धर्म संस्कृति : चतुर बनने के चार मास का नाम है चातुर्मास

उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने कहा

छोटू भाई की बगीची में प्रवचन

हरमुद्दा
रतलाम, 25 नवंबर। चतुराई के साथ बोले गए मीठे वचन सारे विवाद खत्म कर देते है। चतुराई से बोलने का मतलब अपनी आत्मा को बचाते हुए बोलना होता है। चतुर ऐसे व्यक्ति को बोला जाता है,जो अपनी आत्मा और भावों को बचाकर बोलता है। चातुर्मास चतुर बनने के चार मास का नाम है। इसमें प्रतिदिन गुरू मुख से जीवन जीने की कला सीखना चाहिए और अधिक से अधिक चतुर बनने का प्रयास करना चाहिए।


यह बात उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में आयोजित प्रवचन में उन्होंने कहा कि चतुर बनने के लिए विवेक से बोलना होता है। विवेक का मतलब थोडा बोलना, काम पडे तो बोलना, मीठा बोलना, चतुराई से बोलना और अहंकार से रहित बोलना है। विडंबना है कि आज लोग परिवार में तो अहंकार से बोलते ही है लेकिन धर्म स्थान में भी अहम में बोलने लगे है। अहंकार दीर्घकालीन संबंधों को अल्पकालीन बनाता है।

झूठ नहीं होता चतुराई में

उपाध्यायश्री ने कहा कि जीवन में जब भी विवाद की स्थिति बने, तो चतुराई पूर्वक बोलना चाहिए। चतुराई में झूठ नही होता, अहम नहीं होता और कपट भी नहीं रहता। वर्तमान में लोग अहंकार में बोलते है और विवाद की स्थिति बनने का बहाना जनरेशन गेप को बनाते है। लेकिन जनरेशन गेप पिता-पुत्र और दादा-पोता में हो सकती है, पति-पत्नी में कहां होती है। उनके बीच में कौन सा जनरेशन गेप होता है ? उन्हें क्यों कोर्टों के चक्कर खाना पड रहे है ? इस पर सबकों विचार करना चाहिए और हमेशा चतुराई से बोलने का प्रयास करना चाहिए।

आत्मा और भावों को बंधन में बांधने का कार्य नहीं करें

उपाध्याय श्री ने कहा कि गौशालक ने भगवान महावीर की बात नहीं मानी, तो आपकी स्थिति क्या है ? चतुराई से बोलते समय यदि कोई नहीं माने, तो निराश नहीं हो और ये समझ ले कि सामने वाले का उदय भाव भी वैसा ही है। सामने वाले के लिए कभी अपनी आत्मा और भावों को बंधन में बांधने का कार्य नहीं करे।

तेले के लिए प्रत्याख्यान

आरंभ में सेवानिष्ठ श्री अनुपम मुनिजी मसा ने संबोधित किया। इस मौके पर कनेरा विजय बरडिया में 24 उपवास, ताल के श्रेयांस चाणोदिया ने 8 उपवास और रतलाम के निलेश पिरोदिया ने तेले के प्रत्याख्यान लिए। प्रवचन में बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।

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