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शहर के बुद्धिजीवियों को भी पीछे छोड़ता गोपालपुर गांव, उनके लिए पर्यावरण सर्वोपरी

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🔲 वहां होलिका दहन में 50 सालों से लकड़ियों की बजाय सिर्फ कंडे हो रहे उपयोग

🔲 गांव में भरपूर लकड़ियां लेकिन पर्यावरण के साथ नहीं करते खिलवाड़

🔲 गौरव दुबे
राजगढ़, 7 मार्च। नगर से करीब 21 किमी दूर बसे गोलपुरा ग्राम की आबादी महज 500 और घरों की संख्या भले ही 50 हो लेकिन जागरूकता के मामले में यह गांव किसी विकसित शहर के बुद्धिजीवियों को भी पीछे छोड़ रहा है।

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देशभर में जहां जंगलों व पेड़ों को बचाने की खातिर शहरों सहित महानगरों में ‘कंडों की होली‘ का आह्वान किया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ यह छोटा सा गांव आज से नहीं बल्कि पिछले 50 बरस से सिर्फ और सिर्फ कंडों से ही होलिका दहन के काम में लगा हुआ है। ग्रामीणों का मानना है कि पेड़ों को काटकर उन्हें त्यौहार के अवसर पर जला देना मानवता नहीं है। होलिका दहन लकड़ी की बजाय कंडों से भी किया जा सकता है।

5 दशक से चल रही परंपरा

ग्राम के तोलाराम गामड़ बताते हैं कि मेरी उम्र करीब 50 बरस की हैं। जबसे हमने गांव में होलिका दहन देखा है तब से सिर्फ कंडों की ही होली जलाई जाती है। यह परंपरा आज की नहीं बल्कि कम से कम 5 दशक से भी ज्यादा पुरानी है।

हर घर देता है कम से कम पांच कंडे

ग्रामीण तोलाराम बताते हैं कि गांव में परपंरा है कि होली से ठीक पहले गांव के हर घर से पांच-पांच कंडों को होलिका दहन के लिए एकत्रित किया जाता है। इसके चलते करीब 250 से अधिक कंडे एकत्रित हो जाते हैं और ग्रामीण एक ही जगह पर होलिका दहन कर पूजन आदि करतेे हैं।

भरपूर है लकड़ियां फिर भी…कंडे ही होते हैं उपयोग

ग्रामीण बताते हैं कि गांव में लकड़ियों की कोई कमी नहीं है। आसपास हरे-भरे पेड़ बड़ी संख्या में हैं लेकिन इन्हें काटना और काटकर त्यौहार में जला देना गांव की नीतियों के विरूद्ध है। यह नियम बरसों पहले इस गांव के बुजुर्ग ग्रामीणों ने बना दिया था जिसका आज भी भलीभांति परिपालन चलता आ रहा है।
पर्यावरण सर्वोपरी, कंडे जलाने से वातावरण भी होता है सुरक्षित

ग्रामीणों के मुताबिक लकड़ियों की अपेक्षा कंडों को जलाने से ना सिर्फ लकड़ियों की बचत होती है बल्कि आसपास का वातावरण भी पूरी तरह से सुरक्षित रहता है। कंडों को जलाने से निकलने वाली उर्जा की वजह से हवा में फैले किटाणुओं का स्वतः नाश हो जाता है और ग्रामीण हजारों बीमारियों से बच जाते हैं। वहीं पेड़ों के होने की वजह से भी तमाम सुरक्षाएं ना सिर्फ मानवों को बल्कि जीव-जंतुओं को भी रहती है। यही कारण है कि त्यौहार पर पेड़ों से लकड़ी काटकर उन्हें जलाना ग्रामीण पसंद नहीं करते।

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