विचार सरोकार : अंत:करण की आवाज, निष्पक्ष न्याय की आवाज

सरोज शर्मा

मनुष्य की समस्त गतिविधियों का निर्देशक उसका अन्त:करण ही होता है। हमारे हर कर्म के संकल्प के साथ अंत:करण उसके उचित-अनुचित को बताता है। इसीलिए दार्शनिक पुनशन ने कहा-

⚫ “कायरता पूछती है – क्या यह भय रहित है?

⚫ औचित्य पूछता है – क्या यह व्यवहारिक होगा?

⚫ अहंकार पूछता है -क्या यह लोकप्रिय है?

⚫ परंतु अंत: करण पूछता है -क्या यह न्यायोचित है?”

अत: अंत:करण की आवाज निष्पक्ष न्याय की आवाज है, परंतु अंत:करण की ऐसी आवाज सुनाई पड़े, इसके लिए अंत:करण का निर्मल होना अत्यंत आवश्यक है। अंतः करण निर्मल होने का मार्ग यही है कि अपने विचार, भाव, उद्देश्य, लक्ष्य दूसरों की सेवा और परमात्मा की प्राप्ति का हो, तभी अन्तःकरण शुद्ध होगा।

उनके हृदय होते हैं कमजोर

कहने का तात्पर्य यह है कि अन्याय, अत्याचार करने वालों के हृदय कमजोर हो जाते है, इसलिए वे भयभीत होते हैं। जब मनुष्य अन्याय आदि को छोड़कर अपने आचरणों एवं भावों को शुद्ध बनाता है, तब उसका भय मिट जाता है।

⚫ जय श्रीमद्भागवत गीता। जय सनातन धर्म

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