शिव का चरित्र देता है उदारता की प्रेरणा : शिव को देखने के लिए जरूरी है अंतःकरण का तीसरा नेत्र

“शिव हमें जिस वैचारिक निष्ठा से जोड़ते हैं। उनमें वसुधैव कुटुंबकम की भावना अंतर्निहित है। हमेशा ही शिव पीडित मानवता के आराध्य रहें। हैं। जीवन के संघर्षों में स्वावलंबी बनने की ललक लिए आदि अनादि काल से मनुष्य शिव की शरण में जाता रहा है।”

🔲 डॉ. चंचला दवे

भगवान शिव को केवल धार्मिक स्वरूप में देखना, इकहरा अर्थ संप्रेषण होगा। उनकी उपासना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। शिव जहाँ संहार के प्रतीक हैं, वहीं सृष्टि के निर्माण में भी संलग्न होते है। उनकी आराधना सदियों से मनुष्य में बुनियादी करुणा का भाव जगाती रही है। उनकी छबि सृष्टि के निर्माण और उसके नाश की सतत प्रक्रिया का बोध कराती है। इस तरह इस चराचर जगत में कुछ भी स्थाई और स्थिर नही है। अतः संकुचित रूप को छोड़कर विशाल दृष्टिकोण अपनाने का नाम ही
शिव आराधना है।

शिव हमें जिस वैचारिक निष्ठा से जोड़ते हैं। उनमें वसुधैव कुटुंबकम की भावना अंतर्निहित है। हमेशा ही शिव पीडित मानवता के आराध्य रहें। हैं। जीवन के संघर्षों में स्वावलंबी बनने की ललक लिए आदि अनादि काल से मनुष्य शिव की शरण में जाता रहा है।कोरोना महामारी में भी इस से मुक्ति के लिए जन मानस महामृत्युंजय जप करके शिव आराधना करता रहा है। अन्य देवी देवतांओं की उपासना की तरह शिव की आराधना जटिल नहीं है। शिव एकदम भोले भाले हैं। भांग भस्म और धतूरे के फूलों पर ही रीझ जाते हैं। इसलिए देश की विभिन्न लोक कथाओं से ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। जहाँ शिव सामान्य से सामान्य जन की पीड़ा को देखकर सहायता करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। जीवन की विपरीत परिस्थतियों में शिव मनुष्य को संघर्ष की प्रेरणा देते है। इसलिए खोया खोया विश्वास पाने के लिए मनुष्य शिव की आराधना करता आया है, लेकिन शिव को देखने के लिये अंतःकरण का तीसरा नेत्र होना जरूरी है।

शिव का चरित्र देता है उदारता की प्रेरणा

दुनिया भर मे आज जहा वर्ग संघर्ष प्रबल हो रहा है। हमारे देश में सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ रहा है, वहां शिव का चरित्र उदारता की प्रेरणा देता है, उनकी उपासना संपूर्ण मानव जाति के प्रति विनम्र दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देती है। इस कारण शिव की उपासना एक एक समर्पित नागरिक की चेतना से समृध्द करती है। महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास कृष्णा त्रयोदशी को मनाया जाता है, लेकिन कुछ स्थानो पर चतुर्दशी को भी मनाते है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मध्य रात्रि के समय भगवान शिव रौद्र रूप में इस धरती पर प्रकट हुए प्रलय की इस बेला में तांडव नृत्य करते हुए, शिव ने समूचे ब्रह्मांड को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्मीभूत कर दिया।

सुख तथा संपदा प्रदान करते है शिव

इसलिए इसे महाशिवरात्रि या कालरारात्रि कहा जाता है। तीनो भुवनो की अपार सुन्दरी गौरा को अपनी अर्धांगिनी बनाने वाले शिव, प्रेत तथा पिशाचो से घिरे रहते है। शरीर पर श्मशानो की भस्म रमी रहती है। गले में सर्पों का हार शोभायमान है,और कंठ में विष है। जटाओं से जगत तारिणी पावन गंगा अवतरित हो रही है,माथे पर प्रलयंकारी ज्वाला धारण किए हैं। बैल को वाहन के रूप में अंगीकार करने वाले, शिव भक्तों को श्री सुख तथा संपदा प्रदान करते हैं।। शिव से संबंधित सैकड़ों मिथके भारतीय पुराकथा साहित्य मे मिलतें हैं। इतने मिथक किसी अन्य देवता के बारे में नहीं मिलते।

कहीं कोमलता कहीं कठोर मनोभावों का चित्रण

भारतीय प्रतिमा विज्ञान में भी भगवान शिव के विभिन्न रूप कलाकारों की प्रेरणा का स्रोत ही नहीं वरन अभिव्यक्ति का मापदंड भी रहें हैं। कलाकारों, कवियों, चित्रकारों और मूर्तिकारों ने शिव की अभिव्यक्ति से अपनी कला को समृध्द किया है। गुप्तकाल तथा परमार काल में शैव परंपरा अपने उत्थान पर भी। परमार काल में हजारों शिव प्रतिमाओ का, निर्माण किया गया। इन्हे आज भी मंदिरो और संग्रहालयों में देखा जा सकता है। इन पर लालित्य देखते ही बनता है। कहीं कोमलता कहीं कठोर मनोभावों का चित्रण है। इन में कहीं शिव के हाथों में पुष्प है, तो कहीं त्रिशुल है। कहीं उनके हाथ में सर्प लिपटा हुआ है।

शिव की आराधना आदिकाल से

मध्य प्रदेश में भी शिव की आराधना आदिकाल से चली आ रही है। इसका प्रमाण हिंगलाजगढ़, मंदसौर विदिशा, खजुराहो, उज्जैन तथा भोजपुर आदि जगहों की शिव प्रतिमांएं है। धातुओं के अनेक ऐसे सिक्के मिले हैं,जिनमें शिव सादर उकेरे गए है। एक मिथक के अनुसार प्राचीन काल में देवताओं तथा असुरों के बीच में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें देवताओं की पराजय हुई।

एकता के सूत्र में पिरोने का संदेश मिलता है हमें शिव से

हारे थके देवता ब्रह्माजी के नेतृत्व में भगवान शिव और विष्णु जी के पास पहुंचे सारा वृत्तांत सुन शिव और विष्णु को बहुत क्रोध आया परिणाम स्वरुप विष्णु के मुख से एक विराट ज्योति पुंज प्रकट हुआ। शंकर, ब्रह्मा तथा अन्य देवताओं के मुख से भी इसी प्रकार के ज्योति पुंज निकले और उनके एक स्थान पर घनीभूत होते ही देवी दुर्गा ने प्रकट होकर तमाम असुरों का संहार कर दिया। संवेदना के स्तर पर शिव जहाँ हमारी भावनाओं को आलोकित करते हैं। वहीं हमें व्यापक दृष्टी से संपन्न बनाते हैं। शिव के विविध रुप मन को अभिभूत करते हैं। उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम सारा भारत शिव की आराधना के मामले में एक दिखाई देता है। अनेक तनावों के चलते इस एकता के सूत्र में पिरोने का संदेश हमें शिव से मिलता है।

🔲 डॉ. चंचला दवे

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