मानसिक गुलामी की ओर संकेत करती कविता ” देश आजाद और “मै” गुलाम
इन्दु सिन्हा “इन्दु”
बधाई दोस्तो, बधाई साथियो,
आजादी पर्व है आज,
खुशियों का, नाचने का, गाने का,
अंग्रेजो की गुलामी से,
आजाद हुए थे हम ,
देश की आजादी के लिये,
जो शहीद हुए ,
उनको याद करने का दिन,
गर्व से कहो,
हम आजाद है, हम आजाद है,
लेकिन हमने,
कौनसा बड़ा काम किया है,
देश आजाद है,
लेकिन गुलाम है हम,
भाषण, उपदेश अच्छा देते है हम,
महिला सम्मान भी करते है हम,
कन्या पूजा में भी पीछे नही हम,
माँ, बहन की गन्दी गालियों का,
खजाना नहीं रखते है कम,
गर्व से कहो,
देश आजाद है,
फिर भी गुलाम है हम!
हिंदी हिंदी से भी प्रेम करते है,
ज़माना जेट युग का है साहब,
बच्चो के भविष्य की बात है,
लाखो, करोड़ो के पैकेज मिलते है,
बताइये, कैसे समझौते करे हम,
गर्व से कहो,
देश आजाद है,
फिर भी गुलाम है हम!
बेटियों की दुआएं मांगते है सब,
बेटियां घर और देश की शान है,
बेटियों बिना घर है सूना साहब,
महिला रेप में क्यो पीछे रहे हम ?
गर्व से कहो,.
देश आजाद है ,
फिर भी गुलाम है हम!
हम हिंदी, वतन है हिंदी,
हम भारत के वासी है, धर्म हिंदी,
नमन है शहीदों को,
नमन है देश की मिट्टी को,
खाते हम भारत का, रहते भारत मे
देशभक्त है हम, गाते गीत अंग्रेजी का,
गर्व से कहो देश आजाद है,
फिर भी हम गुलाम है !
इन्दु सिन्हा “इन्दु”
रतलाम, (मप्र)