोत्तर अपनी अवस्था में ‘आनंद‘ की अनुभूति और व्यवस्था में ‘विश्वास‘ बनाए रखने के लिए निरीक्षण आवश्यक होता...
मंजुला पांडेय भाल में सुधाकर जिसके साजे। कर न्यून शुभ्रांशु वेग को सृष्टि संरक्षण के उद्देश्य हित में ...
🔲 आशीष दशोत्तर समय कब गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता। लगता है जैसे कल ही की बात हो।...
संजय परसाई 'सरल' की कविता 'समर्पण' मैं तुम्हें नहीं दे पायावो तमाम खुशियां जिनके सपनेकभी संजोये थे तुमने दिनभर...
आशीष दशोत्तर जो दिल न कह सके, वह राज़े-दिल आंसू कह जाते हैं। आंसू का पलना, आंसू का...