धर्मप्रधान गृहस्थ धर्म का पालन हमारी संस्कृति है, लेकिन समलैंगिक विवाह का विचार ही कुठाराघात

विश्व प्रसिद्ध अयोध्या पुरम

⚫ गुजरात के विश्व प्रसिद्ध अयोध्यापुरम एवं सुमेरु नवकार तीर्थ प्रेरक मार्गदर्शक जिनशासनरत्न – बंधु बेलड़ी पू. आ. श्री जिनचन्द्रसागरसूरीश्वर जी म.सा. एवं पू. आ. श्री हेमचन्द्रसागरसूरीश्वर जी म.सा से उनके 60 वें दीक्षा दिवस के पावन प्रसंग पर खास बातचीत नीलेश सोनी की

छह दशक संयम सफर अविश्वसीय

आपका जिनशासन की सेवा में 60 वर्षो का यह स्वर्णिम सफ़र आज जिस मुकाम पर पहुंचा है, आप क्या अनुभव करते है ?

“जो ना सोचा था कभी आज वो हो गया..” 60 वर्षों का यह संयम सफर अविश्वसीय लग रहा है, हमारी हैसियत से अधिक हमें जिन शासन से मिला । एक मात्र पूज्य पं. श्री अभयसागर जी म.सा. की कृपा का ही यह परिणाम है, ऐसा हम लोग महसूस करते हैं । 60 वर्ष पूर्व हम दोनों भाई बालमुनि थे..ना कोई विशेष समझ.. ना कोई विशेष साधना, फिर भी..गुरुदेव की परम कृपा ने हम लोहे जैसे को सोने में बदल दिया । शासन समुदाय ही नहीं बल्कि हमें अन्य क्षेत्रों में बहुत आदर,सम्मान मिल रहा है । यह सब देव-गुरु की कृपा का ही प्रभाव है।

शासन सेवा में तत्पर बने

इन छह दशकों की संयम साधना में आपके 100 से अधिक शिष्य- प्रशिष्य में से अधिकांश युवा साधु है । युवाओं के धर्म और शासन सेवा के प्रति इस समर्पण को आप किस रूप में देखते है?

शिष्य की प्राप्ति प्रज्ञा – विद्वता या अन्य विशिष्ट गुणों से नहीं होती, यह तो गुरु कृपा और पुण्य के अधीन है। हमें आश्चर्य होता है। शक्ति -स्फूर्ति- जागृति- भक्ति से भरे, तपस्वी, ज्ञानी, वैरागी, सेवाभावी, मेधावी,शतावधानी, व्यवस्था – कुशल आदि अनेक गुणों से चमकते शिष्य- प्रशिष्य परिवार की प्राप्ति से हम संतुष्ट है, जिनमे अधिकतम युवा, बालमुनि है। इन मुनियों के धर्म और शासन सेवा के प्रति समर्पण से जिनशासन – सागर समुदाय का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है। जितने उत्तम संस्कार, शिक्षण और सदगुणों का विकास होगा, उतना ही स्व- पर कल्याण होगा । हमारी एक ही भावना है परिवार शासन समुदाय निष्ठ बने । शासन की सेवा-रक्षा- प्रभावना में सदा तत्पर बने।

80 घरों से कोई 170 दीक्षाएं

आपके परिवार में कोई अन्य सदस्य ने दीक्षा का स्वीकार किया है क्या?

हाँ..हमारा संसारी परिवार छाणी गाँव में बसता था..हमारे गाँव “छाणी को ही दीक्षा की खाणी” अर्थात खान का कहा जाता है । जंहा 80 घरों में से लगभग 170 दीक्षाएं हुई है ।हमारे संसारी परिवार में 3 मासी म.सा,2 बहन म.सा,स्वयं हमारे 2 बड़े भाई म.सा,पू.आ.गुरु श्री अशोक सागर सूरिजी म.सा, मुनि श्री सत्वचन्द्रसागर जी म.सा,अन्य अनेक पारिवरिक स्वजनों ने दीक्षा को स्वीकार किया है..हमें गौरव है कि ऐसा संसारी परिवार प्राप्त हुआ।

नवकार शक्ति प्रधान मंत्र

आपकी निश्रा में अब तक करीब साढ़े तीन अरब नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप एक कीर्तिमान बन गया है । ये कैसे संभव हुआ है ?

नमस्कार महामंत्र विश्व-मंत्र है, व्यक्ति प्रधान नहीं, शक्ति प्रधान मंत्र है। हमारे परमोपकारी पं. गुरुदेव श्री अभयसागर जी म.सा. यानि २०वीं सदी के नवकार महामंत्र के श्रेष्ठ साधक संशोधक !! यह महामंत्र तो उनके लिए “नवकार माता” थी। उनके तन -मन-जीवन में नवकार छाया था, उन्हीं से नवकार साधना प्राप्त कर हममे नवकार को घर-घर घट-घट पहुंचाने की भावना जागी क्योंकि नवकार प्रत्येक आधि- व्याधि और उपाधि का संहारक है और मुक्ति का सर्जक है। इसी भावना -प्रेरणा से लोगों को जोड़ते गए… गुरु कृपा से नवकार-जाप /लेखन/ पटपूजन आदि अनेक प्रकारों से नवकार घर घर पहुँचाने का प्रयत्न सफल हुआ।

धर्म से जुड़े रहे

ऐसे समय में जब समाज साधनों और सुविधाओं को जुटाने की दौड़ में वास्तविक शांति से दूर हो रहा है? इस भटकाव को कैसे रोका जा सकता है?

भटकाव को दूर करने का एक ही रास्ता है.. ऋषि मुनियों द्वारा बतलाया गया धर्मप्रधान गृहस्थ-धर्म का पालन । धर्म,अर्थ,काम तीनों पुरुषार्थ का यथायोग्य संतुलन ही शांतिमय – सुखमय जीवन का आधार है। धर्म से दूर होने वाले को कभी शांति नहीं मिल सकती।

प्रकृति की रक्षा जरूरी

जैन साधु साध्वी जी का सम्पूर्ण जीवन ईको फ्रेंडली है । यह प्राकृतिक जीवन किस तरह से समाज के लिए प्रेरक बनेगा ?

महावीर के सिद्धांत समझते ही साधु-जीवन की परोपकारिता का एहसास होगा । साधु न वाहन, न इलेक्ट्रोनिक, न पेट्रोल न अन्य हिंसक साधनों का उपयोग करता है । वह तो प्रकृति से अल्पतम ग्रहण करता है और प्रवचन – आचरण के माध्यम से प्रेरणा कर अन्य लोगों के जीवन में अधिकतम त्याग का आचरण करवाता है।

विश्वशांति का मूलाधार

हिंसा और हथियारों की होड़ में तबाह होते विश्व में अशांति रोकने के लिए आप सबसे कारगर मार्ग किसे मानते है।

अशांति का मूल है मन में, मन में हिंसा के विचार.. जब तक क्रूरता के भाव है तब तक हिंसा पनपती रहेगी । हिंसा करने लिए हथियार का उपयोग होता है, प्रभु महावीर ने अहिंसा- करुणा का सिद्धांत बतलाया है । पर-हिंसा, स्व – हिंसा ही है । पर-पीडा ही स्व – पीड़ा है । यही भाव ही विश्वशांति का मूलाधार है।

भारत की भव्यता में वृद्धि

पिछले दस वर्षो से जिस तरह से भारत में आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों को नवजीवन देने का सुखद सिलसिला प्रारम्भ हुआ है । जैनाचार्य के रूप में आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?
भारत देश की सभ्यता संस्कृति विश्व में श्रेष्ठतम है। भारत देश से ही अध्यात्म का संदेश विश्व में फैला है । अतः जितनी भी आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत भारत में है, उसका जतन होना परम आवश्यक है। हर सत्ताधीश से लेकर हर नागरिक का यह कर्तव्य होता है कि ऐसी विरासतों का संरक्षण-संवर्धन करें। यह बहुत ही आशास्पद घटना है कि पिछले दस वर्षो में जो विरासतों को नव जीवन दिया जा रहा है, इसमें भारत देश की भव्यता में वृद्धि होगी। नई पीढ़ी को सही मार्गदर्शन प्राप्त होगा- अपनी मौलिकता का परिचय होगा।

नई पीढ़ी विचारक-चिंतक

आज विश्व में हर वर्ष सर्वाधिक जैन दीक्षाएं हो रही है । समग्र भौतिक सम्पन्नता के बावजूद समाज का वैराग्य मार्ग के प्रति यह लगाव क्या सन्देश देता है?

ऐसा लगता है.. नई पीढ़ी विचारक-चिंतक और साहसिक है। जैन साधु के पास प्रभु वीर के सिद्धांतों का ज्ञान है, प्रवचन शक्ति है,आचार की गरिमा है। नई पीढ़ी जब जैन साधु के संपर्क में आती हैं तो, उनके उपदेश, आचरण से भौतिकता के मायाजाल से मुक्त होने का विवेक जाग्रत होता है। पराक्रम करने का साहस प्रकट होता है- परिणामतः संसार का मोह त्याग कर संयम/दीक्षा के मार्ग पर अग्रसर हो जाती है।

विश्व जन – मन में बसे दादा

अयोध्यापुरम और सुमेरु नवकार तीर्थ किस तरह से जिनशासन सेवा के आदर्श प्रकल्प बन गये है ?

अयोध्यापुरम् तीर्थ और तीर्थनायक परमात्मा आदिनाथ की विराटता भारत ही नहीं विश्व को जिनशासन की तरफ आकर्षित कर रही हैं। यहाँ प्रभु की कृपा से चमत्कारिक रूप से दादा प्रतिष्ठित हुए है, उन्हें देखते ही भक्त / दर्शक अभिभूत हो जाते हैं। उनके परिचय के लिए उत्सुक होते है फलतः जैनधर्म एवं तीर्थकर के संबंध में जिज्ञासु बनते है।

समलैंगिक विवाह सर्वथा अमान्य

देश में इन दिनों समलैंगिक विवाह को विधि मान्यता दिए के मुद्दे पर बहस छिड़ी है। आपका क्या अभिमत है?

भारतीय संस्कृति में विवाह मूलतः16 संस्कारों में से एक संस्कार है। इस संस्कार में स्त्री और पुरुष दो के दाम्पत्य जीवन की ठोस भूमिका धर्मशास्त्रों में सर्वमान्य है। प्राकृतिक, धार्मिक, सामाजिक, राजकीय, न्यायिक आदि अन्य अनेक दृष्टि से आदिकालीन विवाह ही वास्तविक विवाह है। समलैंगिक और विवाह (??) का किसी भी दृष्टि से संबंध बैठता ही नहीं है। यह शाब्दिक प्रयोग भी संस्कृति, समाज, धर्म आदि पर कुठाराघात है। इस विषय में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारतीय संस्कृति में सभी प्रचलित परम्पराएँ अनादि काल से चली आ रही है, जिसमें कोई भी परिवर्तन केवल धर्मसत्ता का अधिकार क्षेत्र है न कि न्यायसत्ता अथवा राजसत्ता का !

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