धर्म संस्कृति : मन पर नियंत्रण से ही योग और राजयोग का मार्ग होता है प्रशस्त
⚫ बीके गीता दीदी ने कहा
⚫ आबू रोड के शांतिवन कैंपस के डायमंड हॉल में हुआ आयोजन
⚫ हजारों हजार से एक ही प्रश्न पूछा आप कौन हो, जवाब सभी का लगभग गलत ही था
हरमुद्दा
आबूरोड, 9 सितंबर। समाज में विडंबना यही है कि व्यक्ति को स्वयं पता नहीं कि वह क्या है? क्यों है? किस लिए है? बस एक नाम मिला है। गोत्र मिला है। उसी में खोया रहता है। चाहे वह महिला हो या पुरुष हो लेकिन जिंदगी भर यह नहीं जा पाया कि वह क्या है? उसका कर्तव्य क्या है? उसका नियंत्रण किस पर कितना होना चाहिए। जिसने स्वयं पर नियंत्रण करना सीख लिया। इंद्रियों को अपने वश में कर लिया। वह धीरे-धीरे स्व की ओर बढ़ता जाएगा। यही बातें योग की ओर ले जाती है। योग से राज योग की ओर मार्ग प्रशस्त होता है।
यह विचार बीके गीता दीदी ने व्यक्त किए। बीके गीता दीदी आबू रोड के शांतिवन कैंपस में डायमंड हॉल में मौजूद हजारों हजार लोगों को स्व को जानने के लिए प्रेरित कर रही थी।
आत्मा को जानना जरूरी
देशभर से आए मीडिया कर्मियों के अलावा अन्य डेलिगेट्स को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जब हम अपना परिचय देते हैं तो अपना नाम अपना, शारीरिक व्यक्तित्व के बारे में जानकारी देते हैं, लेकिन स्वयं के बारे में हम अनभिज्ञ रहते हैं। उस शरीर की जानकारी हम देते हैं, जो नाशवान है लेकिन जो अजर अमर है। अविनाशी है। उस आत्मा के बारे में हम जान नहीं पाते। जरूरत है हमें आत्मा के बारे में जानने की। जिन्होंने आत्मा को जान लिया, अपने आप को पहचान लिया, उसे किसी और को जानने की पहचान नहीं की जरूरत नहीं है। यही योग की शुरुआत है। योग से ही राजयोग का मार्ग प्रशस्त होता है।
हमारा धर्म होना चाहिए आत्मा को सवारना
देखा जाए तो शरीर पंचतत्व से बना है और पंचतत्व में मिल जाना है। उसका अभियान, उसका अहंकार, उसका गुमान क्या करना। आत्मा को सवारना ही हमारा धर्म होना चाहिए। आत्मा के गुण सुख, शांति, आनंद, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति है। यह सब मनुष्य में होने चाहिए, मगर व्यक्ति के मन में जब देखो, तब क्रोध, लोभ, मोह, काम यह सभी विकृतियों घर कर लेती है। यह ऐसा मायाजाल है जिसमें व्यक्ति फंसता चला जाता है और जिस आनंद के लिए वह इस धरा पर आया है, उसे भूल जाता है। चंचल मन नैसर्गिक आनंद से विमुख कर देता है।
मन पर करें बुद्धि से नियंत्रण, संस्कारित होगा जीवन
खास बात तो यह है कि आत्मा पर मन, बुद्धि और संस्कार का अधिकार होता है मगर मन की चंचलता के चलते ही व्यक्ति भटक जाता है। वजह सिर्फ यही है कि मन पर बुद्धि का नियंत्रण नहीं रह पाता है। जब मन पर बुद्धि नियंत्रण कर लेगी तो स्वतः ही जीवन में संस्कार का आगमन हो जाएगा। दुनिया आपका कर्म क्षेत्र है, मगर आपको अपना धर्म का निर्वाह भी करना है। यह सब कुछ बिना नियंत्रण के संभव नहीं है। इन सबको मस्तिष्क नियंत्रित करता है। इसीलिए हम कुमकुम अक्षत मस्तिष्क पर लगाते हैं। उसकी साधना करते हैं, मगर होता यही आया है कि यह केवल एक दिखावा हो गया है, मस्तिष्क पर तिलक, बुद्धि और मन को नियंत्रित करता है। संस्कार को बढ़ावा देता है।
सही रास्ते का किया अनुभव
शनिवार सुबह 7:00 बजे से शुरू हुए सत्र का समापन 8:30 बजे हुआ। इस दौरान पेन ड्राइव साइलेंट में लोगों ने अपने मन की आंखें खोली और जाना कि अब तक जो कर रहे हैं वह रास्ता गलत है। सही रास्ता क्या है? यह उन्होंने अनुभव किया। कार्यक्रम की समन्वयक बीके योगिनी दीदी रही।