धर्म संस्कृति : सत्संग ताकत देता है, तकदीर जगाता है और तासीर बदल देता है
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा
⚫ छोटू भाई की बगीची में प्रवचन
⚫देश के विभिन्न हिस्सों से आए श्रावक श्राविकाएं
हरमुद्दा
रतलाम, 15 सितंबर। वर्तमान युग में सभी अपना कल्याण चाहते है, लेकिन यह बातों से नहीं होता। इसके लिए हमे कुछ ना कुछ करना ही पडता है। सत्संग इसकी पहली सीढी है। भारतीय संस्कृति में सत्संग की बहुत महत्ता है। सत्संग से पापी, पावन और अधम, उत्तम बन जाता है। व्यक्ति सोचना है, गंगा में डुबकी लगाने से पवित्र बन जाते है, लेकिन गंगा में डुबकी वाला भले ही पवित्र ना बने, लेकिन सत्संग में डुबकी लगाने वाला जरूर पावन बनता है।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। पर्यूषण पर्व के चैथे दिन छोटू भाई की बगीची में प्रवचन देते हुए उन्होंने कहा कि सत्संग मनुष्य को ताकत देता है, उसकी तकदीर को जगा देता है और तासीर बदल देता है। इससे जीवन मंे बहुत परिवर्तन आते है। व्यक्ति की आसुरी वृत्ति चली जाती है और सात्विक वृत्ति आती है। सत्संग से ऐसी महानता आती है, जो अन्य उपायों से नहीं आ सकती।
सत्संग से मिलती है सुख शांति
आचार्यश्री ने कहा कि सत्संग से जीवन में बहुत बडी सुख-शांति प्राप्त होती है। व्यक्ति चैबीसों घंटे उर्जा से भरा रहता है और दिनभर आनंद-मंगल रहता है। मन मजबूत हो जाता है। आजकल लोग बेतुकी बातों की चिंता करते है और खुद को तनावग्रस्त बना लेते है। जबकि यदि थोडी धर्म की चिंता करे, तो जीवन मजबूत बनता है। संसार में जीने के लिए जैसे आक्सीजन जरूरी है, वैसे ही सुखमय जीवन के लिए धर्म अनिवार्य है। चिंता किसी समस्या का समाधान नहीं होती, उससे उल्टे नुकसान होता है।
चिंता के चक्रव्यूह में फसता मनुष्य
आचार्यश्री ने कहा कि चिंता आज बहुत बडी समस्या बन गई है। इससे अमीर-गरीब, पढे-लिखे और अनपढ सभी पीडित है। एक बार चिंता के चक्रव्यूह में जो फंसता है, वह डिप्रेशन में चला जाता है। हमे चिंता नहीं अपितु चिंतन करना चाहिए, क्योंकि चिंतन समाधान देता है। इस हेतु सत्संग बहुत बडा आयाम है। इससे यह निश्चितता आती है कि जो होगा, वह अच्छा ही होगा। सत्संग के कुंभ में सबकों डुबकी लगाना चाहिए। इससे ताकत, तकदीर और तासीर सभी बदल जांएगे।
देश के विभिन्न हिस्सों से आए श्रावक श्राविकाएं
आरंभ में श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने अंतगढ सूत्र का वाचन किया। उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने पर्यूषण पर्व में अधिक से अधिक तप और त्याग की प्रेरणा दी। इस मौके पर रतलाम के साथ देश के विभिन्न हिस्सों से आए श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।