रहमे दिल में बसती है भगवान की सूरत : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
रहमे दिल में बसती है भगवान की सूरत : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
🔲 श्रद्धालुओं को दी करूणा करने की सीख
हरमुद्दा
रतलाम,27 अप्रैल। शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने सब प्राणियों पर करूणा करने की सीख देते हुए कहा कि जो दुख में है, उन पर दया करो, यही वर्तमान समय और परिस्थितियों का तकाजा है।
सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि हम जमीन वालों पर रहम करेंगे, तो आसमान वाला हम पर रहम करेगा। आसमान वाला रहम करता दिखाई नहीं देता, लेकिन उसकी रहम उन्हीं पर बरसती है, जो जमीन वालों पर रहम करते है। जमीन पर रहने वाले जीव को जीवन प्रदान करने वाला रहमदिल होता है और रहमे दिल में ही भगवान की सूरत बसती है।
दूसरों के लिए जीते हैं अच्छे लोग
उन्होंने कहा कि अच्छे लोग दूसरों के लिए जीते है। उन्हें दूसरों में सुख बांटने में जो खुशी होती है, वह सुख बटोरने में नहीं मिलती। दुष्ट लोग दूसरों को मारने में खुशियां मनाते है। लेकिन वास्तव में दुष्ट दूसरों पर जीते है, जबकि अच्छे लोग दूसरों के लिए जीते है। जीवन की सार्थकता दूसरों को सुख बांटने में ही है।
हंसते-हंसते होता है समस्याओं का समाधान
आचार्यश्री ने कहा कि पडौसी के घर में आग लगाने वाला अपने घर में सुरक्षित नहीं रह सकता। पडौसी के घर की आग जो बुझाता है, वही अपने घर में सलामत रह सकता है। आग दुष्टता की पर्याय है, जो लोग दुष्ट प्रवृत्ति के होते है, वे दूसरों को सताते है। दूसरो का सुख-चेन छीनने में उन्हें मजा आता है, लेकिन यह घोर पाप, अपराध और अमानवीयता है। आजकल ज्यादातर लोगों में यह अमानवीयता का पाप पल रहा है, जो आगे चलकर दुख और संताप देने वाला बनता है। अधिकांश लोग समस्या का हल करने के बजाए अपना समय और श्रम उससे झूझने में खपा देते है, जबकि समस्या का समाधान सारी बाधाओं को हंसते-हंसते सह लेने में होता है।
कायरों का काम है रोना
आचार्यश्री ने कहा कि हंसते हुए गुजरा समय परमात्मा के सानिध्य में बिताए गए समय जैसा होता है। सच्चा तपस्वी वही होता है, जो हंसते-हंसते जीवन व्यतीत करता है। रोना कायरों का काम है। अपनी किस्मत को दोष देना अथवा परिस्थितियों पर रोष रखना कायरता है। दृढ चित्त और महान उददेश्य वाला व्यक्ति जो करना चाहे, वह कर सकता हैं। वर्तमान में कई चिकित्साकर्मी, सफाई कर्मी अपनी जान की परवाह किए बगैर कोरोना पीडित मानवों की सेवा में समर्पित है। उनका यह समर्पण किसी तपस्या से कम नहीं है। उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य केवल सफलता को नहीं बनाया, अपितु वे सेवा और सहयोग को अपने जीवन की सफलता मान रहे है। इतिहास इन्हीं नर-वीरों का बनेगा।
कोरोना संकट में प्रोत्साहित होने की जरूरत
आचार्यश्री के अनुसार जीवन में आई बाधाओं को हंसते-हंसते पार कर जाना सबसे बडी तपस्या है। केवल भूखा-प्यासा रहना ही तपस्या नहीं है। भूख-प्यास के सामने बाधाओं को जीतने की तपस्या बडी होती है। मनोबल जिसका मजबूतद होता है, वहीं बाधाओं की वैतरणी को पार कर सकता है। ऐसा कोई जीव नहीं, जिसके जीवन में बाधाओं ने दस्तक नहीं दी हो। हर व्यक्ति के सामने छोटी-बडी सभी प्रकार की बाधाएं आती है। इसलिए जो मनोबल के धनी होते है, वो उन बाधाओं की परवाह नहीं करते और अपने अदम्य आत्म बल से बाधाओं को चीरते हुए लक्ष्य की और आगे बढते है। उन्होंने कहा कि कोरोना का संकट जीवन में एक बाधा बनकर आया है। इससे हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है, अपितु हर व्यक्ति को प्रोत्साहित होना चाहिए। कायर और कमजोर मानसिकता रखने वालों को परिस्थितियां हतोत्साहित करती है। शक्तिशाली, ताकतवर और जवां मर्द प्रोत्साहित होकर आगे बढते है। इसलिए इस संकट में सभी उत्साह से आगे बढे और शासन-प्रशासन के निर्देशों का पालन करे। इससे देश बहुत जल्द कोरोना को हराने में कामयाब होगा।