धर्म संस्कृति : नमस्कार रूपी द्वार से मोक्ष प्राप्त होगा, अहंकार की दीवार से नहीं
⚫ मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने कहा
हरमुद्दा
रतलाम, 11 जुलाई। कई लोग टूटने को तैयार होते है लेकिन झुकने को नहीं। लेकिन झुकने में रस है। अहंकार जहां होगा, वहां नमस्कार नहीं आएगा। संसार रूपी मकान से बाहर जाना है, तो नमस्कार रूपी द्वार से मोक्ष प्राप्त होगा, अहंकार की दीवार से नहीं।
यह उद्गार सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने व्यक्त किए। मुनिराज ने कहा कि प्रभु के वचन मामूली नहीं है। प्रवचन का हर शब्द कीमती होता है। छोटे वाक्य हमारे जीवन में बड़े परिवर्तन ला सकते है। किसी भी ग्रंथ की शुरूआत नमस्कार से होती है। नमस्कार भाव अतिमूल्य है। नमस्कार तीन प्रकार के होते है। पहला सामान्य से यानी झुक जाना, दूसरा गुणवान से नमस्कार और तीसरा गुण प्राप्ती के लिए नमस्कार है।
वंदन से शुरुआत होती धर्म की
मुनिराज ने कहा कि प्रभु का सृजन उपयोगी है और मनुष्य का सृजन फिजूल है। अहंकार के बीज से संसार की उत्पत्ति हुई है। जिस दिन अहंकार पीछे रह जाएगा, उस दिन संसार से मोह छूट जाएगा। परमात्मा को नमस्कार का भाव हमे मोक्ष दिलाएगा। मुनिराज ने गुणवान से नमस्कार को समझाते हुए कहा कि हम अधिकारी, पत्नी, सबके सामने झुक जाते है। वंदन से ही धर्म की शुरूआत होती है।
जहां झुकोगे वैसा बनोगे
मुनिराज ने गुण प्राप्ति के लिए नमस्कार को परिभाषित करते हुए कहा कि जो भी तपस्वी है, उनके आगे भी झुकना है, ताकि उनके जैसा तप आए। भगवान के आगे झुकना है, कि भगवान आपके जैसा बनना है, इसलिए पूजा करना है। गुरू जैसा बनना है, इसलिए गुरू को नमस्कार करना है। इस दौरान श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम के सदस्य एवं बढ़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।