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साहित्य सरोकार : गीत – “ख़ुद की नज़रों में बुद्ध हैं”

आशीष दशोत्तर

मन, वचन, कर्म से वे कहां शुद्ध हैं ?
ख़ुद की नज़रों में जो भी बने बुद्ध हैं।

सीधे पथ पे गमन वो नहीं कर सके,
पांव मुश्किल धरा पर नहीं धर सके।
सत्य की सीढ़ियां भी वे चढ़ न सके,
कोई मूरत नई मन में गढ़ न सके ।
रोशनी तक वो पहुंचेंगे कैसे भला,
उजले पथ ही अगर सारे अवरूद्ध हैं।

धैर्य धारण सभी को दिखाकर किया,
घूंट कड़वा था लेकिन ख़ुशी से पिया।
बाहरी आवरण तो बदल ही गया,
मन तो चंचल रहा,वो मचल ही गया।
जिनको संयम की उम्मीद थी आपसे
आप उन पर ही होते रहे क्रुद्ध हैं।

सीख देने से पहले अगर सीखते,
फ़ूल सी बात कहते,न यूं चीखते।
सारी दुनिया समझते वो अपनी अगर,
दूर तक उनके कहने का होता असर।
बात करते हैं अब वे अमन चैन की,
जिनके जीवन में बस युद्ध ही युद्ध हैं।

आशीष दशोत्तर
रतलाम
98270 84966

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