दुनिया से जोड़ने की ताकत रखता है साहित्य : डॉ. मधुर नज़्मी

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देश के प्रख्यात शायर मधुर नज़्मी जी का मोहम्मदाबाद गोहना, मऊ (उ.प्र.) से मेरे शहर सागर आगमन हुआ। इस दौरान मैंने उन्हें अपने ग़ज़ल संग्रह “दिल बंजारा” की प्रति भेंट की। मैंने और मेरी बहन डॉ. शरद सिंह ने उनसे साहित्यिक चर्चाएं कीं। उसी तारतम्य में उनका एक अनौपचारिक चर्चा की, जिसकी खास बात हरमुद्दा पाठकों के लिए प्रस्तुत है।

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🔳 प्रश्न : आप ग़ज़ल के वर्तमान परिदृश्य को कैसा पाते हैं?

🔳 डॉ. नज़्मी : ग़ज़ल का वर्तमान परिदृश्य चिन्ताजनक है क्योंकि सोशल मीडिया पर कथित शायरों की बाढ़ आ जाने से ग़ज़ल की गम्भीरता नष्ट हो रही है। आप लोगों जैसे शायरों की ग़ज़ल के प्रति प्रतिबद्धता यह भरोसा दिलाती है कि इस विधा को गम्भीरता से लेने वाले लोग अभी शेष हैं और ग़ज़ल की श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए कृतसंकल्प हैं।

🔳 प्रश्न : अक्सर यह सुनने में आता है कि साहित्य के प्रति अब लोगों मैं पहले जैसी रुचि नहीं रही। खुले मंच चुटकुलेबाजी का अड्डा बनते जा रहे हैं, आपका इस बारे में क्या कहना है?

🔳 डॉ. नज़्मी : आपका कहना सच है कि मंचों का स्तर अब पहले जैसा नहीं रहा। लेकिन मैं निराश नहीं हूं। साहित्य में बहुत ताकत होती है यदि ईमानदारी से अपनाया जाए तो साहित्य सारी दुनिया से जोड़ने की ताकत रखता है। मैं मुफ़लिसी में पैदा हुआ लेकिन मेरी शायरी ने दस देशों में जा कर मुशायरे पढ़ने का मौका दिया।

🔳 प्रश्न : उर्दू ग़ज़ल और हिन्दी ग़ज़ल, इन दो भाषाई नामों पर भी अक्सर बहस होती रहती हैं। क्या आप इस बंटवारे को उचित मानते हैं?

🔳 डॉ. नज़्मी : मैं ग़ज़ल विधा के संदर्भ में भाषाई विवाद को तरज़ीह नहीं देता हूं। ग़ज़ल तो वह है जो दिल से कही जाए और सुनने वाले के दिल को छू जाए।

🔳 प्रश्न : सागर आ कर आपको कैसा महसूस हो रहा है?

🔳 डॉ. नज़्मी : जी, सागर आ कर मुझे बहुत अच्छा लगा। सागर को मैं त्रिलोचन शास्त्री जी के सागर प्रवास के कारण जानता था, फिर आपके नाम से इसे जाना। यहां के लोग बहुत मिलनसार हैं।

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