व्यंग्य : सफेद हाथी और चींटी के पर : आशीष दशोत्तर
🔲 आशीष दशोत्तर
वक्त बदलते देर नहीं लगती। कभी खुद को हाथी समझने वाले चींटी जैसे हो जाया करते हैं तो कभी चींटी भी हाथी की तरह चिंघाड़ने लगती है। इसीलिए कहा गया है,देख दिनन को फेर।‘ मगर भगवान ऐसे दिन किसी को न दिखाए। हाथी को यह बताना पड़े कि उसे चींटी से कोई भय नहीं है तो समझा जा सकता है कि वक़्त ख़राब आ गया है। हाथी तो हाथी है और यह मानकर ही चलता है कि उसे हाथी होने से कोई नहीं रोक सकता है। हाथी होना हर किसी के बस में भी नहीं है। इसके लिए कड़ी मेहनत करना पड़ती है। मेहनत करने के बाद ऐसा बनना पड़ता है जिस पर कोई शक नहीं करे। जिस पर शक किया जाए तो वह हाथी नहीं हो सकता है। जिन पर शक हो जाया करता है उन्हें अक्सर ‘सफेद हाथी‘ कहकर पुकारा जाता है। हाथी को गली में भौंकने वाले कुत्तो से ख़तरा होता है। पर समझदार और कूटनीतिज्ञ किस्म के हाथी ऐसी नौबत ही नहीं आने देते है। समय ये पहले ही कुत्तों को चुप करा दिया करते हैं। कभी बोटी डालकर तो कभी रोटी डालकर। कुत्ते बस में हो जाएं तो हाथी को राहत मिलती है। कोई भौंकने वाला नहीं होता। कुछ भी करते रहो। कोई कुछ कहने वाला ही नहीं । कोई सी संस्था बना लो। उसके लिए अनुदान ले लो। उसे निगल जाओ। कोई कुछ कहेगा ही नहीं।
पर इस चींटी नामक जीव का क्या करें? एक तो इतनी छोटी कि हाथी अगर उसे ललकारे तो भी बदनामी हाथी की ही होना है। अगर हाथी कोशिश करे कि उसे मसल दे तो भी मुश्किल। अव्वल तो हाथी को चींटी नजर ही नहीं आएगी। आ भी गई तो हाथी के पैरों के नीचे आ कर चींटी मर ही जाएगी यह कहा नहीं जा सकता। अगर चींटी की किस्मत ज्यादा ही खराब हुई और वह मर भी गई तो लोग क्या कहेंगे,हाथी हो कर एक चींटी का शिकार किया। अब ऐसे में हाथी करे तो क्या करे। चींटी भी तो चींटी है। आजकल तो उसके भी पर निकलने लगे हैं। सीधे अटैक कर रही है हाथी पर।
मगर हाथी भी हाथी है। उसका मुंह चलते रहना चाहिए। वह कितना भी खाए कम है। हाथी को सभी ने खाते हुए ही देखा है,डकार लेते हुए नहीं। हाथी कभी डकार लेता भी नहीं। अगर डकार ले ले तो फिर हाथी कैसा। पर इस बार चींटी ने हाथी को डकार लेने पर मजबूर कर दिया है। सारी पोल खोल कर रख दी। हाथी चिंघाड़-चिंघाड़ कर कह रहा है कि चींटी की बातों पर ध्यान न दो,पर लोग तो ध्यान देंगे ही न। पहली बार तो हाथियों के गोपनीय राज सामने आ रहे है। अब हाथी भले ही यह कहे कि चींटी मेरे एरिए में घुसे और फिर निकल कर दिखाए,उससे कुछ हासिल नहीं होने वाला। चींटी कब हाथी के एरिए में घुसती है और निकल जाती है पता भी नहीं चलता। अपने हनुमानजी रावण के इलाके में चींटी समान रूप धरकर ही घुसे थे। रावण की नींद तो तब खुली जब लंका जलने लगी। एक चींटी हाथी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती है,ऐसा मुगालता है हाथी को। पर उसे नहीं पता कि चींटी अपनी वाली पर आ जाए तो हाथी के प्राण भी ले लेती है। समझदार किस्म के हाथी चींटियों से पंगा लेने के बजाए फूंक मारकर चलते हैं।हाथियों में इन चींटियों की हिम्मत को ले कर बहुत खौफ़ देखा जा रहा है। कुछ बुद्धिमान हाथियों ने तो चींटियों से सम्पर्क भी प्रारंभ कर दिया है।