शख्सियत : आम आदमी की तकलीफ उजागर नहीं हो, ऐसी कविताएं भूसे के ढ़ेर से अधिक नहीं

साहित्यकार आरती कुमारी का कहना

नरेंद्र गौड़

’धार्मिक विश्वास, ज्योतिष, भाग्यवाद और अंधविश्वास की भावनाएं किसी भी कवि की रचना को कमजोर बनाती हैं। कविता को विकसित और पल्लवित होने के लिए खुली सोच होना आवश्यक है। वक्त़ के बदलाव को पहचाने बिना आत्मनिष्ठता खराब कविता को जन्म देती है। ऐसी कविता भूसे के ढ़ेर की तरह होती हैं जिनमें आम आदमी की तकलीफ उजागर नहीं हो। गोदी मीडिया लोगों का ब्रेनवॉश कर रहा है।’


यह बात वस्तुनिष्ठ और सामाजिक यथार्थ को उजागर करने वाली रचनाकार आरती कुमारी ने कही। इनका मानना है कि नहीं लिखने के सौ बहाने खोज लिये जाते हैं। फुर्रसत आज किसी के पास नहीं है, सभी को अपनी भावनाएं व्यक्त करने लायक समय चुराना पड़ता है। एक कामकाजी महिला होने के नाते मेरा यह अनुभव है कि किचन किसी भी कवयित्री के लिए बेहतरीन कार्यशाला सिध्द हो सकती है। रोटी बनाना, दाल में बघार लगाना, बच्चों को नहलाना, गमलों में पानी देना ऐसी अनेकानेक प्रक्रिया यदि बेहतर ढ़ंग से की जाए तो यह भी बेहतरीन, लेकिन अनलिखी कविता से कमतर नहीं है। अपना काम ईमानदारी से करने का ही दूसरा नाम कविता है।

रचनाकार आरती कुमारी

अपने परिवेश को उजागर करती है कविता

एक  सवाल के जवाब में आरती जी ने कहा कि कविता भीतरी अनुभूति से उपजती है, यह कहना गलत है। कवि अपने परिवेश से अछूता भला कैसे रह सकता है? कवि अगर किसी देहात में रह रहा है तो उसकी कविता में ग्रामीण स्वर मुखर होंगे। यदि कवि रात दिन टीवी पर उन चैनलों को देखता है जिन्हें गोदी मीडिया कहा जाता है, जाहिर है ऐसे चैनल उसकी सोच को अवश्य प्रभावित करेंगे। वह भी हिंदू मुसनमान और मंदिर मस्जिद कविता में करने लगेगा। भला सामाजिक बदलाव की कविता वह कैसे रच सकता है? वह तो सत्ता के गुणगान वाले छंद लिखेगा, ऐसी कविताएं भूसा होती हैं जिनमें आम आदमी की तकलीफ उजागर नहीं हो।

मानवीय संबंधों पर केंद्रित रचनाएं

आरतीजी का जन्म बोकारो स्टील सिटी में स्व. कामता साव तथा पंचिया देवी के घर हुआ। इन दिनों आप सेल (स्टील अथॉरेटी ऑफ इंडिया) में कार्यरत हैं। आप एलएलबी करने के बाद मास्टर्स की डिग्री की भी तैयारी कर रही हैं। साहित्य के प्रति इन्हें गहरा लगाव है और इनकी रचनाएं मानवीय संबंधों पर केंद्रित होती हैं। इन्होंने अनेक लधुकथाएं भी लिखी हैं। इनकी रचनाओं में प्रेम, प्यार से जुड़ी गहरी अनुभूतियां हैं। भाषा सरल स्पष्ट और पारदर्शी होने की वजह से आसानी से समझ में आती हैं। अपनी कविताएं छपाने के प्रति और शोहरत प्राप्ति के प्रति इनमें कोई लालसा नहीं है। लम्बा धैर्य और आत्मविश्वास इनकी सबसे बड़ी पूंजी है। 


चुनिंदा कविताएं


किताब

खुद की लिखी किताब हूं मैं
कुछ अनसुलझा हिसाब हूं मैं
न नूर-ए-नजर किसी की मैं
न ढ़ँका हुआ हिजाब हूं मैं
सब्र कर ए मन जरा
मोह बेहिसाब हूं मैं
धीर नहीं गंभीर नहीं
च्ंाचल अभिमान हूं मैं
खुद की लिखी किताब हूं मैं
न सँवार कर न बनाकर
बिखरी सी बेतरतीब सी
थोड़ी खुली किताब हूं मैं
पढ़ सको तो पढ़ लो जरा
उलझा सुलझा सा संवाद हूं मैं।

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अपना न मिला

अपनों में भी अपना न मिला
गैरों में अपना ढूंढा
भूल थी यह मेरी
जे गैरों में अपना ढूं़ढा
अपने हों या गैर हों
सभी ने पहले अपना देखा
मेरी ही भूल थी
जो खुद से पहले सबका देखा
अपने गैर ही सही
गैर भी अपना नहीं
ये भरम टूटा तो
अब कोई सपना नहीं।

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अधूरे किस्से

चंद अधूरे किस्से
अधूरे ही रहते हैं
कभी न पूरे होने के लिए
अधूरे ही रहते हैं
संसार के सबसे
खूबसूरत अहसास में
पिरोई हो जैसे
जीवन की माला
मोहब्बत, प्रेम -प्यार के
शब्दों की तरह
अधूरे ही रहते हैं
कभी न पूरे होने के लिए
अधूरे रहते हैं अहसास आजीवन
इसके संयुक्त शब्दों की तरह
पर पथिक इस सफर में
अकेले ही रहते हैं
अधूरे ही रहते हैें
कभी न पूरे होने के लिए
भावों से परिपूर्ण हमेशा
कोमल भाव अंतस में लेकर
भाव के अभाव उसके
हिस्से में रहते हैं
चंद अधूरे किस्से
अधूरे ही रहते हैं
कभी न पूरे होने के लिए।

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मेरी दोस्त तुमने बताया

मेरी दोस्त तुम ही तो थी
जिसने मुझे समझाया
बताया कि रक्त, धर्म, जाति के
बाहर भी कुछ रिश्ते होते हैं
जो बहुत अजीज होते हैं
जीना सिखाते हैं हर हाल में
मेरी दोस्त तुम ही तो थी
तुमने ही तो सिखलाया
खुल कर हँसना
जो दिल मे है जुबां पर लाना
अश्क भरे हों आँखो में
फिर भी खुशी के मोती
छलकाना तुमने ही बनाया
जीवन के अटूट रिश्ते
जो हर शर्त से इतर
दिलों से जोड़े जाते हैं
दिल नहीं मिलते फिर भी
दिलों को जोड़े रखते हैं
विचार नहीं मिलते फिर भी
निभाये जाते हैं
निभाने की भी कोई
शर्त नही होती
बस जिए जाते हैं
भूल कर हर गम
खिलखिला कर हँसना
मेरी दोस्त तुम ही तो हो
दुःख दर्द की आहट को
चुपके से सुन ले
मेरी दोस्त तुम ही
कर सकते हो
बाँट लेते हो हर गम
खुशी कर देते हो दोगुना
तुम्हारे बिना जीवन
हो जायेगा सूना
मेरी दोस्त तुम ही तो थी
जिसने मुझे समझाया
बताया कुछ पल खुद के
साथ भी जीना।

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