धर्म संस्कृति : जिदंगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी रहती है धर्म की कमाई

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा

छोटू भाई की बगीची में प्रवचन

धनतेरस पर किया धर्म का धन कमाने का आह्वान

कई बच्चों ने लिया पटाखे नहीं जलाने का संकल्प

हरमुद्दा
रतलाम,10 नवंबर।  धर्म का जीवन निष्पाप जीवन होता है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में धर्म की कमाई का लक्ष्य ही रखना चाहिए, क्यों कि यही ऐसी कमाई है, जो जिंदगी के साथ भी रहती है और जिदंगी के बाद भी रहती है। धर्म रूपी धन के अलावा जितने भी प्रकार के धन है, वे तो नाशवान होते है।

यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में शुक्रवार को प्रवचन देते हुए आचार्यश्री ने महाराज हस्तीपाल के स्वप्नों का वर्णन आरंभ किया। उन्होंने कहा कि महाराज हस्तीपाल ने भगवान महावीर का चातुर्मास कराया था और उन्हें इस दौरान 8 प्रकार के स्वप्न आए थे, जिनकी व्याख्या भगवान महावीर ने उन्हें बताई थी। इन स्वप्नों में भविष्य की स्थितियों का वर्णन आया था और आज वैसी ही स्थितियां बन रही है।

धर्म की कमाई ही रहती है सदैव साथ

आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान समय में लोग नाशवान धन के पीछे पडे है, लेकिन वह साथ जाने वाला नहीं है। इसलिए अपनी शक्ति, समय और सामथ्र्य धर्म का धन कमाने में लगाना चाहिए। धर्म की कमाई ही ऐसी कमाई है, तो सदैव साथ रहती है। इससे कर्मों का हिसाब होता है। धर्म का धन कमाने में जिन्होंने भी अपनी शक्ति, समय और सामथ्र्य लगाया है, वे महापुरूष हुए है। उनके जीवन सबके लिए आदर्श बने है। ऐसे लोगों से प्रेरणा लेकर धर्म के मार्ग पर ही चलना चाहिए।

जागना उन्नति और सोना अवनति का प्रतीक

आचार्यश्री ने कहा कि जागना उन्नति का, जबकि सोना अवनति का प्रतीक है। संसारी लोग सोते है, जबकि साधक जागते है। इससे उनका जीवन प्रकाशवान होता है। दुनिया में नाशवान धन कमाने वाले कई लोग करोडपति से रोडपति हुए है, लेकिन धर्म रूपी धन कभी खत्म नहीं होता। धर्म का धन कमाने में जो संतोष मिलता है, वह कहीं और नहीं मिलता है।

बच्चों ने लिया पटाखे नहीं जलाने का संकल्प

उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने इस मौके पर धर्म और कर्म की विवेचना की। उन्होंने ऐसे कर्म करने पर जोर दिया, जिनसे कर्मों का बंध नहीं होता हो। तरूण तपस्वी श्री युगप्रभ मुनिजी मसा ने कहा कि दीपावली भगवान महावीर के निर्वाण का पर्व है। इसमें अधिक से अधिक तप आराधना करनी चाहिए। इस मौके पर कई बच्चों ने आचार्यश्री से पटाखे नहीं जलाने का संकल्प लिया। प्रवचन में बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।

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