व्यंग्य : कविता का स्वाद
आशीष दशोत्तर
कविता लिखते-लिखते तुम्हारी कलम घिस गई और तुम्हें यह नहीं पता कि कविता का भी स्वाद होता है? कविता का रूप होता है? उसका रंग भी होता है और ढंग भी होता है? तुम भी यार गज़ब के कवि हो। लिखे जाते हो, लिखे जाते हो । कभी यह देखते ही नहीं कि तुम्हारा लिखा हुआ है कैसा? यहां-वहां नज़रें घुमा कर तो देखो तो सही, तुम्हारी कविता के क्या हाल हैं?
ज्ञानी पहले ही कह गए हैं ,’ पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुआ ,पंडित भया न कोई, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।’ इसलिए कविता लिखने की गति कम करो और अपनी मति को इस तरफ भी मोड़ो। पोथी पढ़ना भी बंद करो और महाकाव्य लिखना भी छोड़ो। ढाई आखर अब एक घर आगे बढ़कर ‘कमेंट’ में परिवर्तित हो गया हैं, ज़रा उसे भी तो पढ़ो।
देखो तुम्हारी कविता पढ़कर लोग कैसा महसूस कर रहे हैं? तुमने कल ही कविता अपनी दीवार पर चिपकाई थी न, उस पर कितनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाएं आई है, तनिक देखो। इन प्रतिक्रियाओं को संग्रह करके रखो। इनसे सीखो और उस अनुसार लिखो।
इधर देखो यह प्रतिक्रिया कह रही है ‘मज़ेदार कविता।’ इन महोदय ने तुम्हारी कविता को चख भी लिया उसका स्वाद भी जान लिया। ज़ुबान पर रखते ही उन्हें मज़ा आ गया। इधर दूसरी तरफ देखो। इनकी नज़र में कविता ‘ चटपटी’ है। निश्चित रूप से इन्होंने कविता चटखारे लेकर पढ़ी होगी। कृपा रही जो इन्होंने तेल-मसालों के संतुलन को बनाए रखा।
ये कह रहे हैं ‘सुंदर कविता।’ अब इनसे कोई पूछे कि कविता कभी कुरूप होती है क्या? वह तो सुंदर ही होती है। पहले किसी ज़माने में हाथ से लिख कर कविता कहीं भेजी जाती थी तो उसे सुंदर कहा जा सकता था क्योंकि उसकी लिखाई सुंदर होती थी, मगर अब तो लेखन कला से अनभिज्ञ भी महाकाव्य लिख रहे हैं। सामने तो छपे हुए शब्द आते हैं, इसमें भला सुंदर क्या हुआ?
इधर तीसरी तरफ देखो। ये लिख रहे हैं , ‘रंग -बिरंगी और ढंग-ढांग की कविता।’ कितने-कितने रंग और ढंग नज़र आ रहे हैं इनको। अगर ये कविता का शीर्षक ‘ स्मृतियों के साथ ‘ ही पढ़ लेते तो शायद ऐसी प्रतिक्रिया न देते। प्रतिक्रिया दी है तो कुछ सोच समझ कर ही दी होगी। हो सकता है इन्हें कविता में सादगी का रंग नज़र आया हो।
इन्होंने तो गज़ब ही कर दिया। इनकी नज़र में कविता ‘ धुआंधार, शानदार और बेमिसाल थी। ‘ कवि की इस शोक कविता में कहीं शौक की बात नहीं थीं। कविता में न तो धुआं था और न ही धार।
अंग्रेज़ी में कमेंट देने वालों की तरफ भी गौर करें। वाव, अमेजिंग, वेल डन, कीप इट अप को पढ़कर तुम्हें राहत मिली होगी।
तुम्हारी कविता कहां-कहां, कैसे-कैसे पढ़ी जा रही है ,इस पर भी ग़ौर करो। फिर लिखने की हिम्मत बचे तो ज़रूर लिखो।
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