कुछ खरी-खरी : एक करोड़ की बेची जमीन और फिर सौदा रद्द कर दिया प्रशासन ने, भावी भविष्य बजा रहा बैंड, फरवरी में खेल आयोजन कहां की बुद्धिमानी? फर्क नहीं पड़ता सरकार को
⚫ हेमंत भट्ट
एक करोड़ रुपए से अधिक की जमीन प्रशासन ने विज्ञापन और नीलामी के माध्यम से स्कूल संचालक संस्था को बेच दी, मगर कुछ माह बाद जनवरी में वह सौदा निरस्त कर दिया और फिर से विज्ञापन जारी किया गया। … स्कूली विद्यार्थी और शिक्षक अभी भी रैलियों के लिए बंधुआ मजदूर की तरह जोते जा रहे हैं। परीक्षा सिर पर है और भावी भविष्य बैंड बजा रहा है। जब खेल प्रतियोगिताएं दिसंबर में खत्म हो जाती है तो फिर फरवरी में आयोजन करना कहां तक बुद्धिमानी है? भले ही विद्यार्थियों को परीक्षा में निराश होना पड़े, लेकिन लगता है सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
पहले बात करते हैं जिला प्रशासन की। रतलाम विकास प्राधिकरण द्वारा सैलाना रोड पर बनाई गई परशुराम विहार कॉलोनी में स्कूल संचालक संस्था को 15000 वर्ग फीट से अधिक का भूखंड देने के लिए सितंबर 2022 में विज्ञप्ति प्रकाशित की गई जिसके तहत इच्छुक संस्था को नीलामी के माध्यम से राशि भरना थी। वह भरी भी गई। उस समय प्रशासन ने भूखंड की कीमत एक करोड़ दो लाख तय की थी। इससे अधिक की राशि जो नीलामी में बोली लगाता है, उसे जमीन मिलना थी। नीलामी में शामिल होने के लिए स्कूल संचालक संस्था को 10 लाख से अधिक की राशि पहले जमा करवाना थी फिर उसे बोली में राशि लिखकर आवेदन भरना था। एक स्कूल संचालक संस्था ने रतलाम विकास प्राधिकरण के सभी नियम और शर्तों को मानते हुए राशि जमा कराई और बोली में सम्मिलित हुए। खास बात यह रही कि उस समय और कोई आवेदन नहीं पहुंचा तो बोली में शामिल होने वाले एक ही स्कूल संचालक संस्था को एक करोड़ 7लाख रुपए में जमीन देने का अक्टूबर 2022 में तय हो गया। सितंबर से ही नीलामी में शामिल होने की राशि जमा थी ही। शेष राशि जमा करवाने के लिए जिला प्रशासन ने कोई डिमांड नोट नहीं भेजा। मगर जनवरी के प्रथम सप्ताह में संबंधित को जानकारी दी गई कि वह प्रक्रिया निरस्त कर दी गई है और उनकी राशि का चेक तीसरे दिन ही उन्हें मिल गया। इतनी जल्दी प्रशासन से राशि मिल गई। यह भी आश्चर्यजनक बात है।
जनवरी में सौदा निरस्त और दूसरी विज्ञप्ति जारी
जनवरी के दूसरे सप्ताह में फिर से उसी जमीन के लिए समाचार पत्र में विज्ञापन जारी हुआ। मजेदार बाकी है कि इस विज्ञापन में भी जमीन का सरकारी मूल्य नहीं बदला गया, वही एक करोड दो लाख तक रहा।
चर्चाओं का बाजार गर्म, पर्दे में है बात
पहले जब जमीन देने का तय हुआ, तब भी वही कलेक्टर थे और अब भी वही कलेक्टर हैं। न ही उसके मूल्य में कोई परिवर्तन हुआ है ना कुछ और। बस विज्ञापन का खर्चा हुआ। जिस संस्था को जमीन मिली थी, वह भी असमंजस में है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि प्रशासन ने सौदा रद्द कर दिया? जबकि सितंबर में जब विज्ञप्ति का प्रकाशन हुआ था, तब भी ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि एक से अधिक आवेदन होंगे तो भी नीलामी होगी। एक ही आवेदक को भी देने की योजना थी। और अभी भी वही नियम और शर्तें लागू है तो फिर सौदा निरस्त क्यों किया गया प्रशासन की ओर से। इस मुद्दे पर चर्चाओं का बाजार गर्म है। क्या किसी दूसरे को लाभ दिलाने के लिए ऐसा किया जा रहा है या कोई अन्य कारण है। इस बात से अभी पर्दा नहीं उठा है।
आखिरकार सरकारी और निजी स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों तथा शिक्षक शिक्षिकाओं को हर बार रैली के आयोजन में बंधुआ मजदूर की तरह क्यों जोता जा रहा है। 19 जनवरी को जो बच्चे सुबह 10:30 बजे स्कूल गए थे, वह शाम को 7:30 बजे बाद घर पहुंचे। यही हाल शिक्षक शिक्षिकाओं का भी रहा। स्कूल से छूटते ही स्कूली विद्यार्थी और शिक्षक शिक्षिकाएं शाम को तय स्थान नेहरू स्टेडियम पहुंचे। वहां पर जहां पर सरकारी और निजी स्कूल के बच्चे मौजूद थे। निजी स्कूल के कुछ बच्चे बैंड दल के साथ भी थे। वह आगे आगे रैली में बैंड बजाते हुए चल रहे थे। शहर के लोग देख रहे थे कि देखो देश का भावी भविष्य रैली में बैंड बजा रहा है जबकि अभिभावकों ने उन्हें निजी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा है। भविष्य बनाने के लिए भेजा है और वे सड़कों पर बैंड बजाते फिर रहे हैं सरकार के लिए। रैली विभिन्न मार्गो से होते हुए पुनः नेहरू स्टेडियम पहुंची, जहां पर जनप्रतिनिधि और कुछ भाजपाई शामिल हो गए। झांकी बाजी करने के लिए, कुछ समय के लिए, जबकि विद्यार्थी घंटों तक परेशान होते रहे।
विद्यार्थियों की परीक्षाओं के साथ खिलवाड़ खेल के माध्यम से
स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा नवीन शिक्षण सत्र शुरू होते ही खेल कैलेंडर घोषित कर दिया जाता है कि राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं कहां कहां और किस किस तारीख को होगी। खास बात यह भी रहती है कि अगस्त से नवंबर तक अधिकांश खेल प्रतियोगिताएं संपन्न हो जाती है। बची कुची दिसंबर खत्म होने के पहले ही वह भी संपन्न हो जाती है। लेकिन 30 जनवरी से 11 फरवरी तक चलने वाली खेलो इंडिया यूथ गेम्स की खेल प्रतियोगिताएं होगी। 27 खेल प्रदेश के 8 शहरों भोपाल, इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर, जबलपुर, बालाघाट, मंडला एवं खरगोन में होंगे, जिसमें देशभर के 6000 खिलाड़ी भाग लेंगे।
परीक्षा की तैयारी करें या खेलों का उठाएं लुत्फ
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल स्थित शौर्य स्मारक से 7 जनवरी को खेलो इंडिया यूथ गेम्स की मशाल, शुभंकर एवं थीम थीम सॉन्ग को लांच किया था। संपूर्ण प्रदेश में खेल वातावरण तैयार करने के लिए खेलों में अधिक से अधिक नागरिकों को जोड़ने एवं युवा खिलाड़ियों में उर्जा संचार करने के उद्देश्य टॉर्च मशाल रैली शुरू की। जो प्रदेश के सभी जिलों में वातावरण निर्माण और खिलाड़ियों को खेल स्पर्धा में बतौर दर्शक शामिल होने का आह्वान कर रही है। शेष जिलों में अभी भी निकल रही है। यह बात समझ से परे है कि जब आयोजन दिसंबर के पहले हो जाना चाहिए था, वह फरवरी के मध्य तक क्यों किया जा रहा है? माना कि मध्य प्रदेश को मेजबानी मिली है खेल आयोजन करने की, लेकिन तारीख का तो ध्यान रखना चाहिए था। जिन खिलाड़ियों को खेल प्रतियोगिताएं देखने की तमन्ना है, वह आखिर कैसे जाएंगे? वह अपनी परीक्षा की तैयारी करेंगे या खेल प्रतियोगिताओं का लुत्फ उठाएंगे।
पहली बार मौका और चुनावी साल
चुनावी साल में सरकार को पहली बार खेल इंडिया यूथ गेम्स आयोजन की मेजबानी करने का अवसर मिल रहा है तो वह भी इसको भूनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रख रही है। भले ही विद्यार्थियों को परीक्षा में निराश होना पड़े, लेकिन लगता है सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।