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कहानी : कवि प्रेम

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🔲 जितेंद्र शिवहरे

काव्य मंचों पर अंजना आज जाना-पहचाना नाम था। एक कवि सम्मेलन में सहभागिता करने का प्रायः एक लाख रुपए पारिश्रमिक था। पुरी दुनिया में अंजना के कविता प्रेमी लोग थे। जो उसे समय-समय पर अपने यहां प्रोग्राम में आमन्त्रित किया करते थे। विशेष भी एक मंचीय कवि था। एक आला दर्जें का ओज का रस कवि। उसके गीत और कविता सोशल मीडिया पर छाये रहते। मगर वह अंजना के समतुल्य प्रसिद्ध न था। वह देश के बाहर कभी नहीं गया। अंजना और विशेष जल्द ही शादी करने वाले थे।
दोनों की पहली मुलाकात एक बड़े कवि सम्मेलन के मंच पर हुयी थी। जहां देश के जाने-माने कवि और कवित्रीयों को बुलाया गया था। विशेष भी आमंत्रित था। उसने पहली बार मंच से श्रृंगार गीत पढ़ा। इस श्रृंगार गीत ने श्रौताओं का दिल जीत लिया। अंजना भी भाव-विभोर हो गयी। दोनों की पहली मुलाकात धीरे-धीरे प्यार में तब्दील हो गयी। अंजना प्रयास करती की विशेष को अधिक से अधिक मंच मिले। ताकी वह उसके समकक्ष आ जाये, जिससे उसके स्टेटस के लोग भी विशेष को स्वीकार कर ले। विशेष को अपनी मौलिक विधा ही पंसद थी। मगर अंजना उसे श्रृंगार रस हेतु प्रेरित करती। विशेष का स्वाभिमान कभी इस बात के लिए राज़ी नहीं हुआ। इस बात पर अंजना और विशेष की नोंक-झोंक भी हो जाया करती। कई-कई दिनों तक अंजना विशेष से बात नहीं करती। मगर वह विशेष से ज्यादा समय तक दुर भी नहीं रह सकती थी। विशेष अपनी वाकचातुर्यता से अंजना को मना ही लेता। वह उसे प्रसन्न करने के लिए श्रृंगार मुक्तक पढ़ता, तो कभी रस प्रेम में डुबी कविता सुनाता। ऐसा करने में उसका ईगो कभी आड़े नहीं आया। अंजना उसके प्रिय वचनों के आगे अपना क्रोध भुल जाती।

अंजना चाहती थी की विशेष गुटबाजी का हिस्सा बने। क्योंकि मंचों पर वर्तमान में यही सब चल रहा था। जिसने आपको मंच पर बुलाया है वह आपको भी बुलायेगा। यही नीति आजकल मंच प्राप्ती का अनोखा नियम बन चली थी। उसका मानना था कि मंच पर श्रौताओं को जितना अधिक कल्पना में ले जाओ वे उतना ही कवि को सिर आंखों पर बिठाते है। आजकल सच कोई नहीं सुनन चाहता। सब को झुठ में जीना पसंद है। इसलिए जितना झूठ परोस सको, मंचों पर परोस दिया जाना चाहिये।
“विशू! तुम्हें अपने स्वरचित गीतों की पुस्तक प्रकाशित करवानी चाहिए।” अंजना ने विशेष से कहा।
“जरूर। मगर पैसे देकर नहीं। मैं अपनी पुस्तक तब ही प्रकशनार्थ भेजूंगा जब कोई प्रकाशक मेरी पुस्तक निःशुल्क प्रकाशित करे। इसके लिए धन की मांग न करे। मैं इसके विरूध्द हूं।” विशेष बोला।
“मगर यही बिजनेस है विशू। कोई प्रकाशक तब ही पुस्तक छापता है जब उसे उन पुस्तकों के बिक जाने की गारंटी हो। इसीलिए ये लोग लेखकों से एडवांस रूपये मांगते है। ताकी बुक न बिके तब भी उनका वित्तीय घाटा न हो। और फिर बुक का अच्छा प्रतिसाद मिलने पर वे लोग लेखक को राॅयल्टी भी तो देते है।” अंजना बोली।
“अंजना! यदि मेरे लेखन में वो बात नहीं जिसे पढ़कर प्रकाशक या पाठक प्रसन्न न हो और वह समाज में बदलाव ला सकने में समर्थ न हो तब उस पुस्तक के प्रकाशित होने से क्या लाभ? पुस्तक वही काम की है जिसे पाठक पढ़े। उस पर चिंतन हो, वह सार्वजनिक बहस का विषय हो, लोक कल्याणकारी हो। वह ऐसी पुस्तक न हो जिसे लाइब्रेरी में सिर्फ संजा के रखा जाता है।” विशेष ने तर्क दिये।
“तुम्हारी इन्हीं बातों के कारण तुम अब तक कुछ खास नहीं कर सके विशू? वर्ना तुम आज कहां से कहां पहूंच गये होते।” अंजना ने चिढ़ते हुये कहा।
“अंजना! मुझे जितनी सफलता मिलनी चाहिये, मिल रही है। और मैं उससे संतुष्ट हूं।” विशेष बोला।
“क्या कहा! सफल! हूअं। साल के बारह प्रोग्राम भी नहीं पढ़ पाते हो तुम! और अपने आप को सफल कहते हो? मुझे देखो। पुरे साल भर बिजी रहती हूं। महिने के तीसों दिन बुक रहते है मेरे। सेकड़ों बार विदेश में कविता पढ़कर आई हूं। और तुम कभी नेपाल तक भी नहीं जा सके।” अंजना अभिमान में बोल रही थी।
“तुम सही हो अंजना! मुझे विदेश में जाकर काव्य पाठ की कोई लालसा नहीं। मैं अपने लोगों के बीच ही खुश हूं।” विशेष बोला।
“एक बार फिर सोचो विशू! मैं तुम्हारी लाइफ बना सकती हूं! अगर तुम मेरे बताये रास्ते पर चलो तो?” अंजना ने कहा।
“कैसे?” विशेष ने पुछा।
“तुम अच्छा लिखते हो। थोड़ा बहुत पाॅलिक्टिस पर भी लिखो। और सबसे जरूरी है कि पाॅलिशियन के विषय में लिखो। अच्छा लिखो, उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर समाज के सामने प्रस्तुत करो। आजकल पाॅलिटिकल पार्टीस अच्छे लेखकों को अपना संरक्षण देती है। पार्टी के लिए श्लोगन, राजनेताओं का महिमा मंडन करते हुये लेख, उनके अनुभवों को प्रभावी भाषा शैली में लिपी बध्द करना, उनकी पर्सनल स्पीच तैयार करना, उनकी आत्मकथा लिखना, उनके सोशल मिडिया अकाॅउण्ट को मैनेज करना तथा समुचित टीका-टिप्पणी का उचित जवाब और रखरखाव करना, यह सब काम आज के लेखक ही तो संभाल रहे है। इसके बदले उन्हें पर्याप्त मानदेय मिलता है।
पाॅलिटीकल सपोर्ट से हो सकता है तुम्हें फिल्मों में या टीवी में लेखन का अवसर भी मिल जाये। एक बार यदि किसी फिल्म के लिए गीत लिख दिये तब अपना उध्दार ही समझो। क्योंकि जब तुम्हारे पास पाॅलिटीकल सपोर्ट होगा तो आगे भी फिल्म मिलती रहेगी।” अंजना बोल रही थी।
“क्रिकेट और खेल जगत की प्रसिद्ध हस्तियों पर उम्दा लेख को प्रिन्ट मीडीयां मुंह मांगे दाम पर प्रकाशित करने को तैयार खड़ी है। अभिनेत्रीयों के निजी जिन्दगी से जुड़े घटनाक्रम और उनके अन्य को-स्टार के साथ अंतरंग संबंध को उत्तेजित भाषा में लिखों, फिर देखो तुम कैसे रातों-रात स्टार लेखक बन जाओगे।” अंजना ने आगे कहा।
विशेष अब भी चुप खड़ा अंजना को देख रहा था। उसे आभास था कि अंजना की बातें अभी खत्म नहीं हुई है।
“देश भक्ति का प्रदर्शन मंच तक ही सीमित रखो विशू! उसे अपनी निजी जिन्दगी पर हावी मत होने दो। वर्ना तुम्हारी हालात भी उन भूतपूर्व कवियों की तरह हो जायेगी जिनका अब नाम लेने वाला भी कोई नहीं है। क्या तुम चाहते हो की आने वाले कुछ सालों के बाद जो थोड़े बहुत मंच तुम्हें मिल रहे है, वे भी न मिले?” अंजना ने आगे पुछा।
“इसीलिए मैं जो कह रही हूं उस पर अमल करो। जिन्दगी खुशहाल हो जायेगी। क्योंकि तब तक हम दोनों किसी सेलीब्रिटी से कम नहीं होंगे? और आज के दौर में सेलीब्रिटी भगवान से कम नहीं होते।” अंजना ने कहा।
“अंजना! तुम्हें पता है कि तुम क्या कह रही हो?” विशेष ने प्रश्न किया।
“हां मुझे पता है।” अंजना ने जवाब दिया।
“नही! तुम्हें शायद पता नहीं अंजना! तुम क्या कह रही हो। तुम मुझे समाज के धनाढ्य लोगों का गुलाम़ बनाने की सलाह दे रही हो। तुम चाहती हो की मैं जीवन भर उनकी पराधीनता में रहूं। वे कहे वैसा लिखुं। सच को झूठ और झुठ को सच बताऊं।” विशेष ने कहा।
“तो इसमें गल़त क्या है? आजकल सभी यही कर रहे है।” अंजना ने कहा।
ये बड़ी अजीब बात थी। अंजना को विशेष के जिन गुणों से चिढ़ थी, कभी इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर वह उसके करीब आई थी। विशेष अब भी सबसे अलग है, यह अंजना जानती थी। तभी तो अपने परिवार के विरुद्ध जाकर उसने विशेष से मेलजोल जारी रखा था।
“ठीक है अंजना! अगर तुम यही चाहती हो तो मैं तुम्हारी खुशी के लिए यह सब करने को तैयार हूं।” विशेष ने कहा।
अंजना प्रसन्न हो उठी।
“क्या सचमुच तुम मेरी कहे अनुसार वैसा ही करोगे।” अंजना का सिर विशेष के सीने पर था।
“हां अंजना! मैं तुमसे प्रेम करता हूं और तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं।” विशेष ने कहा। उसने अंजना के इर्द-गिर्द अपनी बाहें फैला दी।
विशेष में आये इस बदलाब को देखकर अंजना गदगद थी। उसे अपनी विद्वता पर गर्व हो रहा था जिसने अपने प्रभावि वक्तव्य से विशेष जैसे प्रभाव शाली लेखक को अपने रंग में रंग लिया था।
“अंजना! मैं तुम्हारी सभी बातें मान लुंगा! बस मुझे इतना बता दो, कल जब दुनियां मुझे चापलूस और बहुत बड़ा चाटुकार कहेगी तब तुम यह सह सकोगी?” विशेष ने पुछा।
अंजना बोलना चाहती थी मगर उसके पास इसका कोई उपयुक्त प्रतिउत्तर न था।
“तुम्हारे बताये मार्ग का अनुसरण करने से मेरा जीवन पहले से बेहतर हो जायेगा इसमें कोई श़क नहीं है। मगर यह भी विचारणीय है कि कल जब किसी ने तुम्हारे पति याने की मुझे किसी राजनेता का पालतु कुत्ता कह दिया तब क्या तुम एक कुत्ते की पत्नी की उपाधि स्वीकार कर सकोगी? अगर यह सहने के लिए तुम तैयार हो तो मैं भी तैयार हूं।” विशेष बोला।
अंजना निरूत्तर थी।
“तुम्हारे कहे अनुसार चलने पर यकिनन मेरे पास काम की कोई कमी नहीं होगी। धन-धान्य भी पर्याप्त होगा। नहीं होगा तो मेरा अपना स्वाभिमान। जिसे मैंने बड़े गर्व से पाल-पोस कर बड़ा किया है। और जब मेरा स्वाभिमान ही मेरे पास नहीं होगा तब मेरा ये शरीर बिना आत्मा के समान हो जायेगा। जिसमें प्राण तो होंगे किन्तु भावनाएं मर चूकी होगीं। एहसास दम तोड़ चूके होगें। हाड़-मांस के पुतले के साथ यदि तुम अपना सारा जीवन बिताने को तैयार हो तो मैं भी तैयार हुं।” विशेष के तर्कों के आगे अंजना ने अपने हथियार डाल दिये।
“अंजना! हम बहुत सौभाग्यशाली है कि हम लेखक है। लेखक समाज की आंख होती है। समाज लेखक के कानों से सुनता है। किताबों में, ग्रंथों में लेखकों ने जो लिख दिया, पाठक उसे सत्य मान लेते है। पुस्तकों में वर्णित उदाहरण देकर समाज को सुधार हेतु प्रेरित किया जाता है। अखबारों को, पत्रिकाओं को आम जन इस उम्मीद से पढ़ते है कि शायद उनके योग्य कोई तो ख़बर होगी? ऐसा कोई समाचार तो अवश्य छपा होगा जिसे पढ़कर उन्हें आत्म संतुष्टि का अनुभव होगा।”
“हमारे पुरातन कवि और लेखक मात्र ऐश्वर्य के बदले में लिखते तो हमें कभी रामायण और महाभारत जैसे धर्मग्रंथ नहीं मिलते। जो आज भी लाखों लोगों का मार्गदर्शन कर रहे है और आगे भी करते रहेंगे। हमारे महाकवियों ने तात्कालिक देश, काल और सामाजिक व्यवस्था का कितना सुन्दर चित्रण अपनी कृतियों में किया है। यदि वे लोग भी धन लाभ के विषय में सोचते या किसी व्यक्ति विशेष के प्रभाव में आकर संबंधित का ही महिमा मंडन करते तब इन महाग्रंथों के इतने व्यापक और विभिन्न दृष्टिकोण क्या हमें कभी देखने को मिलते।” विशेष का स्वर गंभीर था। अंजना के चेहरे पर शर्मिन्दगी के भाव उभर आये थे।
“देश प्रेम और वीरता मंचों पर वाह-वाही लुटने के लिए नहीं होती। अपितु जैसा बन सके, जिस तरह हो सके साहित्य के माध्यम से देश वासियों को देश प्रेम के प्रति प्रीत जागाने की प्रेरणा देनी चाहिए। देश की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्तिथि का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करना लेखक का धर्म है। जिससे देश वासियों को प्रस्तावित चुनौतियों का सही-सही भान हो। यह सत्तारूढ़ सरकार का दायित्व निर्धारित करने में भी सहायक होगा।”
“जो लेखक सिनेमा, अथवा मनोरंजन की मिर्च-मसाला दार ख़बरों को गढ़ते है, या सुप्रसिद्ध हस्तियों के विषय में कलम चलाते है, उनकी कमीयों को नज़रअंदाज करते हुये मात्र अच्छाइयां दिखाते है, मैं उनका विरोध नहीं करता। मगर उनका समर्थन भी नहीं करता। विवादित विषयों पर लेखन, जानबुझकर काॅन्ट्रोवर्सी पर लिखना, ये सभी देश और समाज के हित में नहीं है। क्योंकि इनसे अफवाहों का बाज़ार गर्म होता है। और साम्प्रदायिक शक्तियों को बल मिलता है। जो कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता।
निष्पक्ष लेखन समाज के लिए, देश के लिए, हम सभी के लिए आवश्यक है क्योंकी ये सभी के लिए कल्याणकारी है।”
“मुझे एक लेखक को अपना कर्तव्य स्मरण कराना पड़ रहा है इससे बड़ी दुःख की बात मेरे लिए दुसरी नहीं है। एक सत्यनिष्ठ कुशल लेखक वही है जो अपने हृदय में उठ रहे उदगारों को लिपी बद्ध करे। उसने जो यथास्थिति अनुभव की उसे बिना किसी पक्ष के साथ भेदभाव किये लिखे। धन और ऐश्वर्य अथवा किसी के प्रभाव में आये बगैर निष्पक्ष भाव का लेखन ही उत्तम है। क्योंकि लेखक का लेखन समाज की दशा और दिशा बताता है तथा अच्छे विचार और आवश्यक सुधारों की तरफ ध्यान इंगित करता है। जिससे नव निर्माण की संभावना को आवश्यक बल मिलता है। अध्ययन-अध्यापन और शोध के नये मार्ग खुलते है। वैचारिक वाद-विवाद और जनहित के मुद्दों पर जनमत संग्रह के विचार पनपते है। बेहतर भविष्य के लिए सामुहिक प्रयास आरंभ होने लगते है। रोजमर्रा की समस्याओं के उपाय खोजने और रोज़गार के नये अवसर मिलने की संभावना ढुंढी जाने लगती है। जीवन सुखमय बनता है।” विशेष बोल चुका था।
अंजना अब भी निशब्द थी।
“तुम अगर अब भी चाहती हो की मैं तुम्हारे बताये मार्ग पर चलूं तो मैं सहर्ष प्रस्तुत हूं।” विशेष ने अंजना के आगे अपना सिर झूका दिया।
“विशू! आज मुझे गर्व हो रहा है कि मैंने तुमसे प्यार किया। तुम वाकई एक सच्चे देश भक्त लेखक हो। तुम्हारे विचारों के आगे मेरे सभी प्रस्ताव, मेरे कहे गये सभी शब्द निरर्थक है। मैं अपना प्रस्ताव स्वयं ही खारिज़ करती हूं और तुम्हारे ओजस्वी राष्ट्र प्रेम के आगे अपना शिश झुकाकर तुमसे कही अपनी सभी बातों के लिए क्षमा मांगती हूं।” अंजना ने कहा।
“अब मुझे विश्वास हो गया है की जब तक इस देश में तुम जैसे लेखक है जिसे स्वयं से अधिक अपने देश और देश वासियों से प्रेम है, उस देश की एकता और अखण्डता की गौरव गाथा सदैव लिखी जाती रहेगी।” अंजना बोली।
वह पुनः विशेष के हृदय से लग गयी।
“एक प्रार्थना है विशू!” अंजना के स्वर साहित्यिक थे।
“बोलो!” विशेष ने कहा।
“मैं जब भी अपने मार्ग से भटकूं, तुम इसी तरह मेरा मार्गदर्शन करते रहना। तुम कहो तो मैं अब से मंच पर काव्य पाठ करना छोड़ दुं! मुझे आजीवन अपने हृदय के पास रखना। तुमसे दुर रहकर में जीवित नहीं रह सकूंगी।” अंजना का गला भर आया था।
“नहीं अंजना! ये तुम्हारा बड़ा हृदय ही है, जिसने अपनी भुल तुरंत स्वीकार कर ली। मुझे तुम पर गर्व है। तुम्हें मंचीय काव्य पाठ छोड़ने की कोई जरूरत नहीं। मेरे जीवन में तुम्हारा स्थान महत्वपूर्ण है और सदैव रहेगा। मैं अपने हृदय मंदिर में तुम्हें देवी की भांति आजीवन पुजता रहूंगा, क्योंकि मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूं और हमेशा करता रहूंगा।” विशेष ने कहा। अंजना यह सुनकर बहुत खुश थी। उसकी आंखें भीग चूकी थी। जो स्वतः ही बंद हो गयी। अंजना विशेष से लिपटकर उसका आभार व्यक्त कर रही थी।
विशेष अपने हृदय से लगी अंजना को दोनों हाथों से सहला रहा था। दोनों का हृदय परस्पर स्वच्छ हो चुका था।

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लेखक
जितेंद्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर, पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी, इंदौर (मध्यप्रदेश)

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