धर्म संस्कृति : हमारे भीतर ही हैं सुख और आनन्द
⚫ मुख्य वक्ता कैवल्य स्मार्त ने कहा
⚫ ओरो आश्रम में “पूर्णयोग” विषय पर पांँच दिवसीय शिविर आरम्भ
⚫ दिव्य देहांश स्थल पर हुआ सामूहिक ध्यान
⚫ मध्य प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी आए साधक
⚫ यशपाल तंवर
रतलाम, 5 दिसंबर। हमारे भीतर ही ज्ञान, संतोष, प्रेम, शक्ति, आनन्द और सुख है मगर हम इन्हें बाहर खोजते फिरते हैं। हमारी स्थिति कस्तूरी मृग जैसी है। हृदय की गुफा की गहराई में दिव्य विराजमान है और हमारे योग की प्रथम क्रिया भी भीतर जाने की क्रिया ही है। हम अनन्त शक्ति, अनन्त ज्ञान और अनन्त आनन्द की अभीप्सा करते हैं मगर इसके लिए हमें ही अनन्त बनना पड़ेगा।
यह विचार श्रीअरविन्द सोसायटी,सूरत से आए मुख्य वक्ता कैवल्य स्मार्त ने व्यक्त किया। श्री स्मार्त श्रीअरविन्द मार्ग स्थित ओरो आश्रम शुरू हुए पांच दिवसी शिविर में संबोधित कर रहे थे। रतलाम में मंगलवार से “पूर्णयोग” विषय पर पांँच दिवसीय स्वध्याय, साधना, सत्संग, समागम शिविर आरम्भ हुआ।
सभी बने सामर्थ्यवान
पहले दिन शिविर को संबोधित करते हुए पूर्णयोग में प्रभु हमसे उनके कार्य में जुड़ने की अपेक्षा करते हैं। अतः हम श्रीमांँ के सामर्थ्यवान बच्चे बने। हमारा प्रयास इसी दिशा में होना चाहिए।
समाधि पर हुआ सामूहिक ध्यान
प्रारम्भ में श्रीअरविन्द के दिव्य देहांश स्थल (समाधि) पर सामूहिक ध्यान हुआ। मातृकक्ष में प्रणाम के पश्चात श्री कैवल्य भाई ने श्रीअरविन्द और श्रीमांँ के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर शिविर का शुभारंभ किया। वरिष्ठ साधक रमेशचन्द्र पाठक ने शिविरार्थियों का स्वागत किया। सुश्री ऋतम् उपाध्याय ने वन्दना प्रस्तुत की। शिविर में हरिद्वार, इंदौर, बड़ोदा, झालोद, झांसी, धार, चित्तौड़गढ़ और रतलाम के श्रद्धालु उपस्थित रहे।