धर्म संस्कृति : भगवान महावीर का जीवन मानवता के सर्वोच्च मूल्यों का प्रतीक

विश्वशांति” केवल एक राजनीतिक या सामाजिक संकल्प नहीं। वह प्रत्येक व्यक्ति के अंतर्मन से शुरू होती है। जब मन शांत होता है, विचार सकारात्मक होते हैं और जीवन नैतिकता से युक्त होता है

धर्म संस्कृति : भगवान महावीर का जीवन मानवता के सर्वोच्च मूल्यों का प्रतीक
भगवान महावीर जयंती विशेष संदेश :
रघुनाथ गुरुजी
(अध्यक्ष : दिव्य शांति परिवार, प्रचारक–नीति संप्रदाय)
भगवान महावीर का जीवन मानवता के सर्वोच्च मूल्यों का प्रतीक है। उनकी शिक्षाएँ-अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, क्षमा, मौन, ध्यान, त्याग और “जियो और जीने दो” — आज के युग में और भी अधिक प्रासंगिक हो गई हैं।
आज के दौर में विद्यार्थियों और युवाओं को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि नैतिक मूल्य, भावनात्मक संतुलन, आत्मिक शांति और पर्यावरण-प्रेम भी सिखाना अत्यंत आवश्यक हो गया है। यही कार्य हम “My Peacefulness Course” और Virtues Healing के माध्यम से स्कूलों, केंद्रों और समाज में कर रहे हैं।
विद्यार्थियों हेतु हमारा उद्देश्य
आंतरिक शांति: ध्यान, मौन, और सकारात्मक विचारों के माध्यम से मनोबल और एकाग्रता में वृद्धि।
नैतिक शिक्षा: अहिंसा, करुणा, क्षमा, कृतज्ञता और सत्त्वगुणों का संवर्धन।
शाकाहार और व्यसनमुक्ति: स्वस्थ और सात्त्विक जीवनशैली को अपनाना।
प्रकृति से एकरूपता: वृक्षारोपण, जल संरक्षण, जड़ ट्री का पालन,पर्यावरण-संवर्धन।
कर्तव्यपरायण और जिम्मेदार नागरिक निर्माण: लोकतंत्र में जागरूक सहभागिता (जनता राज शासन)।
विश्वशांति और विश्वकल्याण का संदेश
“विश्वशांति” केवल एक राजनीतिक या सामाजिक संकल्प नहीं, वह प्रत्येक व्यक्ति के अंतर्मन से शुरू होती है।
जब मन शांत होता है, विचार सकारात्मक होते हैं और जीवन नैतिकता से युक्त होता है, तभी वास्तविक रूप से समाज में सहिष्णुता बढ़ती है।
 पर्यावरण संतुलन बना रहता है।
भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास होता है।
संपूर्ण विश्व में शांति का संदेश फैलता है
विश्वकल्याण का अर्थ है - सभी जीवों के बीच प्रेम, समता और सहजीवन पर आधारित विकास।
भगवान महावीर ने कहा “इस संसार के हर जीव में आत्मा है। उसकी रक्षा करें, उसे पीड़ा न पहुँचाएँ।”
दिव्य शांति परिवार का लक्ष्य
विद्यालयों, महाविद्यालयों, आध्यात्मिक केंद्रों, सामाजिक संस्थाओं और पर्यावरण क्षेत्रों में
“शांति, सत्त्व और सद्वर्तन” के त्रिसूत्रीय माध्यम से
एक नव-सात्त्विक भारत और शांतिपूर्ण विश्व की स्थापना करना।
इस पावन जयंती के अवसर पर हम सभी संकल्प लें कि हम अहिंसा का पालन करेंगे। 
नैतिक जीवन जिएँगे।
व्यसनमुक्ति का प्रचार करेंगे।
पर्यावरण की रक्षा करेंगे।
विद्यार्थियों को केवल शिक्षा नहीं,
बल्कि मूल्याधारित जीवन-दर्शन देंगे।
“मौन में शक्ति है, ध्यान में दिशा है, त्याग में उन्नति है —
और सत्त्वगुणों से ही विश्वशांति संभव है।”

रघुनाथ गुरुजी
(दिव्य शांति परिवार)