साहित्य सरोकार : प्रयोगधर्मी ग़ज़लकार राम अवतार बैरवा

” क्षमा करें मैं बड़े घरों, इसलिए बैठने नहीं जाता,
कोई यह न कह दे, इसे बैठना भी नहीं आता”

रेणू अग्रवाल

राम अवतार बैरवा का नाम आधुनिक और नई तर्जों में ग़ज़लें कहने की दुनिया में नया नहीं है। इनकी रचनाओं में प्रकृति, आम आदमी की तकलीफ सहित जीवन के अनेकानेक रंग देखे जा सकते हैं। वैसे देखा जाए तो भारत में ग़ज़ल लेखन की परंपरा लगभग चार साढ़े चार सौ साल से भी अधिक पुरानी है। मिर्ज़ा गा़लिब, मीर तक़ी मीर, फिराक गोरखपुरी, फैज अहमद फैज, दुष्यंत कुमार, राहत इंदौरी, निदा फाजली, वसीम बरेलवी सहित बीसियों नाम ग़ज़लों, शेरों शायरी की दुनिया को आबाद और रौशन करते आए हैं, भले ही ऐसे नायाब शायर इस दुनिया से कूच कर चुके हैं लेकिन इनकी रचनाएं आज भी याद की जाती हैं।


बैरवा जी ने अपनी ग़ज़लों को लेकर अनेक प्रयोग किये हैं, उसे उर्दू की कठिन शब्दावली से बाहर लाकर ऐसा आकार दिया है जिसके चलते वह आसानी से जनसामान्य की समझ में आ जाती है। बैरवा जी को आधुनिक ग़ज़लों का कुशल हरकारा कहना अति नहीं होगी। इनकी रचनाओं में प्रगतिशील सोच और कुछ नया रचने की आंतरिक लय देखी जा सकती है। इनकी अनेक ग़ज़लें मन को छू लेने वाली हैं, जो कि आदमियत की तमीज भी सिखाती हैं। दागिस्तान के एक महान कवि रसूल हमजातोव ने अपनी एक कविता में लिखा है ’दुनिया में अगर शब्द नहीं होता तो वह वैसी नहीं होती, जैसी कि अब है।’ यहां शब्द से मतलब बैरवा जी सरीखे अनेकानेक रचनाकारों द्वारा लिखी तथा रची जा रही भाषा से है।

राम अवतार बैरवा

जाहिर है, ऐसे शब्द मानव चेतना को अधिक उदात्त, परिष्कृत, संस्कारित संवेदनशील और सही अर्थों में मानवीय बनाने में अपनी महती भूमिका अदा करते हैं।
बैरवा जी की रचनात्मक बानगी देखिए-

⚫ महज इतनी सी दूरी होे चांद-छत की, मैं गर जीना रखूं तो नीचे उतर आए।

⚫ शीत राग की मधु बेला में जब सारे पत्ते झड़ जाएंगे, तलहट से कुछ नन्हें पौधे नम धूप पकड़ने आएंगे।

⚫ बीच सड़क पे बेबस अम्मा तारों से लिपट के रोएगी, आधी रात जब भूखे बच्चे चांद को खाने जाएंगे।

⚫ सावन को कसम दिला देना, इस बार न बरसें सूरत पे, हम किसी सूखे दरिया से प्यास मांगने जाएंगे।

⚫ रात की परवाह मत करना हम तन्हा एक मुसाफिर हैं, जब तारा आखिरी छिप जाए, वहीं तुम्हें हम पाएंगे।

⚫ मेरे मन के सुंदर पंछी, जब पिंजरे में बंदी होंगे, तब धूप की चिड़िया चीखेगी छांव के कौए गाएंगे।

⚫ क्षमा करें मैं बड़े घरों इसलिए बैठने नहीं जाता, कोई यह न कह दे, इसे बैठना भी नहीं आता।

⚫ टूटी लाठी लेकर चलती दादी क्या सोचती, गर मैं बच्चों के लिए नए जूते ले आता।

⚫ सौ रूपए में आता है, एक महका हुआ गुलाब, हम ग़रीबों का मोहब्बत में पड़ता नहीं खाता।

⚫ उनकी जुल्फें भी रेशमी हैं, रूह भी रेशमी, मेरे खद्दर का सीना उन्हें बिल्कुल नहीं भाता।

⚫ ख्वाबों की दुनिया में जीभर देख लेता हूं, हकीकत की राहों में उन्हें छू भी नहीं पाता।

⚫ वक्त की कोई ऐसी भी ना पहर आये, घर पर मैं ना रहूं वो तब घर पर आए।

⚫ आईना जहां भी हो, आईना रहे, गरीब, देखे तो धूंधला ना नजर आए।

⚫ ख्वाबों में रोशनी हो, ना हो मग़र कोई तारा, टूटता ना नज़र आए।

आकाशवाणी दिल्ली में कार्यरत कवि गजलकार राम अवतार बैरवा के लेखन में सत्य शिव और सौंदर्य की अंतर्धाराएं बहती नजर आएंगी। कहना न होगा कि ऐसी ही रचनाएं जीवन को अधिक सुंदर, सरस और श्रेयस्कर भी बनाती हैं।

प्रस्तुति : रेणू अग्रवाल

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