एक चिंतन : न्यायालयों में अपनाएं रजिस्ट्रार पद्धति तो तेजी से कम हो सकते है लम्बित मुकदमें, जल्दी मिलने लगेगा न्याय
⚫ किसी कोर्ट में किसी एक दिन बीसियों प्रकरण की कार्रवाई पूर्ण करने के औपचारिता से यथास्थिति और टालने की मनःस्थिति बन जाती है। हाल के दिनों में अभिभाषकों द्वारा की रही हड़ताल इसी का उदाहरण है। अभिभाषक वर्ग कहता है कि प्रकरणों के निपटारे में अचानक तेजी लाने से न्याय प्रभावित होता है। लेकिन यदि न्यायालयों में रजिस्ट्रार पद्धति को लागू कर दिया जाए, तो जहां प्रकरणों का त्वरित निराकरण हो सकेगा, अभिभाषक भी संतुष्ट रहेंगे और पक्षकारो को न्याय भी मिल सकेगा। रजिस्ट्रार पद्धति लागू करने को लेकर 2008 में भी पत्र लिखा गया था और उसके पश्चात 2021 में भी। ⚫
⚫ अनिल झालानी, (भारत गौरव अभियान के संयोजक है लेखक)
लम्बित प्रकरणों की बढ़ती संख्या को कम करने के लिए जब जब न्यायालयों द्वारा प्रयास किए जाते है, अभिभाषक उसके विरोध में खड़े हो जाते है और न्यायिक सुधारों की पहल रफा दफा हो जाती है। किसी कोर्ट में किसी एक दिन बीसियों प्रकरण की कार्रवाई पूर्ण करने के औपचारिता से यथास्थिति और टालने की मनःस्थिति बन जाती है। हाल के दिनों में अभिभाषकों द्वारा की रही हड़ताल इसी का उदाहरण है। अभिभाषक वर्ग कहता है कि प्रकरणों के निपटारे में अचानक तेजी लाने से न्याय प्रभावित होता है। लेकिन यदि न्यायालयों में रजिस्ट्रार पद्धति को लागू कर दिया जाए, तो जहां प्रकरणों का त्वरित निराकरण हो सकेगा, अभिभाषक भी संतुष्ट रहेंगे और पक्षकारो को न्याय भी मिल सकेगा।
भारत गौरव अभियान के संयोजक अनिल झालानी ने न्यायालयों में लम्बित प्रकरणों की बढती संख्या को देखते हुए विगत 28 जून 2021 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, तत्कालीन विधि मंत्री रविशंकर,मुख्य न्यायाधीश और विधि आयोग के अध्यक्ष को पत्र लिखकर यह सुझाव दिया था कि यदि न्यायालयों में रजिस्ट्रार पद्धति का उपयोग शुरू किया जाए, तो लम्बित प्रकरणों की संख्या में कमी लाई जा सकती है। यह सुझाव सबसे पहले 28 अगस्त 2008 को तत्कालीन विधि मंत्री हंसराज भारद्वाज, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश और विधि आयोग के अध्यक्ष को भी प्रेषित किया था। अपने पत्र की प्रतिलिपि तत्कालीन विधि मंत्री रविशंकर, विधि आयोग के अध्यक्ष, मुख्य न्यायाधीश के साथ साथ सर्वोच्च न्यायालय के समस्त न्यायमूर्तियों को भी प्रेषित की थी।
गैर न्यायिक कार्य में चला जाता है 60 फीसद समय
वर्ष 2019 में आईआईएम कोलकाता द्वारा किए गए अध्ययन में यह तथ्य सामने आया था कि न्यायधीशों और न्यायालयों किसी प्रकरण की सुनवाई पूरी होने तक लगने वाले कुल समय का 60 प्रतिशत समय तो गैर न्यायिक कामों में व्यर्थ चला जाता है, जबकि प्रकरण के निर्णय के लिए जरूरी प्रक्रिया सिर्फ शेष बचे 40 प्रतिशत समय में पूरी हो जाती है। न्यायालयों की कार्रवाई से यह और भी स्पष्ट हो जाता है।
नहीं बन पाता गंभीर वातावरण निराकरण में
वर्तमान व्यवस्था में न्यायाधीशों का अधिकांश समय तो वकीलों को अगली तारीख देने जैसे कामों में व्यर्थ निकल जाता है और शाम को कोर्ट समाप्त होने तक कोई परिणाम नहीं निकल पाता है। इससे न्यायालयों की टालमटोल और खानापूर्ति की मनःस्थिति बनी रहती है, प्रकरणों के निराकरण के प्रति गम्भीरता का वातावरण नहीं बन पाता।
यह कार्रवाई होती रहे रजिस्ट्रार स्तर पर
न्यायालयों की इस समस्या का व्यावहारिक हल रजिस्ट्रार पद्धति लागू करने के श्री झालानी ने अपने पत्र में रजिस्ट्रार पद्धति की विस्तार से जानकारी भी दी थी। उनके सुझाव के मुताबिक न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने वाला प्रत्येक प्रकरण जब तक पूरी तरह सुनवाई के योग्य ना हो जाए, तब तक उस प्रकरण की सुनवाई के पहले की तमाम प्रक्रियाएं एक रजिस्ट्रार या न्यायालय अधीक्षक जैसे अधिकारी के सामने चलाया जाए। प्रकरण में पक्षकारो की ओर से अपेक्षित साक्ष्य, आपत्ति, उत्तर, प्रमाण आदि पूर्ति करने की समस्त कार्यवाही रजिस्ट्रार के स्तर पर होती रहे। पक्षकारों द्वारा प्रकरण की समस्त आवश्यक जानकारियां प्रस्तुत किए जाने के 7 दिन के बाद प्रकरण को सम्बन्धित न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस व्यवस्था में कोई भी प्रकरण सीधे न्यायाधीश के समक्ष चलने की बजाय रजिस्ट्रार स्तर पर ही चलेगा। न्यायाधीश उस प्रकरण की वैधानिक कार्यवाही संपन्न करेंगे, जबकि प्रशासनिक कार्रवाई की जिम्मेदारी रजिस्ट्रार की रहेगी। इस प्रकार की प्रणाली प्रारंभ करने का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि न्यायाधीशों को प्रतिदिन बीसियों प्रकरणों को देखने की परेशानी झेलना पड़ती है, उससे मुक्ति मिल सकेगी और उनके सामने वे ही प्रकरण आएंगे, जिसमें प्रकरण के दोनों पक्ष न्यायाधीश के निर्देशों और प्रकरण की आगामी प्रक्रिया को संपन्न करने के लिए तैयार रहेंगे।
प्रशिक्षण न्यायाधीश को बनाया जाए रजिस्ट्रार
सुझाव है कि प्रत्येक चार न्यायाधीशों के लिए एक रजिस्ट्रार नियुक्त किया जाए। वह भी प्रशिक्षु न्यायाधीश ही हो। उन्हे दो वर्ष के लिए नियुक्त किया जाए, जिससे कि उनका प्रशिक्षण भी हो सकेगा और उनके ज्ञान में भी वृद्धि होगी। साथ ही न्यायाधीशों के काम का बोझ कम होगा और मुकदमें त्वरित ढंग से निपटने लगेंगे। इस नई व्यवस्था से न्यायाधीशों का कार्यभार कम होगा, समय बचेगा जो अन्य प्रकरणों के निष्पादन में उपयोगी होगा।
तो स्थितियां और विकट हो सकती है भविष्य में
भारत में वर्तमान में चल रही न्यायिक प्रणाली पूरी तरह अंग्रेजो की दी हुई है। हालांकि इसमें बदलाव भी लाए गए है। फ़ास्ट ट्रेक कोर्टे भी चलीं, लोक अदालतें प्रारंभ करके बड़ी संख्या में लम्बित प्रकरणों के बोझ को कम किया गया है। परन्तु नित नए दायर होते प्रकरणों की बढ़ती संख्या के मान से न्यायालयों और न्यायाधीशों की पदस्थापना करके भी इसमे संतुलन बिठाया जाना सम्भव नहीं प्रतीत होता है। भविष्य में स्थितियां और विकट हो सकती हैं। ऐसे स्थिति में के लिए रजिस्ट्रार पद्धति कारगर साबित हो सकती है।
चुनिंदा जिलों में की जाए पायलट प्रोजेक्ट रूप में शुरुआत
सुझाव पत्र में लिखा था कि उनके द्वारा सुझाई गई रजिस्ट्रार पद्धति को शुरुआत में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुनिन्दा जिलों में एक वर्ष की सीमित अवधि के लिए चलाया जाना चाहिए। इससे जो अनुभव सामने आएंगे, उसमे आवश्यक सुधार और परिवर्तन करके और प्रणाली को होने वाले लाभ हानि का आकलन करके भविष्य की न्यायिक प्रणाली दिशा तय की जा सकती है।