धर्म संस्कृति : सिर्फ धन ही व्यापार की पूंजी नहीं होता

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा

छोटू भाई की बगीची में प्रवचन

हरमुद्दा
रतलाम, 21 नवंबर। संसारी लोग धन को ही पूंजी मानते है। लेकिन व्यापार में केवल धन ही पूंजी नहीं होता। व्यापार की असली पूंजी तो धैर्य है, माधुर्य है, अवसरवादिता और मिलनसारिता है। इनके बिना कोई कभी किसी व्यापार में सफल नहीं हो सकता।


यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। मंगलवार को छोटू भाई की बगीची में प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि जो व्यापार न्याय से और नीति से चलता है, वही सफल होता है। व्यापार में धेर्य सबसे बडा गुण होता है। यदि कोई जल्दबाजी करता है, तो असफल हो जाता है, लेकिन धेर्यपूर्वक लगन से मेहनत करता है, तो सफलता अवश्य मिलती है।

सफलता के लिए चार गुणों का समावेश जरूरी

आचार्यश्री ने कहा कि व्यापार में माधुर्य का बडा प्रभाव पडता है। यदि व्यक्ति मधुर व्यवहार नहीं करता, तो ग्राहक दूसरी बार नहीं आते। इसी प्रकार अवसर का लाभ उठाना और मिलनसारिता रखना भी अच्छे व्यापार की निशानी है। व्यापार भौतिक और आध्यात्म जगत दोनो में होते है। इनमें सफलता के लिए चारो गुणों का होना आवश्यक है।

बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविका रहे मौजूद

प्रारंभ में सेवानिष्ठ श्री अनुपम मुनिजी मसा ने संबोधित किया। इस मौके पर इंदौर के गांधीनगर श्री संघ से मंत्री गजराज बेताला ने विनंती की। उनके साथ संघ सदस्यों ने भी विनती की। प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकागण मौजूद रहे।

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