कोरोना वायरस : शहरवासियों की समझदारी व मां की कृपा ने नहीं बढ़ने दिया संक्रमण, वरना जिला प्रशासन तो शुरू से ही है हाबला गाबला
🔲 लॉक डाउन के 8 दिन और जिला प्रशासन
हरमुद्दा
रतलाम, 29 मार्च। रविवार को हुए जनता कर्फ्यू के बाद लॉक डाउन 8 दिनों में जिला प्रशासन प्रशासन का रवैया तो हाबला गाबल ही रहा है। एक भी दिन ऐसा नहीं रहा कि गलती नहीं की हो। यह तो मां की कृपा और शहरवासी समझदार है कि उन्होंने अपने आप पर पूरी तरह नियंत्रण किया। आपे से बाहर नहीं गए। अन्य शहरों जैसी स्थिति निर्मित नहीं हुई। फिर भी जिला प्रशासन सफलता का सेहरा तो अपने माथे ही बनवाने को तत्पर है। जबकि उसने हर दिन कोई न कोई गलती की है।
शहरवासियों को किराना के थोक व्यापारी लूट रहे हैं, लेकिन अनुभवहीन जिला प्रशासन को मूल्य पर नियंत्रण की सूझबूझ नहीं रही। जबकि ऐसे दौर में सबसे के पहले कैपिंग जरूरी थी। उनका ध्यान केवल तो मास्क और सेनीटाइजर पर रहा जबकि इससे ज्यादा जरूरी खाद्य सामग्री थी। उस पर कोई नियंत्रण नहीं रहा। नतीजतन शहर के लाखों लोग ठगी का शिकार हो गए हैं और जिला प्रशासन आंख मूंदे है। होम डिलीवरी के लिए किराना व्यापारियों के नंबर तो दे दिए लेकिन लिमिट तय नहीं की गई कि कम से कम कितने का सामान होम डिलीवर होगा। ताकि आम जनता को पता रहे। हरमुद्दा के पाठक ने बताया कि किराना दुकान पर जब फोन लगाया गया और और सामग्री की सूची दी गई तो उनका कहना था कि कम से कम ₹2000 का बिल होगा तो ही होम डिलीवरी होगी। किराना व्यापारी की यह शर्त थी।।
बस उनकी नजर में सैनिटाइजर और मास्क के ही मुख्य थे। इधर शहरवासियों को थोक किराना व्यापारियों ने जी भर कर लूट लिया। उन पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई और मास्क के अधिक रुपए लेने पर कार्रवाई हुई। समाजसेवी संस्थाओं को गरीबों को भोजन देने से मना कर दिया, जब प्रशासन से व्यवस्था नहीं संभली हों पुनः समाज सेवकों बुलाया और व्यवस्था संभालने की बात कही।
पहली गलती रविवार की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के बाद रविवार 22 मार्च को जनता कर्फ्यू पूर्णता सफल रहा, लेकिन रात 8:30 बजे पुलिस कंट्रोल रूम पर पत्रकार वार्ता आयोजित की गई। जो कि औचित्यहीन थी। क्योंकि जो बातें प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताई गई, वह तो जनसंपर्क कार्यालय द्वारा 1 घंटे पहले ही प्रसारित कर दी गई थी फिर ऐसे संक्रमण के दौर में समस्त मीडियाकर्मियों को क्यों एक जगह इकट्ठा कर लिया? यह अनुभवहीनता नहीं तो और क्या है?
बिना तैयारी के छूट
जब प्रधानमंत्री जी ने 24 तारीख की रात को 8:00 बजे देश के नाम संबोधन में 21 दिन के लॉक डाउन की बात कही। उसके बाद से प्रशासन तो और भी हाबला गाबला हो गया। छूट के दौरान क्या-क्या तैयारी करनी होती है, वह बिल्कुल नहीं की? शहरवासी दुकानों पर उमड़ पड़े खरीदारी के लिए इस दौरान संक्रमण का कोई ख्याल नहीं रखा गया।
26 मार्च को अगले दिन फिर सूझ पड़ी तो दूरी चक्र बना दिए। लोगों से इनका पालन करवाया गया। लेकिन दुकानदारों ने तो अपनी मनमानी कि उन्होंने दूरी चक्र का पालन नहीं करवाया नतीजतन दुकानों पर फिर भी भीड़ रही।
कलेक्टोरेट में रात को बैठक ली, सुबह परिचय पत्र बनाएं और शाम को ले लिए
लॉक डाउन की छूट के दौरान आमजन को कोई दिक्कत ना हो इसके लिए 26 मार्च की रात को कलेक्ट्रेट में शहर के समाजसेवियों की बैठक आयोजित की और उन्हें बताया गया कि लोगों को घर में रहने की सीख दे और घूमने ना दें। सभी के परिचय पत्र बनाए जाएंगे। ताकि उन्हें कोई भी परेशान नहीं करेगा। 27 तारीख सुबह 6.30 बजे सभी लोग अपने-अपने थाना क्षेत्र में गए और उनके परिचय पत्र बनाए। समाजसेवी परिचय पत्र लेकर अपने अपने क्षेत्र में गए और कार्य करने लगे। लेकिन शाम को थाने से सूचना मिली कि वे अपने परिचय लेकर आएं। जब सभी लोग थाना में गए तो उन्हें कहा गया कि अपने परिचय पत्र वापिस दे दें। आपको कार्य करने की कोई जरूरत नहीं है। क्यों नहीं करना है ? इसका कोई जवाब उनके पास नहीं था
क्यों हुआ ऐसा पता नहीं?
27 मार्च को कलेक्टर के अनुमोदन से आदेश निकाला की जिले के सभी निजी क्लीनिक प्रतिबंधित रहेंगे। लेकिन इसी दिन फिर एक आदेश निकला कि क्लीनिक प्रतिबंधित नहीं रहेंगे। अब यह क्या था? समझ से परे है। आखिर जिला प्रशासन करना क्या चाहता है और कर क्या रहा है? साथ में लेकर चलने की रणनीति में जिला प्रशासन की कोई रुचि नहीं है।
बस सेनीटाइज थी यात्रियों की स्क्रीनिंग नहीं की
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद 27 मार्च को शहरभर में आधी रात तक अलाउंस मेंट करवाया कि जो भी लोग लॉक डाउन के दौरान रतलाम में फंस गए हैं वे अपने-अपने जिले या राज्य में जा सकते हैं। इसके लिए महू नीमच स्थित बस स्टैंड पर सुबह 9:00 बजे सभी एकत्र हो जाए। शनिवार को बस स्टैंड पर काफी भीड़ थी। इस दौरान जिला चिकित्सालय का कोई भी चिकित्सकीय दल मौजूद नहीं था कि यात्रियों की स्क्रीनिंग की जाए, स्वास्थ्य परीक्षण हो, बस बिना किसी पूर्व नियोजित तरीके से सबको बसों में सवार कर भेज दिया गया। हो सकता है इसमें कोई कोरोना वायरस से पीड़ित हुआ हो। लेकिन जिला प्रशासन ने इस मुद्दे की ओर भी ध्यान नहीं दिया।
एक मुफ्त कर दिया शहर से निकाला
जहां माल में स्क्रीनिंग की जा रही है, उसके बाद अंदर जाने दे रहे हैं। दुकानों के आगे दूरी चक्र बनाए हैं। और बस में 40 से 50 यात्रियों को सवार करके भेज दिया 8 घंटे की यात्रा पर। यह भी बड़ा खतरा प्रशासन ने लिया। जबकि इसके लिए भी क्षेत्र व सेक्टर वाइज अलाउंस मेंट करके लोगों को 100 से 200 के हिसाब से एकत्र करते और पूरा परीक्षण के उपरांत समय के अनुसार भेजते। मगर एकमुश्त शहर से निकाला कर दिया गया।