वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे हिन्‍दी की आत्‍मनिर्भरता ही इसकी विशिष्‍ट पहचान -

🔲 संजय भट्ट

भारत का इतिहास अपने आप में आत्‍मनिर्भर होने का रहा है। हमेशा से देश की भाषा हिन्‍दी ने सभी को बांध कर प्रगति के लिए आत्‍मनिर्भर बनने में अहम भूमिका का निर्वहन किया है। देश में हिन्‍दी का योगदान अन्‍य भाषाओं से कहीं अधिक रहा है। हमारे यहां हिन्‍दी को मातृभाषा का दर्जा मिला है। हम अपनी तंद्रावस्‍था में सपने भी हिन्‍दी में देखते हैं तथा समझते हैं। हमारे क्रमिक विकास की परिभाषा हमने हिन्‍दी को अपना कर सीखी है। लगातार विकास के क्रम में हम हिन्‍दी में सोंचते हैं, समझते हैं तथा उनका क्रियान्‍वयन करते हैं।

देश में आदि काल से हिन्‍दी ही बोली तथा समझी जाती रही है। पौराणिक काल के बाद जब से इतिहास उपलब्‍ध है। चंद्रगुप्‍त ने मौर्य ने आचार्य चाणक्‍य के निर्देशन में बिखरे देश को एक करने के लिए हिन्‍दी को आधार बनाया तथा इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। इसके बाद भी हिन्‍दी पर कई हमले हुए तथा इसे तोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन हिन्‍दी की अपनी समाहर्ता की शक्ति ने सभी को विफल होने पर मजबूर कर दिया। हिन्‍दी ही एक ऐसी भाषा है, जिसमें हर नवीनता को समाहित करने की शक्ति है। चाहे ऊर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी या कोई भी अन्‍य भाषा हो हिन्‍दी में सभी आसानी से मिल जाती है। इतना सब होने के बाद भी हिन्‍दी का मूल स्‍वरूप नहीं बिगड़ा। आज भी हम हिन्‍दी को सर्वोच्‍च प्राथमिकता इसलिए देते हैं कि हर भाषा की स्‍पष्‍टता से अधिक हिन्‍दी की स्‍पष्‍टता है।

स्‍वयं आत्‍मनिर्भर है हिन्‍दी

हिन्‍दी स्‍वयं आत्‍मनिर्भर है तथा इसे जानने वालों को भी आत्‍मनिर्भर बनाने में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करती है। सफल व्‍यक्ति की हर सफलता का कारण हिन्‍दी की सार्वभौमिकता का स्‍वीकार ही है। हिन्‍दी ने अपना स्‍थान हर आम और खास आदमी के हृदय स्‍थल में बना कर उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करने का काम किया है। जब भी हमारा व्‍यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, राष्‍ट्रीय विकास के लिए कार्य करने का मौका आता है, देश की एकता एवं अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए हिन्‍दी भाषा का साहित्‍य ही अपना योगदान प्रदान करता है।

एक विशेष क्रमिक विकास 

हिन्‍दी साहित्‍य इतना समृद्ध है कि इसमें आदि कवि भारतेन्‍दु हरिशचंद्र से लेकर मुक्तिबोध तक विभिन्‍न आयामों में अपना खास मुकाम बनाया है। लेखन, दृश्‍य, श्रव्‍य माध्‍यमों में हिन्‍दी का योगदान अलग से दिखाई देता है। बचपन में दादी नानी की वार्ता, विद्यालयीन समय में भाषा के मर्म को समझना तथा उच्‍च शिक्षा के दौरान हिन्‍दी के मानक को समझ कर उसका उपयोग करना तथा स्‍वयं को हिन्‍दी में आत्‍मनिर्भर बना कर अपने विकास की अवधारणा को स्‍पष्‍ट करना एक विशेष क्रमिक विकास है।

वसुदेव कुटुंबकम् की अवधारणा को पुष्‍ट व प्रबल करती है हिन्‍दी

साहित्‍य के साथ ही विज्ञान, कला और वाणिज्‍य के विभिन्‍न आयामों में आत्‍मनिर्भरता हिन्‍दी की समृद्धता से ही संभव हो पाई है। इस वर्ष आत्‍मनिर्भरता को लेकर नई बहस उठ चली है, हर क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर बनने के लिए प्रयास किया जा रहा है। लेकिन हम यह भूल रहे हैं कि हमारी भाषा इतनी आत्‍मनिर्भर है कि सभी का समावेश कर देश में ही नहीं वरन विदेशों में अध्‍ययन का आधार बनती जा रही है। इसका जीता जागता उदाहरण है कि वर्तमान दौर के प्रसिद्ध कवि कुमार विश्‍वास को गुगल ने अमेरिका बुलवाया तथा हिन्‍दी व हिन्‍दी कविता के बारे में दुनिया को समझाने का अवसर दिया। हमारी भाषा हिन्‍दी और इसकी पल पल परिवर्तित छवि के साथ सभी को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति वसुदेव कुटुंबकम् की अवधारणा को पुष्‍ट व प्रबल करती है तथा संकेत देती है कि दुनिया ने हिन्‍दी की वैज्ञानिकता को समझा है और दुनिया में अपना विशिष्‍ट स्‍थान बनाया है। आगे भी हिन्‍दी विश्‍व की वैज्ञानिकता और आत्‍म निर्भरता के लिए जानी जाती रहेगी।

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🔲 संजय भट्ट

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