मुद्दे की बात : सात वर्षों से मरम्मत के इंतजार में किले की दीवार, एक ही परिसर में है पांच स्कूल, एक कन्या महाविद्यालय
⚫ स्कूली बच्चों के चीलर नदी में डूबने का भय
⚫ हादसे की प्रतीक्षा में जन प्रतिनिधि
⚫ कलेक्टर डॉ. रावत ने किया था निरीक्षण
⚫ नगर पालिका ने दिए थे मरम्मत के निर्देश
⚫ नरेंद्र गौड़
शाजापुर, 10 अगस्त। शाजापुर का किला मुगलकालीन धरोहर है और इसकी वजह से नगर को पहचान मिली, लेकिन इसकी पूर्वी दीवार सात साल पहले 31 जुलाई 2013 को भारी वर्षा में गिर गई थी। मालूम हो कि यह इमारत सौ साल से अधिक पुरानी होने के कारण पुरातत्व विभाग की धरोहर है जिसके चलते वही इसकी मरम्मत करा सकता है। विभाग की टीम ने टूटी दीवार का अवलोकन भी किया लेकिन मरम्मत की बात दाखि़ल दफ्त़र हो गई। फरवरी 2020 में तत्कालीन कलेक्टर डॉ. वीरेंद्र सिंह रावत ने भी निरीक्षण किया था और नपा को दीवार की मरम्मत के निर्देश दिए। तब के मुख्य नगर पालिका अधिकारी भूपेंद्रकुमार दीक्षित की मौजूदगी में 9 फरवरी 2020 को आयोजित नपा की बैठक में दीवार की मरम्मत संबंधी प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया, लेकिन राशि के अभाव में मामला लटक गया। टूटी दीवार के साथ ही किले की अन्य चारों तरफ की दीवारें भी जर्जर हो चुकी हैं। इस मामले में स्थानीय जनप्रतिनिधि भी नकारा साबित हुए हैं।
शाहजहां ने बनवाया था किला
लगभग सन् 1640 में किले का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां के आदेश पर शहर कोतवाल मीर बेगो और नगर गामोठ जगन्नाथ रावल ने कराया था। बताते हैं कि उस समय इसके निर्माण पर दस लाख रूपए लागत आई थी। श्रमिकों को एक आना रोज मजदूरी का भुगतान किया गया था। ऐतिहासिक तथ्य हैं कि किला निर्माण के पहले चीलर नदी सोमवारिया बाजार होकर बहती थी, लेकिन शाहजहां के एक अफसर खान बहादुर मुस्सरजंग की सलाह पर नदी का रूख किले की पूर्वी और उत्तरी दीवार की तरफ किया गया। ताकि किले को सुरक्षा प्रदान की जा सके। मुग़लकाल में इस शहर का नामकरण शाहजहांपुर किया गया था।
बारह मोहल्ले बसाए गए
शहर की बसाहट के साथ ही बारह पुर अर्थात मोहल्ले मगरिया, डॉसी, मुरादपुरा, वज़ीरपुरा, कमरदीपुरा, लालपुरा, दायरा, मुगलपुरा, गोल्याखेड़ी, जुगनवाड़ी और मीरकलां बसाए थे जो आज भी इन्हीं नामों से जाने जाते हैं। शाहजहां के समय(1628-1658) जामा मस्जिद सहित अनेक मंदिरों का भी निर्माण किया गया। इसके अलावा शहर की सुरक्षा के लिए चारों तरफ दीवार बनाई गई और चार दरवाज़े निर्मित किए गए। आज भी इन्हें देखा जा सकता है जो कि किला , मीरकला, सोमवारिया, कसेरा बाजार दरवाजों के नाम से जाने जाते हैं। समय की मार और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण यह सभी गेट जीर्णशीर्ण हो चुके हैं।
गामोट जगन्नाथ रावल का सम्मान
शहर की बसाहट में गहरी रूचि लेने और बादशाह के आदेश का निर्देशानुसार पालन करने के लिए जगन्नाथ रावल को शाहजहां की तरफ से सम्मानित किया गया और उन्हें मोजा मगरिया की जागीर प्रदान की गई लेकिन शाहजहां के बेटे औरंगजे़ब के समय (1656-1707) उन दिनों के शाहजहांपुर और आज के शाजापुर को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।
सिंधिया शासकों के अधीन
मुग़लवंश के पतन के पश्चात यह शहर 1732 में ग्वालियर के सिंधिया शासकों के अधीन आ गया जो कि 28 मई 1948 में मध्यभारत प्रांत की स्थापना तक बना रहा। इस दौर में इस शहर का नाम शाहजहांपुर के बजाए शाजापुर किए जाने के साथ किला परिसर में महल, ताराबाई की छत्री, हवा महल आदि इमारतें बनाई गईं। चीलर नदी के किनारे सिंधिया शासकों एवं जन सहयोग से शानदार घाट भी बनाए गए। जिन्हें आज भी देखा जा सकता है।
काई और गंदगी के हवाले चीलर नदी
चीलर नदी पर ग्राम सांपखेड़ा में बांध बन जाने के बाद नदी का शाजापुर क्षेत्र में प्रवाह समाप्त हो चुका और कभी कलकल बहने वाली यह नदी आज काई और गंदगी के हवाले है। नदी के किनारे बने खूबसूरत भीमघाट, महादेवघाट, गिरासिया घाट, रपट घाट खस्ता हाल हो चुके हैं। पुराने लोग जो आज अधेड़ हो चले हैं, उनकी स्मृति में इन घाटों का वैभव तरोताजा है। गर्मी के दिनों यही घाट स्वीमिंग पुल का रूप ले लिया करते थे। युवकों की टोलियां घाटों के किनारे बड़े-बड़े पेड़ों पर चढ़ जाती और प्रवाहमान नदी के पानी के कूदा करती थी। वहीं महिलाएं घर के कपड़े धोने के लिए घाटों पर लाया करती थी। दिन भर नदी के किनारे पर मेला-सा जैसा लगा रहता था। लोगों ने तैराकी भी इसी नदी में खेलते कूदते सीखी।
किले का प्रशासन ने किया दोहन
वर्ष 1904 में शाजापुर जिला तो बन गया लेकिन लालघाटी पर नई इमारतें बनने तक सरकार ने करीब 80 साल तक किले का प्रशासनिक कार्यालय संचालित करने के नाम पर दोहन किया, लेकिन दीवारों की मरम्मत के नाम पर अधेला भी खर्च नहीं किया। 18 अपै्रल 2016 को भारी वर्षा में किले की पूर्वी दीवार चीलर नदी में जा गिरी थी। मौका मुआइना करने गए प्रशासनिक अधिकारियों सहित जनप्रतिनिधियों ने तुरंत मरम्मत का भरोसा दिलाया। आज उस घटना को सात साल हो गए लेकिन मरम्मत के नाम पर सरकार जनता को अंगूठा दिखाती रही।
लंच टाइम में बच्चे लगाते हैं दौड़
इस किले की मरम्मत नहीं होना शाजापुर की ज्वलंत समस्याओं के प्रति जनप्रतिनिधियों के नकारा होने का जीता जागता उदाहरण है। आज इस परिसर में शासकीय कन्या महाविद्यालय, 5 शासकीय स्कूल जिन्हें मिलाकर एक एकीकृत शाला बनाई गई है, संचालित होती है। सैंकड़ों विद्यार्थी लंच टाइम में इस दीवार के आसपास दौड़ भाग करते हैं जिसके चलते कभी भी हादसा हो सकता है। खासकर कक्षा पहली से आठवीं के बच्चों की जान का खतरा बना रहता है। हादसा हुआ तो बच्चे किले की टूटी दीवार से नीचे बह रही चीलर नदी में गिर सकते हैं। इसलिए किले की पूर्वी दीवार की मरम्मत तत्काल कराई जाना चाहिए। याद रहे कि चुनावी साल होने के कारण सीएम अनेक घोषणाओं की बरसात कर रहे हैं, इस मौके का लाभ नगर के जनप्रतिनिधियों को उठाना चाहिए।
जनप्रतिधि भी नकारा साबित हुए
15 सालों से हुकुमसिंह कराड़ा शाजापुर के विधायक हैं और याद नहीं आता कभी उन्होंने इस दीवार की मरम्मत को लेकर मुख्यमंत्री से चर्चा की हो। वैसे किले की मरम्मत कराना कोई बच्चों का खेल नहीं हैं । करोड़ों रुपया इस काम में चाहिए। शायद नगर पालिका परिषद के कुल सालाना बजट की राशि अकेले मरम्मत में खर्च हो जाएगी। जाहिर है यह काम प्रदेश शासन से आवंटित राशि के बिना असंभव है और प्रदेश में भाजपा की सरकार है, वहीं विधायक महोदय कांग्रेस के हैं। इस तगड़े मकड़जाल में शाजापुर का विकास ठप है। इसी बीच अरूण भीमावद भाजपा के विधायक थे भी लेकिन वह भी किले की दीवार की मरम्मत के मामले में नकारा साबित हुए।