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जिम्मेदारों की मेहरबानी, व्यापारियों की मनमानी, आम जनता की परेशानी, यही है रतलाम की निशानी

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अनाप-शनाप पक्का अतिक्रमण करने के बाद भी जानवर की तरह पसर गए हैं सड़कों पर दुकानदा

हेमंत भट्ट

देखा जाए तो रतलाम शहर जैसा व्यवस्थित शहर देखने को नहीं मिलेगा। इसकी बसाहट राजा महाराजा के समय सलीके से की गई थी। मुंशी शाहमत अली की दूरदृष्टि थी।तरीके से बसाया गया था लेकिन स्वतंत्रता के बाद से ही शहर की दुर्दशा शुरू हो गई। मुद्दे की बात तो यह है कि प्रशासन के जिम्मेदारों की मेहरबानी के चलते दुकानदार अपनी मनमानी करने पर उतारू है। दिखावटी कार्रवाई के बाद और आगे पसर जाते हैं। नतीजतन आमजन परेशानी में है। विडंबना यही है कि यही रतलाम की निशानी है, जो कि इंदौर उज्जैन जैसे शहरों से अलग ही नहीं बिल्कुल अलग बनाती है।

यह तो शहरवासियों के लिए शुरू से ही विडंबना रही है कि जितने भी जिम्मेदार बड़े से लेकर निचले स्तर के कर्मचारी आए हैं वे सभी काम के लिए नहीं अपितु केवल और केवल दाम की खातिर ही बने हुए हैं। रुपयों के चंद टुकड़ो की खातिर शहर की सूरत और सीरत बिगाड़ने वालों के कारण ही रतलाम शहर साल दर साल दुर्दशा का शिकार होता जा रहा है। इस मामले में सबसे ज्यादा राजनीति करने वालों ने कबाड़ा किया है। उनकी मौन स्वीकृति अधिकारियों को बल देती रही।

इंदौर उज्जैन से भी ज्यादा चौड़ी चौड़ी सड़कें होने के बावजूद यहां पर दोपहिया वाहन चलाना भी नामुमकिन लगता है। वजह सिर्फ यही है कि दुकानदारों ने नजूल की जमीन पर 15 से 20 फीट तक अच्छा खासा पक्का अतिक्रमण कर पार्किंग को कब्जे में लेते हुए सड़क पर अपना अधिकार क्षेत्र जमा लिया है। मगर नगर निगम, यातायात विभाग और जिला प्रशासन के अमले को कुछ भी नजर नहीं आता है, कुछ भी नहीं।

गली से कमतर नहीं चौड़ी चौड़ी सड़कें

शहर का अति व्यस्ततम क्षेत्र चांदनी चौक, तोपखाना, बाजाजखाना, गणेश देवरी, रंगरेज रोड, चौमुखी पुल, रानीजी का मंदिर, डालूमोदी बाजार, माणक चौक, भुट्टा बाजार, घास बाजार, खेरादी वास, नीम चौक लोहार रोड, गौशाला रोड, लक्कड़पीठा रोड, नाहरपुरा, धानमंडी, शहर सराय, सैलाना बस स्टैंड, न्यू रोड, कॉलेज रोड यह सभी अच्छी खासी चौड़ी चौड़ी सड़कें हैं मगर गली से कमतर नहीं है वाहन चालक ही नहीं पैदल चलने वालों के भी पीछे वाहन चालकों को चलना पड़ता है। इतनी भी जगह नहीं मिलती है सड़क पर चलने के लिए। वाहनों को चलाने के लिए।

लोगों की समस्या से कोई सरोकार नहीं

चाहे बाजार का क्षेत्र हो या कालोनियां, गली हो या मोहल्ले की सड़कें। सभी की सभी मनमानी करने वालों की गिरफ्त में है। जिम्मेदार आंखें मूंदे बैठे रहते हैं, उन्हें लोगों की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं, उनके लिए तो बस लक्ष्मी का आगमन ही सर्वोपरि है। जेब भरी की भरी रहना चाहिए। यही जिम्मेदारों का मकसद रहा है और नगर निगम के जिम्मेदार इंजीनियर आज भी इसी परंपरा का बखूबी पालन कर रहे हैं।

केवल एक नजर भुट्टा माणक चौक क्षेत्र पर

भट्टा बाजार में नगर निगम द्वारा शॉपिंग कांप्लेक्स बनाया गया। दुकानों में जाने के लिए चार-पांच सीढियां बनाई गई। यानी कि सड़क से दुकानें तकरीबन 3-4 फीट ऊपर है। कई दुकानदारों ने दुकानों को खोद कर सड़क के समतल कर लिया, वही कई दुकानदार सीढ़ियों पर सामान रखकर सड़क पर आ गए। नगर जिम्मेदार अधिकारी धृतराष्ट्र बने हुए हैं।

अंगद के पैर की तरह जमी हुई है थैला गाड़ियां

भुट्टा बाजार का मुख्य मार्ग बना गली

शॉपिंग कांप्लेक्स की दुकानों के पास सामने सड़क हैं। आवागमन काफी रहता है। यहां पर तीन थैला गाड़ियां अंगद के पैर की तरह जमी हुई है। आवागमन में दिक्कत होती है मगर इन्हें आज तक नहीं हटाया गया, इनसे क्या मीठा है, यह समझ में नहीं आता। इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले ग्राहकों के साथ इन खेला गाड़ियों पर मसालों की बिक्री करने वाली महिलाएं मसाला नहीं लेने या कुछ खामी निकालने पर महिला खरीदारों को अनाप-शनाप अनर्गल बोलती रहती है। भद्दी भद्दी गालियां तक देती है। आसपास के दुकानदारों को भी आदत पड़ गई है। जब जिम्मेदार थैला गाड़ी को हिलाने में नाकाम रहे तो कि क्षेत्र के दुकानदार सड़कों पर क्यों नहीं पसरेंगे? उनका भी अधिकार है। वे भी सामान सड़कों पर जमा कर यातायात को अवरुद्ध कर रहे हैं। जितनी बड़ी दुकान नहीं है, उससे ज्यादा तो दुकानदारों का सड़कों पर कब्जा है।

थानेदार भी नहीं है कम

शहर का प्राचीनतम शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय माणक चौक में ही स्थित है। इसी के ठीक सामने थाना है। थाने द्वारा बैरिकेट्स लगाकर आधी सड़क रोकी गई है। इसके चलते भी यातायात प्रभावित होता है। इसी की आड़ में अन्य दुकानदार भी 10 से 15 फीट तक सड़कों तक सामान रख रहे हैं। नतीजा वही आवागमन में दिक्कत। मगर जिम्मेदारों को कुछ भी नजर नहीं आता क्योंकि उनकी जेब में माल जो है जाता।

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