जिंदगी न केवल जीने का बहाना, जिंदगी न केवल सांसों का खजाना, जिंदगी सिंदूर है पूरब का, जिंदगी का काम है सूरज उगाना
⚫ डॉक्टर चंचला दवे
किसी राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति के निर्माण तथा विकास में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण होता है। सभी देशों तथा युगों में स्त्री और पुरुष में पुरुष को श्रेष्ठता प्रदान की गई है ।हमारे प्राचीन काल में भी यदि हम देखें तो महाभारत में भी श्रेष्ठता के विषय में “स्त्रीणां पुरुष एवं च”इस कथन अनुसार नारी का स्थान गौण ही रहा तथापि श्रेष्ठ माने गए पुरुष वर्ग का स्त्री- जाति के प्रति सद् व्यवहार समाज की सभ्यता का परिचायक होता है ।क्योंकि सभ्य और सुसंस्कृत व्यक्ति समर्थ होते हुए भी अपने स्वार्थ को त्याग कर दुर्बलों के प्रति उदात्त भाव रख सकते हैं। इस दृष्टि से किसी भी युग में किसी भी राष्ट्र की नारी की स्थिति को ही, संस्कृति का एक मानदंड का माना गया है।
पहले नारी का प्रधान कार्य क्षेत्र कुटुंब था और प्रायः नारियां कौटुंबिक अभ्युदय के लिए अपने व्यक्तित्व का उपयोग करके कुटुंब को सुखी और सफल बनाने में ही अपने जीवन की सफलता मानती थी ।फिर भी असाधारण परिस्थितियों में या असाधारण रूप से विकसित व्यक्तित्व वाली स्त्रियां कौटुंबिक जीवन की परिधि से बाहर समाज में भी महत्वपूर्ण कार्य किया करती थी ,इसमें भी यह विशेषता थी कि सामाजिक कार्य के लिए नारी को कौटुंबिक कर्तव्यों की उपेक्षा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।
समाज में समाज कल्याण के ऐसे कोई केंद्र पृथक नहीं थे ,जहां कार्य करने के लिए नारी को अपने घर से बाहर जाना पड़े।
गृहस्थाश्रम ही समाज कल्याण की प्रधान संस्था थी और प्रत्येक घर समाज सेवा का एक केंद्र था । समस्त प्राणियों के प्रति कार्य भाव, अतिथि सत्कार आदि गृहस्थ आश्रम के धार्मिक कार्य द्वारा होने वाली समाज सेवा प्रत्येक गृहणी से अपेक्षित थी।
दैनिक समाज कार्यों के अतिरिक्त भी गृहणी घर में ही रह कर अपने परिवार के माध्यम से अधिक महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य करती थी। और जीवन में शिक्षा कन्या को बाल्यावस्था से ही मिलती थी तथा व्रत पालन में एवं मातृत्व की भावना में आत्मशक्ति का अभ्यास था ,और अवसर आने पर अपने परिवार के हित के लिए ही अपना सब कुछ त्याग कर भी सर्वोच्च सफलता पाती थी ,और साधारण शक्ति से संपन्न नारियां इस शक्ति का उपयोग कुटुंब की सीमा के बाहर समाज हित के लिए भी करती थी।
अब समय बदल गया है, तकनीकी के विकास के साथ ही महिला का कार्य क्षेत्र बदल गया है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान ,प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए महिलाओं के आर्थिक ,राजनीतिक ,सामाजिक उपलब्धियों एवं कठिनाइयों की सापेक्षता के उपलक्ष में एक उत्सव के तौर पर मनाया जाता है ।
सबसे पहला दिवस न्यूयॉर्क शहर में 19 09 में एक समाजवादी ,राजनीतिक ,कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया गया था ।1917 में सोवियत संघ ने इस दिन को एक राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार 1911 ऑस्ट्रिया, डेनमार्क ,जर्मनी , स्विट्जरलैंड में मनाया गया ।
उसका शताब्दी आयोजन 2011 में मनाया गया इस प्रकार 2021 में दुनिया ने 110 वां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया और 2023 में 112 वां महिला दिवस मना रहे हैं। महिला दिवस मनाने के पीछे उद्देश्य है कि महिलाओं को हर अधिकार प्रदान किए जाएं, जो एक सामान्य नागरिक को किए जाते हैं। जिस दिन रूसी महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। रूस में प्रयोग होने वाले जूनियन कैलेंडर के मुताबिक 23 फरवरी रविवार का दिन था और यही ग्रेगारियन केलेंडर के अनुसार 8 मार्च था। तबसे इसी दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा ।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1996 में पहली बार एक थीम के तहत मनाने की परंपरा शुरू हुई। तब से प्रतिवर्ष इसके लिए एक थीम जारी की जाती है ,उसी के अनुसार आयोजन किए जाते हैं ।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 की थीम Digit All इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी फॉर जेंडर इक्वलिटी ।
इस बार यह खास थीम तैयार की गई है, जिसका उद्देश्य लिंग समानता और सभी महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाना है। इसके लिए नए डिजिटल युग में तकनीकी शिक्षा जरूरी है ।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 की थीम के जरिए उन लड़कियों और महिलाओं की पहचान करना है ,जो परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी शिक्षा की समर्थन कर रही है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दौरान विश्व भर में मौजूद आर्थिक और सामाजिक असमानताओं पर डिजिटल जेंडर गेप के प्रभाव का पता लगाया जाएगा ,साथ ही अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर होने वाले आयोजनों में भी के प्रभाव का पता लगाया जाएगा ,साथ ही महिला दिवस पर होने वाले खास आयोजनों में देश में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा के महत्व और ऑनलाइन प्रकार के संचार के माध्यमों के जरिए आधारित हिंसा को ध्यान में रखकर कार्यक्रम तैयार होंगे।
आज हम सम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं ,और महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनेक उपाय सरकार के द्वारा किए जाते हैं। क्या महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हुई है,? अभी ही बहुत ही हाल में इंदौर की एक फार्मेसी और इंजीनियरिंग कॉलेज की प्राचार्य विमुक्ताशर्मा जी को जिंदा जला देने की घटना, हम सबको बहुत ही अधिक दुख और पीड़ा से भर देने वाली है ।
आज के इस मुद्राराक्षस युग में अपनी अस्मिता और आत्मसम्मान बनाने के लिए हमें स्वयं लड़ाई लड़नी होगी निडर होना होगा ।
बड़े-बड़े पदों पर आसीन महिलाओं को परिवार के कर्तव्य का निर्वाह करना ही पड़ता है और पितृसत्तात्मक समाज में महिला पुरुष से अधिक कम आती हो फिर भी उसकी जगह नंबर दो पर ही होती है।
समय को सावधान होना होगा सोच बदलेगी समाज बदलेगा और बदल तो रहा है फिर भी अभी और भी अधिक बदलने की जरूरत है। महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच को भी बदलना होगा।
महिला सशक्तिकरण क्या है क्या पुरुषों की बराबरी करना ही महिला सशक्तिकरण है। महिला सशक्तिकरण के दृश्य से देखें तो ईश्वर ने स्त्री और पुरुष दोनों की शारीरिक संरचना को अलग-अलग बनाया है और इसलिए हमें शिक्षा का सशक्तिकरण करना है ,हर महिला शिक्षित हो जागरूक हो, महिला शिक्षित होगी तभी वह अपनी आर्थिक ,भौतिक ,मानसिक शारीरिक सुरक्षा कर सकेगी ,और सभी को विचार बदलने होंगे महिलाओं के प्रति अपने विचार बदले , समाज बदलेगा।
समस्याएं पहले भी थी आज भी हैं ,और हर युग में हर समय संघर्ष नारी के जीवन में रहा है केवल उस संघर्ष का स्तर बदल गया है और आज पहले की अपेक्षाएं थोड़ा संकोच कम हुआ है महिलाएं बहुत आगे बढ़ रही हैं । पायलट ऑफिसर बन रही है और सभी कुछ कर रही हैं ,सच पूछो तो आज भी नारी कितना सुरक्षित अनुभव करती है। हम विकास करने विकासशील देशों की ओर हमारा देश अग्रसर है ।कितने भी हम आंदोलन कर ले ,परंतु सच पूछो तो नारी सुरक्षित कहीं नहीं है। मां की कोख में भी नारी सुरक्षित नहीं है तो फिर और कहां पर होंगी।
महाविद्यालयों में भी शिक्षा का सशक्तिकरण आवश्यक है।छात्र-छात्राओं को अध्यापन के दौरान हमें एक नैतिक शिक्षा देनी होगी ,हर कालखंड में अंतिम 5 मिनट में हमें एक ऐसी नैतिक शिक्षा देना ही होगी पुरुषों के प्रति पुरुषों का स्त्री के प्रति सम्मान और स्त्री का पुरुषों के प्रति सम्मान हमें बनाए रखना होगा ।
परिवार और घर से ही मनुष्य को बेटा हो या बेटी उनके लिए घर से ही संस्कारित करना है। इसलिए बेटी के लिए भी और बेटों के लिए माता-पिता को एक मॉडल रोल बनाना होगा और बाल्यावस्था से ही उनको सम्मान देना होगा केस पहले भी होते थे आज भी हैं।
आज फिर भी महिलाएं बहुत अपनी शिकायत दर्ज करा रही हैं ।
महिलाएं आगे आ रहीं हैं। उन्हें परिवार और समाज को समर्थन देना होगा। समाज को अपनी मानसिकता महिलाओं के प्रति बदलना होगी, अन्यथा कितने भी आंदोलन चलाए जाते, महिलाओं की दशा नहीं सुधरेगी। अनेक टी वी सीरियलों में भी नारी ही नारी के विरुद्ध षड्यंत्र रचती है, ऐसे सीरीयल्स का हमें बहिष्कार कर ना होगा। मैं अपने महिला होने पर गर्व महसूसती हूं।
जिंदगी न केवल जीने का बहाना
जिंदगी न केवल सांसों का खजाना
जिंदगी सिंदूर है पूरब का
जिंदगी का काम है सूरज उगाना
⚫ डॉक्टर चंचला दवे
कवयित्री एवं लेखिका
सागर, मध्य प्रदेश