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साहित्य सरोकार : कई भाषाओं और बोलियों में साहित्य रचा अमीर खुसरो ने

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शायर सिद्दीक़ रतलामी ने कहा

जनवादी लेखक संघ की विचार गोष्ठी में हुई सार्थक साहित्य पर चर्चा

हरमुद्दा
रतलाम, 24 फरवरी। अमीर खुसरो प्रथम मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिंदी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी, हिन्दवी और फ़ारसी में एक साथ लिखा। उन्हे खड़ी बोली के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है। वे अपनी पहेलियों और मुकरियों के लिए जाने जाते हैं। सबसे पहले उन्हीं ने अपनी भाषा के लिए हिन्दवी का उल्लेख किया था। उनके नब्बे ग्रंथ की रचना की। साथ ही इनका इतिहास स्रोत रूप में महत्त्व है। अमीर खुसरो को तोता-ए-हिंद कहा गया।


यह  विचार जनवादी लेखक संघ द्वारा ‘अमीर खुसरो: शायरी और शख्सियत ‘ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में शायर सिद्दीक़ रतलामी ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि वे चौदहवीं सदी के लगभग दिल्ली के निकट रहने वाले एक प्रमुख कवि, शायर, गायक और संगीतकार थे। उनका परिवार कई पीढ़ियों से राजदरबार से सम्बंधित था। अमीर खुसरो ने 8 सुल्तानों का शासन देखा था। किशोरावस्था में उन्होंने कविता लिखना प्रारम्भ किया और बीस वर्ष के होते होते वे कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गए। खुसरो में व्यावहारिक बुद्धि की कोई कमी नहीं थी। सामाजिक जीवन की खुसरो ने कभी अवहेलना नहीं की। खुसरो ने अपना सारा जीवन राज्याश्रय में ही बिताया।


प्रो.रतन चौहान ने कहा कि खुसरो ने भाषाओं को एक साथ मिलाकर समाज के सामने लाने का महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि सियासत दिलों को दूर करने का प्रयास करती है जबकि साहित्य दिलों को पास लाकर सरहदों को मिटाने का कार्य करता है।

कवि प्रणयेश जैन ने कहा कि किसी भी चरित्र को वैज्ञानिक आधार पर महसूस किया जाना चाहिए। अतिशयोक्ति का वर्णन कई बार संदेहों को जन्म देता है।

गीतकार हरिशंकर भटनागर ने कहा कि राजदरबार में रहते हुए भी खुसरो हमेशा कवि, कलाकार, संगीतज्ञ और सैनिक ही बने रहे। साहित्य के अतिरिक्त संगीत के क्षेत्र में भी खुसरो का महत्वपूर्ण योगदान है।

कवि यूसुफ जावेदी ने कहा कि खुसरो ने भारतीय और ईरानी रागों का सुन्दर मिश्रण किया और एक नवीन राग शैली इमान, जिल्फ़, साजगरी आदि को जन्म दिया I उनका योगदान संगीत को भी समृद्ध करता रहा।
संचालन करते हुए आशीष दशोत्तर ने कहा कि भारतीय गायन में क़व्वालीऔर सितार खुसरो की देन माना जाता है। उन्होंने गीत के तर्ज़ पर फ़ारसी में और अरबी ग़जल के शब्दों को मिलाकर कई पहेलियाँ और दोहे भी लिखे। विचार गोष्ठी में दिनेश उपाध्याय, प्रकाश हेमावत, आशारानी उपाध्याय, मांगीलाल नगावत, सत्यनारायण सोढ़ा ने भी सहभागिता की।

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