शख्सियत : पर्यावरण विनाश को रोका जाना अनिवार्य
⚫ आहार विशेषज्ञ, पर्यावरण संरक्षण अभियान में सक्रिय तथा कवयित्री डॉ. सलोनी चावला का मानना
⚫ प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन व आबादी में वृध्दि भी है। दुनिया के नौ देशों में सर्वाधिक भुखमरी है, इनमें बरूंडी, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, कांगो रिपब्लिक, लेसोथो, मेडागास्कर, नाइजर, सोमालिया, दक्षिण सूडान और यमन शामिल हैं। वहीं भारत सहित अन्य 34 देशों में भी स्थिति गंभीर बनी हुई है। ⚫
⚫ नरेंद्र गौड़
’संतुलित भोजन शरीर की ऊर्जा बढ़ाता है और यह शरीर के कार्यों के तरीके में सुधार लाता है। यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूत करता है। संतुलित आहार एक ऐसा आहार है जिसमें कुछ निश्चित मात्रा तथा अनुपात में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे विटामिन, खनिज और अन्य पोषण संबंधी आवश्यक तत्व संतुलित मात्रा में मौजूद होते हैं। इसके अलावा भोजन हमें प्रकृति से प्राप्त होता है, लेकिन पर्यावरण प्रदूषण के कारण शुध्द भोजन मिलना भी दूभर हो चला है। पर्यावरण विनाश को नहीं रोका गया तो भावी पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी।’
यह बात जानी मानी आहार विशेषज्ञ, पर्यावरण संरक्षण अभियान में सक्रिय तथा कवयित्री डॉ. सोनाली चावला ने चर्चा में कही। इनका मानना है कि ’भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों में आज भयंकर खाद्य संकट है और अनेक लोग भुखमरी के शिकार हैं। इसके राजनीतिक कारण होने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन व आबादी में वृध्दि भी है। दुनिया के नौ देशों में सर्वाधिक भुखमरी है, इनमें बरूंडी, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, कांगो रिपब्लिक, लेसोथो, मेडागास्कर, नाइजर, सोमालिया, दक्षिण सूडान और यमन शामिल हैं। वहीं भारत सहित अन्य 34 देशों में भी स्थिति गंभीर बनी हुई है।
मुफ्त अन्न योजना सरकार की मजबूरी
इनका कहना था कि भारत सरकार को गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत पांच किलो गेहूं या चावल मुफ्त देना पड़ रहा है। यदि यह योजना लागू नहीं की जाती तो लाखों लोग भूखों मर जाते! शरीर में पर्याप्त पोषक तत्वों की कमी के कारण कुपोषण होता है। संतुलित आहार का खर्च उठाना आम आदमी के बस में नहीं है और गरीबी के लिए शासन प्रशासन भी कम जिम्मेदार नहीं है।
डॉ. सलोनी चावला का परिचय
डॉ. सलोनी मामूली नाम नहीं हैं, उन्हें अभी तक 43 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। आप हिंदी की जानी मानी कवयित्री भी हैं। फरीदाबाद, हरियाणा निवासी सलोनी जी पेशेवर रूप से पोषण वैज्ञानिक तथा आहार विशेषज्ञ हैं। इन्होने दिल्ली के लेडी इर्विन कॉलेज से फूड एण्ड न्यूट्रीशन विषय में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की है। इसके अलावा इन्होंने ’इस्टीट्यूशनल मेनेजमेंट एण्ड डायटिक्स’ में विशेष योज्ञता प्राप्त की है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान अस्पताल में आपने इंटर्नशिप की थी। वर्ष 2023 में वर्ल्ड पीस इस्टीट्यूट ऑफ यूनाइटेड नेशन्स व्दारा इन्हें ’आनरेरी डाक्ट्रेट इन हेल्थ एज्यूकेशन’ सम्मान प्रदान किया जा चुका है। इसके अलावा आपके पास राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान में रिसर्च, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान अस्पताल में आहार विशेषज्ञता, एपीजे स्कूल में पढ़ाने एवं राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान में पोषण एवं आहार शिक्षा के कार्य का अनुभव भी है। आप स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में शोध पत्रों की भी प्रस्तुति दे चुकी हैं।
दो यूट्यूब चैनल
डॉ. सलोनी जानी मानी कवयित्री, शायर, गीत एवं संगीतकार भी हैं। इनके ’खामोशी की गूंज सलोनी चावला’ तथा ’इकोज ऑफ सायलेंस सनलोनी चावला’ नाम से दो यूट्यूब चैनल भी हैं। अनेक रेडियो स्टेशनों तथा न्यूज चैनलों पर कविताएं, आलेख व 11 इंटरव्यू प्रसारित हो चुके हैं। चार एकल कविता संकलन के अलावा 25 अन्य संयुक्त संकलनों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। इनकी दो कविताएं ’गोल्डन बुक ऑफ रिकार्ड्स’ में भी दर्ज हैं। आप स्वास्थ्य को लेकर भी कविताओं की एक किताब लिख चुकी हैं जो कि ’लंदन बुक ऑफ रिकार्ड्स’ में दर्ज है। आपकी कविताओं के विषय जीवन, प्रकृति, संगीत, पोषण, विश्वशांति, पर्यावरण, देशभक्ति आदि हुआ करते हैं। आप सुमधुर स्वरों में रचना पाठ भी करती हैं जिसे श्रोताओं व्दारा खूब सराहा जाता है। विश्व कविता दिवस के अवसर पर आपको भावना कला एवं साहित्य फाउंडेशन व्दारा ’अखिल भारतीय काव्य शिरोमणि’ सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इसके साथ ही अनेक पुरस्कार भी मिल चुके हैं जिन्हें लेकर ही एक अलग पुस्तक लिखी जा सकती है।
प्रकाशित रचनाएं
आप हिंदी के साथ ही अंग्रेजी में भी कविताएं लिखती हैं। आपकी अंग्रेजी में लिखी कविताओं का संकलन ’इकोज ऑफ सायलेंस’ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुका है। शायरी तथा गजलों का संकलन ’बंद होंठों की जुबां’, हिंदी कविताओं का संकलन ’खामोशी की गूंज’, गीत संकलन ’धरती से अंबर तक’ छपे हैं। इनके अलावा करीब 20 संयुक्त संकलन हैं भी प्रकाशित हैं।
चुनिंदा कविताएं
“बादल : आज़ाद या कैदी”
देखने से लगता है, बहुत आज़ाद हो तुम,
मगर सच्चाई यह है कि, हवा से कैद हो तुम।
उड़ने का रुख हो या उड़ने की रफ़्तार तुम्हारी,
हुक़्म हवा का ही सारा, नहीं मर्ज़ी तुम्हारी।
अपनी मर्ज़ी से तो सिर्फ छल छल रो सकते हो तुम,
या गुस्से से गुर्रा कर, बिजली ढा सकते हो तुम।
चलो कम से कम रोने का और क्रोध का हक है तुमको,
धरती पर तो वह भी हैं – यह हक नहीं है जिनको।
अश्क तुम्हारे समेटने
को धरा नसीब है तुमको,
वह भी हैं रोने को आँचल नहीं नसीब है जिनको।
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“संगीत, कुदरत और मेरा प्रेम”
दम तोड़ूंगी मैं अपना संगीत की बाहों में,
कुदरत की गोदी में, हरियाली की राहों में।
सांसों की माला के मोती इक दिन बिखरेंगे,
माटी पर अपने कदमों के निशान निखरेंगे।
भर लूंगी बीता जीवन मैं बुझती निगाहों में,
दम तोड़ूंगी मैं अपना, संगीत की बाहों में।
दर्द को सहने वाले दर्द से क्या घबराएंगे,
सुख-दु:ख दोनों भेंट प्रभु की, सहते जाएंगे।
दुआ है ना हो किसी भी कर्म की गिनती गुनाहों में,
दम तोड़ूंगी मैं अपना, संगीत की बाहों में।
नर ने काटा पेड़ वही, दी जिसने उसे छाया,
पेड़ ने फिर भी वैरी-दोस्त में फ़र्क नहीं पाया।
छेड़ूंगी अंतिम सरगम कुदरत की पनाहों में,
दम तोड़ूंगी मैं अपना, संगीत की बाहों में,
कुदरत की गोदी में, हरियाली की राहों में।
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“माला नहीं बनती”
जीवन के अंधेरे में, आशा के टुकड़े पिरोती हूं,
फिर भी, माला नहीं बनती।
पतझड़ का मौसम नहीं है, पत्ते झड़ते क्यों,
सावन का संदेश नहीं, फिर नैना बरसें क्यों ?
नज़रों की धरती में, अरमां के बीज मैं बोती हूं,
फिर भी, कलियां नहीं खिलतीं।
शांत हैअंबर, दिल में क्यों तूफान उठा जाए,
बादल का कोई नाम नहीं, क्यों बिजली चमकी जाए।
तारों की टिम-टिम से, इक लौ मैं छुप कर चुराती हूं,
फिर भी, बाती नहीं जलती।
एक कदम नीचे खाई, दूजे नीचे सागर,
झकझोरों में ज़िंदगी, मैं रखूं पांव किधर।
मैं नाखुदा पकड़े, सब ओर से ज़ोर लगाती हूं,
फिर भी, नईया नहीं चलती।
जीवन के अंधेरे में, आशा के टुकड़े पिरोती हूं,
फिर भी, माला नहीं बनती।
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“मानव – मूल्य”
नाम, शौहरत, दौलत, कुर्सी – सब यहीं रह जाएंगे,
साथ अगर कुछ जाएगा – तो कर्म तुम्हारे जाएंगे।
सो ले कोई चाहे कितने भी चांदी के बिछौनों पर,
शव सभी के अंतिम लोरी धरती पर ही पाएंगे।
बांटने वाले हर शय जग की लाख मज़हब के टुकड़ों में,
साँसों में बहती प्राण-वायु कैसे बांट पाएंगे।
लाख समझ लें गलत, सही को, झूठ को समझें सच्चाई,
दिन को रात समझने वाले खुद ही धोखा खाएंगे।
सत्य और न्याय के मूल्यों को हटा दिया जब कर्मों से,
सिर्फ़ किताबों में रहकर यह लफ़्ज़ क्या इज्ज़त पाएंगे।
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गज़ल
“कला की नज़र”
कला की नज़र से देखो तो, दुनिया खूबसूरत है,
ज़िंदगी का क्या कहना, मौत भी खूबसूरत है।
अंधेरों का तजुर्बा नहीं, तो रौशनी की कद्र कहाँ,
खुशी का होने को एहसास, दर्द की भी ज़रूरत है।
रब की तराशी हर शय में, पाई कोई कमी नहीं,
पाया क्या, कि इंसान का, ज़मीर की बस बदसूरत है।
चाहत से मिलती नहीं खुशी, चाहत से हटता गम भी नहीं,
हर होनी-अनहोनी में, वक्त का ही महूरत है।
कला की नज़र से देखो तो दुनिया खूबसूरत है,
ज़िंदगी का क्या कहना, कायनात खूबसूरत है।