शख्सियत : नई पीढ़ी को गढ़ने का जतन
एक मुलाकात वरिष्ठ रंगकर्मी ओमप्रकाश मिश्रा के साथ
“बच्चों के साथ रंगकर्म की पाठशाला लगा रहे हैं। विगत 12 वर्षों से ग्रीष्मकालीन नाट्य प्रशिक्षण शिविर के माध्यम से वे शहर के बच्चों को न सिर्फ रंगकर्म से जोड़ रहे हैं बल्कि नई पीढ़ी के सर्वांगीण विकास पर भी ध्यान दे रहे हैं।”
आशीष दशोत्तर
प्रतिभाओं को तराशने का हुनर हर किसी के पास नहीं होता। प्रतिभा को पहचानना हर किसी के बूते की बात नहीं, मगर जो प्रतिभाओं को पहचान लेता है वही उन्हें आगे बढ़ने के अवसर भी देता है और अपने सृजनात्मक समाज, अपनी संस्कृति और अपने भविष्य के लिए एक आधार भी तैयार करता है । वरिष्ठ रंगकर्मी ओमप्रकाश मिश्रा भी प्रतिभाओं को तलाशने और तराशने वाली ऐसी ही शख़्सियत का नाम है।
रास्तों का ज़िक्र हर कोई करता है मगर सही राह पर लाने का श्रम कोई-कोई ही कर पाता है। वरिष्ठ भाषाविद, कवि डॉ. जयकुमार जलज कहते हैं – किसे पता है/किस बादल में कितनी क्षमता/बरसा सकता वह धरती पर कितनी ममता/कितनी जलन-तपन को वह नहला सकता है/कितने मरूदेशों में जा कर गा सकता है,/पर कितना दुर्भाग्य, दोष किसको दे दें हम/ मेघ बहुत उनको छा जाने को आकाश नहीं मिलता है।’’ मिश्रा जी ऐसे मेघों को आकाश उपलब्ध करवाते रहे। उनके शिक्षक में भी एक कलाकार हमेशा मौजूद रहता रहा, जिसने हर विद्यार्थी के भीतर छुपी प्रतिभा को पहचाना।
प्रतिभाओं को परखने और पंख लगाने में माहिर
अपने शिक्षकीय जीवन से लेकर आज तक वे प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने में लगे रहे । मुझ जैसे कई विद्यार्थी उनकी मेहनत से मंच पर खड़े होने का सलीका सीख सके। हम जब हायर सेकेण्डरी विद्यालय में प्रवेशित हुए तब रंगकर्म, साहित्य से कोई ख़ास जुड़ाव नहीं था। मिश्रा सर ने हमारी प्रतिभा को पहचाना। वे हमें कक्षा के उपरांत सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करते । सामूहिक गीत तैयार करवाते। रंगकर्म की बारीकियों से अवगत करवाते। उस समय सीखे समूह गीत आज तक याद है और उन्हें अब भी गुनगुनाते हुए मिश्रा जी का स्नेह और श्रम स्मरण हो आता है। वे विद्यार्थियों को सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते और उनके भीतर की प्रतिभा को बाहर लाने का प्रयास करते । वे कहते हैं, ‘प्रतिभा हर किसी में होती है। ज़रूरत उसे बाहर लाने की होती है। बच्चों में इतनी प्रतिभा होती है जिसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। जब यह प्रतिभा बाहर नहीं आती है तो वह ग़लत प्रवृत्तियों में लग जाता है। यदि ऊर्जा को सही दिशा न मिले तो वह विसंगतियों का शिकार हो जाती है।’
कई कलाकार कर रहे हैं देश भर में नाम रोशन
श्री मिश्रा जी ने अपने जीवन में ऐसे कितने ही विद्यार्थी तैयार किए जो देश भर में अपने शहर का नाम रोशन कर रहे हैं। बच्चों की झिझक दूर करने का प्रयास स्कूलों में ही होना चाहिए। यहीं से उसे अभिव्यक्ति की मुखरता का मौका मिलता है। मिश्रा जी ने विद्यार्थियों की इसी झिझक को दूर करने का प्रयास किया।
गतिविधियां देशभर में रही चर्चा का केन्द्र
किसी भी शहर की पहचान उस शहर की संस्कृति और वहां के साहित्य से होती है। रतलाम में प्रारंभ से ही साहित्यिक गतिविधियां चरम पर रही। रंगकर्म एवं सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से रतलाम में का नाम पूरे देश भर में पहचाना गया। यहां की गतिविधियां देशभर में चर्चा का केन्द्र रही। इससे रतलाम की प्रस्तुतियों ने न सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि देश और प्रदेश में अपने विभिन्न प्रस्तुतियों के ज़रिए एक अलग ही पहचान बनाई। उसका असर यह हुआ कि रतलाम में रंगकर्म के लिए वातावरण प्रारंभ से ही निर्मित रहा। जब नाटकों की रिहर्सल हुआ करती थी तब मिश्रा जी के प्रोत्साहन पर विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहकर रिहर्सल देखा करते थे। मिश्रा जी वहां मौजूद विद्यार्थियों से नाटक के संवाद बुलवाते। इससे विद्यार्थियों में मौजूद कलाकार सामने आता, उसका हौंसला बढ़ता और उसकी रूचि जागृत होती। ऐसे ही अनेक प्रयोग सर किया करते और कलाकारों को गढ़ने का प्रयास करते। उनके इस प्रयास से शहर में युवा कलाकारों की एक पीढ़ी तैयार हुई।
निरंतर सक्रिय और सृजनरत
मिश्रा जी ने शिक्षकीय दायित्व से मुक्त होने के बाद भी अपने इस उद्देश्य को नहीं छोड़ा। वे निरंतर सक्रिय और सृजनरत रहे। आज भी नई पीढ़ी को रंगकर्म से जोड़ने और उनमें नाटकों के प्रति आकर्षण बनाए रखने के लिए मिश्रा जी बच्चों के साथ रंगकर्म की पाठशाला लगा रहे हैं। विगत 12 वर्षों से ग्रीष्मकालीन नाट्य प्रशिक्षण शिविर के माध्यम से वे शहर के बच्चों को न सिर्फ रंगकर्म से जोड़ रहे हैं बल्कि नई पीढ़ी के सर्वांगीण विकास पर भी ध्यान दे रहे हैं।
ग्रीष्मकालीन नाट्य प्रशिक्षण शिविर
ओमप्रकाश मिश्रा ‘युगबोध’ संस्था के बैनर तले प्रतिवर्ष ग्रीष्मकालीन अवकाश में बच्चों के लिए नाट्य प्रशिक्षण शिविर आयोजित करते हैं। यद्यपि दो वर्षों से कोरोना के कारण यह सिलसिला बाधित हुआ मगर श्री मिश्र द्वारा तैयार किए गए नन्हे रंगकर्मी अपने क्षेत्र और अपनी शिक्षण संस्थाओं में नाटकों की प्रस्तुति देकर उनके विश्वास को पुख्ता कर रहे हैं । इन नाट्य शिविरों में 20 से 25 बच्चे शामिल होते हैं। एक माह तक बच्चों को रंगकर्म की बारीकियों से परिचित करवाया जाता है । इसमें संवाद अदायगी, उच्चारण, शब्दों की समझ, शब्दों का प्रभाव , समय अंतराल एवं अन्य बारीकियों से बच्चों को अवगत करवाया जाता है। इस दौरान दो नाटक भी तैयार किए जाते हैं। यह नाटक हमारी प्राकृतिक, पारिस्थितिक, सामाजिक परिस्थितियों को केंद्रित रखते हुए होते हैं। श्री मिश्रा बताते हैं कि रतलाम में रंगकर्म की एक सुदृढ़ परंपरा रही। यहां के नाटकों ने देश भर के रंगमंच पर अपनी प्रभावी प्रस्तुति दी।
माहौल तैयार हो रहा सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए
नई पीढ़ी इस परंपरा से परिचित हों तथा रंगकर्म से जुड़ें, इसलिए वे प्रतिवर्ष यह शिविर लगाते हैं । इस शिविर में बच्चों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता। नगर के नाट्य प्रेमी एवं सहयोगी इस कार्य में शिरकत करते हैं। जब नाट्य मंचन होता है तब इसे देखने रतलाम के तमाम नाट्य प्रेमी उपस्थित रहते हैं । इस प्रयास से शहर में सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए माहौल तैयार हो रहा है। पत्थर को तराश कर हीरा बनाने का उनका यह प्रयास इस शहर की असली पहचान को पुख़्ता कर रहा है। मिश्रा जी अपनी साधना में यूं ही लगे रहें, दीर्घायु हों, हम और हरमुद्दा परिवार यही कामना करते हैं।
12/2, कोमल नगर,
बरवड़ रोड, रतलाम-457001
मो. 9827084966