रतलाम स्थापना दिवस पर विशेष : “मैं रतलाम हूं”

 संजय परसाई ‘ सरल ‘

पहचान
हर कोई चाहता है
तभी तो डॉ. प्रदीप की कलम से
मुझे कहना पड़ा
मैं रतलाम हूं।

मुझे संवारने में
जां तक लगा दी
रतनसिंह से लेकर
रणजीत सिंह
और सज्जन सिंह ने
तभी तो
मेरे गुलशन में खिले हैं अनगिनत फूल
गुलाब चक्कर
झाली तालाब
सूरजपोल
और साक्षात
मेरे जीवंत होने का
उदाहरण पेश करते
रणजीत विलास पैलेस के रूप में

किसी ने कोताही नही बरती
मुझे पहचान दिलाने में
आज भी निकलती है
शिव सवारी रत्नेश्वर से
आज भी होती है
चारभुजा में आरती
और माँ कालिका के दरबार मे
दुर्गोत्सव

सभी ने कोशिश की
मुझे पहचान दिलाने की
और इसे बरकरार रखने की।

मुझे सुखद अनुभूति होती है
जब अजहर हाशमी करते है
गीता और रामायण पर बात
और युसूफ जावेदी करते है
चाँद से आगे जाने की बात।
डॉ. जलज के
रोशनी उगाने का जतन
अपार सुख देता है
और यह जतन
और सार्थक होता दिखाई देता है
जब दुर्गा शर्मा भरते है अपनी तूलिका से रंग

आशीष के रूप में अंकुरित हो रही है
नई पौध
सभी मिलकर कर रहे हैं
एक सीधा सरल प्रयास
मुझे पहचान दिलाने का।

जब मयूर और प्रवासी की रचनाएं
मन को तसल्ली देती है
तो बरबस याद आ जाती है
मेरी पहचान को कायम रखने वाले
देवव्रत,श्याम,ललित,रत्न,
जयकिरण, कैलाश,नंदलाल
जनेश्वर,दानिश, अम्बर,सूरज
नुदरत,पुखराज
और ऐसे कई
साहित्य की बगिया के सुमन।

दिन पर दिन
आकाश को छूती इमारते
टैगोर,प्रताप,नेहरू, गांधी की मूर्तियां
चौराहों पर लगे फव्वारे
और दो बत्ती को रोशन करती
दीपमालिकाएँ
सभी मेरी पहचान के हिस्से है।

मदहोश हो जाता हूँ
जब छेड़ती है तान
माणिक,भावना,रुबीना
और साथ देने लगते है
सलीम,सत्तू,अशफाक
अखलाक और हेमंत।

विश्वाश नही होता मदन,विनय की सितार
और जितेन्द्र, कमल की ताल पर
आश्चर्य तो तब होता है
जब मज़हर मास्टर छेड़ते है
राग सैक्सोफोन पर।
यूनुस की केसियो पर थिरकती उँगलिया
और यूसुफ की वायलिन पर चलती गज
सभी
कर रहे हैं कोशिश एक ईमानदार कोशिश मुझे पहचान दिलाने की।
युगबोध,जनाम, सप्तरंग,सुरभि
स्वर श्रृंगार,बुलेट,चिंतन और मंथन जैसी संस्थाएं दे रही है संबल
मुझे आगे बढ़ने का
और
नयन, लगन,विजय,जाहिद,हैरी
कर रहे है मेरे रूप को कैद
इतिहास बनाने के लिए
और शायद इसी से कायम रहेगी मेरी पहचान
भविष्य में।

संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्ति नगर, गली न.2,
(महाकाल मंदिर के सामने)
रतलाम (मप्र)
मोबा. 98270 47920

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