मेडिकल कॉलेज : मैस में रात को खाना खाया, सुबह विद्यार्थियों ने की उल्टी, दस्त और पेट दर्द की शिकायत

🔲 तत्काल शुरू किया उपचार

🔲 मेडिकल कॉलेज में कोआपरेटिव तरीके से संचालित होती है मैस

🔲 जांच समिति बनाई

🔲 मुद्दे की बात यह है कि ना तो एमएलसी हुई है और नहीं भोजन सामग्री एकत्र हुई, ताकि जांच में सहयोग मिले

हरमुद्दा
रतलाम, 11 मार्च। मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों ने गुरुवार की रात को दाल चावल रोटी और गट्टे की सब्जी खाई और सो गए लेकिन जब सुबह उठे तो, किसी को उल्टी, किसी को दस्त, तो किसी को पेट दर्द की शिकायत हुई। धीरे-धीरे संख्या बढ़ती गई और 27 28 तक पहुंच गई। सभी का मेडिकल कॉलेज में किया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. जितेंद्र गुप्ता ने इसके लिए जांच कमेटी बना दी है जो शीघ्र अपनी रिपोर्ट देगी।

मेडिकल कॉलेज अधीक्षक डॉ. प्रदीप मिश्रा ने हरमुद्दा से चर्चा में बताया कि जब से मेडिकल कॉलेज में विद्यार्थियों का अध्ययन शुरू हुआ है। तभी से कोआपरेटिव स्तर पर मैस का संचालन किया जा रहा है। विद्यार्थी ही वेंडर का चयन करते हैं। सहूलियत के मद्देनजर मेडिकल कॉलेज में केवल स्पेस दिया है, ताकि उनके लिए भोजन बन सके। भोजन के मीनू सहित सभी अन्य सभी निर्णय विद्यार्थी तय करते हैं। इसमें मेडिकल कॉलेज का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। कॉलेज में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए भोजन बनाने का कार्य पाठक से करवाया जा रहा है, जो कि काफी अनुभवी हैं।

ट्रीटमेंट के बाद सभी ठीक

रात को विद्यार्थियों ने भोजन किया और वह सो गए थे। सुबह तकरीबन 9 से 10 बजे चार-पांच विद्यार्थियों को उल्टी हुई, दस्त लगी और पेट दर्द हुआ। धीरे-धीरे संख्या बढ़ने लगी और तकरीबन 27-28 विद्यार्थियों को इस प्रकार की शिकायत हुई जिनका तत्काल उपचार शुरू किया गया। ट्रीटमेंट के बाद अब सभी ठीक है।

तात्कालिक कार्रवाई में मैस संचालक को हटाया

मेडिकल कॉलेज अधीक्षक डॉ. मिश्रा ने बताया कि फूड प्वाइजनिंग की घटना के बाद मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ जितेंद्र गुप्ता ने जांच कमेटी बना दी है वह शीघ्र ही जांच कर रिपोर्ट देगी कि आखिर हुआ क्या है? तात्कालिक कार्रवाई करते हुए मैस संचालक को हटा दिया है।

वरना कॉस्ट बढ़ जाती है भोजन की

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यदि सरकारी तरीके से टेंडर होता है तो उसमें भोजन की कास्ट बढ़ जाती है और इसका भार विद्यार्थियों पर आता है। वैसे मेडिकल कॉलेज में कोऑपरेटिव रूप से ही मैस का संचालन होता आया है ताकि विद्यार्थियों पर ज्यादा बोझ ना रहे। इसके लिए एग्जीक्यूटिव कमिश्नर भी कन्वीनियंस होते हैं। विद्यार्थियों के खर्चे में कमी लाने के लिए कोआपरेटिव रूप से मैस का संचालन होता है

मुद्दे की बात तो यह है

मुद्दे की बात यह है कि इतने विद्यार्थी फूड पाइजनिंग का शिकार हुए हैं, मगर एमएलसी नहीं हुई है। इतना ही नहीं जो भोजन विद्यार्थियों ने रात को किया था। वह भी एकत्र नहीं किया गया। इन दोनों के कारण भी फूड पाइजनिंग की जांच में सहयोग मिलता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। घटना से पर्दा हट सकता था। जब हरमुद्दा ने डीन डॉक्टर गुप्ता को फोन लगाया तो आउट ऑफ कवरेज था।

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