आचरण और जीवन मूल्यों का इस हद तक पतन : बीमार माँ को उसके खुद के घर में प्रवेश नहीं दे रही संतान
त्रिभुवनेश भारद्वाज
सच बात तो ये है कि राष्ट्रीय चरित्र का ही स्खलन हुआ है। गिरावट सर्वव्यापी हो गई। पतन मूल्यों का हो तो अंततः मनुष्य जीवन कराहता है। आज जो कुछ हम देखते हैं वो बीते अतीत की बुनावट का नतीजा है।
आचरण और जीवन मूल्यों का इस हद तक पतन होगा कि एक सन्तान अपनी बीमार माँ को उसके खुद के घर में प्रवेश नहीं करने देगी। हम यहां तक आ गए हैं साहब कि एक पिता अपने पुत्र से मुखाग्नि की अपेक्षा भी नहीं करता और कोरोना महामारी ने यह दिन भी दिखा ही दिया कि मरने के बाद अपने परिजनों की मृत देह लेने को तैयार नहीं तो मजबूर नगर निगम को इकठ्ठे शवों का लावारिस अंतिम संस्कार करना पड़ा है।
संस्कारहीन समाज देश को गर्वित नहीं बल्कि लज्जित ही करता
दाह के बाद अस्थियां एकत्रित करने भी कोई नहीं आ रहा है ।आगे और चले तो शायद दृश्य और खौफनाक आएंगे। हमने जो बोया वही काटना है। याद रखिए संस्कारहीन समाज देश को गर्वित नहीं बल्कि लज्जित ही करता है।समाज का पानी उतर गया।नैतिकता तार-तार हो गई। एक भ्रष्ट पिता उम्मीद ही क्यों करता है कि उसकी सन्तान उसकी सेवा करेगी? जबकि उसकी हैसियत की पूरी मीनार लोक सेवा के निर्दयतापूर्वक विक्रय पर खड़ी है। एक कर्तव्यहीन व्यक्ति दूसरे से कर्तव्यपरायणता की अपेक्षा ही कैसे कर सकता है?
पाप का धन करता है कुटुंब नाश
मुंबई में एक पॉश इलाके में सेवा निवृत्त धनाढ्य अफसर बंगले के बाहर तड़फ़-तड़फ़ कर मर गया, लेकिन हम न मर जाए ये सोचकर पुत्र ने द्वार नहीं खोले और ये जो अस्पतालों में इंजेक्शन, ऑक्सीजन सौ गुना दामों में बेच रहे हैं। इनके ये धन किसी काम आने का नहीं। हमारा दृढ़ विश्वास है। पाप का धन कुटुंब नाश करता है।
अहले ख़िरद ने दिन ये भी दिखाए
घट गए इंसान, बढ़ गए साए
बोए पेड़ बम्बूल के तो
आम कहाँ से होय
त्रिभुवनेश भारद्वाज