शख्सियत : गरीब मुस्लिमों का दर्द भी लेखन के जरिए उजागर कीजिए ज़नाब

साहित्यकार सूफिया जै़दी का मानना

नरेंद्र गौड़

’आजकल की कविता जिसे आधुनिक कविता कहा जाता है, उसके चुनिंदा हिंदू रचनाकारों ने ही मुस्लिम समाज और उसकी गरीबी को लेकर कहीं कुछ लिखा है, कविता छोड़, उन मुफलिसों के बारे में कहानी, लघुकथा भी मुश्किल से मिलती है।

यह बात जानी मानी कवयित्री सूफिया ज़ैदी ने कही। इनका मानना है कि हमारे समय की राजनीति को भी सिर्फ चुनाव के दिनों ही हाशिये से बाहर के लोग याद आते हैं। जब भी वोट की गुहार लगानी होती है, तब ही नाक पर रूमाल रखकर मुसलमानों के मोहल्ले में राजनेता और उनके नुमाइंदे प्रवेश करते हैं। वहीं अपने को समकालीन, जनवादी, प्रगतिशील होने का तमगा छाती पर टांगने वाले लेखक तो इन गरीबों के दर्द से मेहरूम ही हैं। मै पूछती हूं कि ’यह आपका कैसा लेखन है जो देश की एक बड़ी मुस्लिम आबादी की पीड़ा उजागर करने से गुरेज करता है? मेरा लेखकों से यही कहना है कि गरीब मुस्लिमों के दुख दर्द को भी अपनी रचना का हिस्सा बनाइए।

पांच किलो राशन पर गुजारा

इनका मानना है कि भारत को आजाद हुए 77 बरस बीत चुके, लेकिन आज हालत यह है कि मुस्लिमों का एक बड़ा तबका पांच किलो सरकारी राशन पर गुजर बसर कर रहा है। एक आरोप यह भी उन पर मढ़ दिया जाता है कि मुस्लिमों में आबादी तेजी से बढ़ती है, जबकि यह सरासर झूठ है। यह कौम भी परिवार सीमित रखने के फायदों को समझ चुकी है।

हिंदुस्तान के मुसलमानों में विविधता

सूफिया जै़दी ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक भारत में करीब बीस करोड़ मुस्लिम रहते है और अगर जनगणना होती है तो इससे कहीं अधिक होंगे। यह ब्रिटेन, स्पेन और इटली की कुल जमा आबादी है। दुनिया के किसी भी देश में मुसलमानों की यह तीसरी सबसे ज्यादा बड़ी आबादी है और हिंदुस्तान के मुसलमानों में जितनी विविधता देखने को मिलती है, वो किसी और देश के मुसलमानों में नहीं दिखाई देती।

दुनिया के तमाम मुसलमान एक

सूफिया जैदी का कहना था कि पिछले 1,400 वर्षो में हिंदुस्तान के मुसलमान ने खान-पान, शायरी, संगीत, मुहब्बत और इबादत का साझा इतिहास बनाया है और जिया है। इस्लामिक समुदाय दुनिया के सारे मुसलमानों को एक बताता है, यानी इसके मानने वाले सब एक हैं, लेकिन भारतीय मुसलमान जिस तरह आपस में बंटे हुए हैं, वो इस्लाम के इस बुनियादी उसूल को ही नकारता है। भारत में मुसलमान सुन्नी, शिया, बोहरा, अहमदिया और न जाने कितने कितने फिरकों में बंटे हुए हैं। हिंदुओं की तरह भारत के मुसलमान भी सामाजिक बंटवारे के शिकार हैं। उच्च जाति को अशराफ़, मध्यम वर्ग को अजलाफ और समाज के सबसे निचली पायदान पर रहने वाले मुसलमानों को अरजाल कहा जाता है। सूफिया जैदी का कहना था कि हिंदुस्तान में मुसलमान भौगोलिक दूरियों के हिसाब से भी बंटे हुए हैं और देश में इनकी आबादी बिखरी हुई है।

मुस्लिमों में नामी गिरामी हस्ती

सूफिया जी का कहाना था कि अगर मुस्लिम शायरों की बात की जाए तो मिर्जा गा़लिब, मीर तकी मीर, दाग़ देहलवी, बहादुर शाह जफ़र, मोमिन खां मोमिन, अल्लामा इकबाल, फै़ज़्ा अहमद फै़ज़, गुलजार, जावेद अख्तर, सरदार जाफरी, फिराक गोरखपुरी, साहिर लुधियानवी, बशीर बद्र, मजरूह सुल्तानपुरी, राहत इंदौरी, परवीन शाकिर, निदा फाजली, अहमद फराज, वसीम बरेलवी, जौन एलिया, अकबर इलाहबादी नामी मुस्लिम शायर हुए हैं। इन्होंने उर्दू शायरी के क्षेत्र में जो बुलंदी हासिल की है, उसे शायद ही कोई छू पाएगा। इसी प्रकार गायक एवं संगीतकारों में में उस्ताद अमीर खां, बशीर खां, बेगम अख्तर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, उस्ताद बडे गुलाम अली, मोहम्मद रफी, तलत मेहमूद आदि की लम्बी परंपरा रही है। इन सभी ने भारत को संास्कृतिक मुकाम दिया है, लेकिन आज चंद लोग वोट की खातिर हिंदू मुसलमान को आपस में बांटना चाहते हैं।  

अनेक विधाओं में शोहरत

मालूम हो कि सूफिया जै़दी कविता, गजल, मुक्तक, दोहे, कहानी, लघुकथा, संस्मरण आदि विधाओं में भरपूर शोहरत हासिल कर चुकी है और इनके पाठकों का एक बड़ा तबका है। इन्हें साहित्य सजग प्रहरी, साहित्य सजग सिपाही और फिराक़ गोरखपुरी सम्मान से नवाजा जा चुका है। भोपाल से प्रकाशित ’निर्दलीय’, दिल्ली से प्रकाशित ’इन दिनों’, ’स्वासित’, ’उदीप्त’, ’काव्यांजली’ के साथ ही अनेक पत्र-पत्रिकाओं इनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी रचनाएं साझा कविता संकलनों में भी शामिल हैं जिनमें आधुनिक भारत के गज़लकार, जिंदगी, क्षणिकामणि उल्लेखनीय हैं। इनका एक कविता संकलन भी प्रकाशित हुआ है जो ’मां का आॅचल’ नाम से चर्चित है। आप गृहणी हैं और इन दिनों सहारनपुर उत्तर प्रदेश में रह रही हैं।


सूफिया जै़दी की चुनिंदा कविताएं


तू चल तो सही

राह में रुकावटें हों या,
उठे तुम पर उँगलियाँ ।
परवाह न कर किसी की
हिम्मत से तू चल तो सही।
कर रही मंज़िल
तेरा इन्तज़ार,
फूल बिखरे राह में बेशुमार।
इससे पहले कि हो जाए अँधेरा ,
छूट न जाए उम्मीद का सवेरा।
मुस्कुराहट को अपनी
देने के लिए वजह
हिम्मत से तू चल तो सही।
नहीं बहेंगे अब आँखों से आँसू,
होंगे सभी पूरे ख्वाब अधूरे।
छू ली अगर उँचाई गगन की,
रहेंगे न जीवन में अँधेरे।
सितारों जैसे चमकने के लिए
हिम्मत से तू चल तो सही।

ज़िंदगी बदल गई

घर की चारदीवारी में
कैद थे कई सपने।
घुटती थी साँस मगर
जबरन एक मुस्कान
चस्पानी पड़ती थी
लबों पर अपने।
खिड़कियों से ताँकती थी आसमान।
उड़ते परिंदों को देखकर
उड़ान भरने को होता था मन।
फिर एक दिन,
तोड़कर सारे बन्धन
खुले आसमान के नीचे
महसूस हुआ कि
अब साँस में घुटन नही,
तो मेरी ज़िंदगी बदल गई।
मेरी मुस्कान मेरे चेहरे पर खिल गई।
अब मौसम कोई भी हो,
नही सताता मुझे डर।
न सर्दी गर्मी की परवाह,
न बारिश में भीगने की फिक्र।
देखती हूँ जब पूरे होते सपने,
तो मन करता है भरूँ ऊँची  उड़ान।
अब क़ैद नही हूँ मैं,
भाने लगा है मुझे ये जहान।
क्युँकि
ज़िंदगी बदल गई है,
मुझे मेरी खुशी मिल गई है।

माँ के नाम पाती

माँ
जब तुम हँसती हो,
तो मुझे अच्छी लगती है
ये सारी कायनात।
होती है जब
आँख तुम्हारी नम,
तो एक दरिया सा बहता हुआ
महसूस होता है अपने आस-पास।
थक जाती हो जब तुम,
तो जीवन जैसे ठहर जाता है।
नाराज़ जब होती हो,
सारा जहान दुशमन नज़र आता है।
सो जाती हो जब
तो एक सुकून सा महसूस होता है।
जगने पर माँ तुम्हारे,
एक नया सवेरा होता है।
तुमसे मिलती मुझको हिम्मत,
तुमसे ही है जीवन मेरा।
होता है तुम्हे देखकर
पूरा मेरा ख्वाब अधूरा।

कलम

उथल पुथल करते
कुछ शब्द
मन को अशांत करते
मजबूरन #कलम
उठानी ही पड़ती
और फिर
बिखर जाते सब
कोरे कागज़ पर
और
पता ही नहीं चलता
कि कब
कविता नया रूप ले लेती

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