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धर्म संस्कृति : शत्रुंजय तीर्थ पालीताणा में गिरिराज की 99 यात्रा का समापन

मालवा से 100 से अधिक आराधक शामिल

⚫ 7 से लेकर 70 साल तक के करीब 250 आराधक हुए शामिल

हरमुद्दा के लिए नीलेश सोनी
पालीताना/रतलाम, 7 जून। गुजरात के शत्रुंजय तीर्थ पालीताणा में आचार्य श्री हेमचन्द्रसागर सूरिश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री विरागचन्द्रसागर सूरिजी म.सा. की निश्रा में गिरिराज की 99 यात्रा का समापन हो गया। जिसमे 7 से लेकर 70 साल तक के करीब 250 आराधक शामिल हुए।

पालीताणा में 45 दिन से अधिक समय तक शाश्वत परिवार द्वारा आयोजित यात्रा में मालवा अंचल के रतलाम, जावरा, नामली, सैलाना, बाजना सहित मंदसौर, नीमच, धार, इंदौर एवं उज्जैन जिले से कोई 100 से अधिक युवाओं ने तपपूर्वक हिस्सा लिया। तप – धर्म आराधना के साथ उन्होंने राष्ट्र, धर्म, संस्कृति,पर्यावरण और तीर्थ सुरक्षा के भी संकल्प लिए। समापन अवसर पर गिरिराज वधामणा, गिरिराज पूजन, विभिन्न ललित कला स्पर्धा के साथ शाही पारणा, बहुमान, विदाई समारंभ आदि आयोजन हुए।

इस वर्ष ऐतिहासिक 11 वी यात्रा

बहुमान करते हुए

शाश्वत परिवार द्वारा आयोजित यात्रा के मुख्य लाभार्थी मातु श्री रजनीबेन रश्मिकांत कंपाणी परिवार रहे। मुख्य संचालक रमेश संघवी ने बताया कि ग्रीष्मकालीन अवकाश में प्रतिवर्ष गिरिराज की 99 यात्रा का आयोजन विगत 11 वर्ष से किया जा रहा है। भीषण गर्मी के बावजूद देशभर से इस यात्रा में शामिल होने के लिए बच्चों से लेकर युवा तक बड़ी संख्या में पहुंचते है। इस वर्ष भी कोई 250 से अधिक छोटे बड़े तपस्वी आराधक यात्रा में शामिल हुए। जिनमे मालवा अंचल के आराधक सर्वाधिक रहे। विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं में उच्च पदों पर आसीन आराधक भी यात्रा में शामिल हुए।

कठिन तप के साथ यात्रा

99 यात्रा में शामिल आराधकों ने एकासना करते हुए गिरिराज की प्रतिदिन तीन यात्रा की। सुबह शाम प्रतिक्रमण, प्रवचन और भक्ति के साथ अन्य कार्यक्रमों में आराधकों में श्रद्धापूर्वक हिस्सा लिया। मुनिराज श्री हिमांशुचन्द्रसागर जी म.सा ने निर्जल तप आराधना के साथ यात्रा की। यात्रा में सात साल के सबसे छोटे और सत्तर साल के सबसे बड़े आराधक शामिल हुए। पांच आराधक ऐसे रहे, जिन्होंने 42 डिग्री के तापमान में निर्जल दो उपवास करके सात यात्रा की। चार आराधकों ने तो मात्र 28 दिन में ही 99 यात्रा पूर्ण की। सात से लेकर चौदह साल के चार आराधकों ने आयम्बिल तप के साथ पांच यात्राएं पूर्ण की।

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