प्रासंगिक व सामयिक संदेशात्मक गद्य कविता : अनुष्ठान शांति का

🔲 त्रिभुवनेश भारद्वाज

समय व्यापक उथल पुथल का है
रात्रियां विलाप से भरी है
तो दिन मर्माहत मुश्किलों से भरे हैं

मरण सूचनाओं का अंबार लगा है
मृत्यु कभी आकस्मिक नहीं होती शाश्वत

सत्य है किंतु
संसार त्यागना साधारण काम नहीं
अनन्त कामनाओं का समर्पण आसान नहीं

लाखों अतृप्त, असमय प्रस्थानित,
विचलित,आक्रोशित, आंदोलित
आत्माओं से

भरा है आकाश
अंतरिक्ष में लाखों चींखें
गुत्थम गुत्था हो रही है
वसुदेव इन्हें प्रबंधित कर रहे हैं

किंतु
यम लोक अविराम कार्यरत है
प्राण प्रणव में लीन हो रहे हैं
क्रमबद्ध
जो जीवित हैं
इस युग संधि में
उन्हें दायित्व लेना होगा
असंख्य प्रस्थित आत्माओं के
उद्धार का
जैसे कुरुक्षेत्र में
काल समाहित
असंख्य आत्माओं के
लिए किया था

मुक्ति अनुष्ठान
वैसे करना होगा
पुनीत अभ्यर्थनाओं का संधान
जब तक अंतरिक्ष
बिलखती आत्माओं से मुक्त न
होता
तब तक शांति की संस्थापना न
हो पाएगी

अखिल ब्रह्मांड
मित्र है, सम्बन्धी है

हम सबका
महा ज्योति की सूक्ष्म
ज्योति ही तो है हम सब
आओ आह्वान करें

शिवशम्भु का
त्रिशूल की नोंक पर
यम के भीषण नर्तन को
अवरुद्ध करें
विष्णु सुदर्शन चक्र साधे और
क्रूर वायु को बांधें

ब्रह्मा सर्वत्र क्षमा का सिंचन करें
आओ प्रार्थना करें
भवानी से
अनवरत मृत्यु की क्रीड़ाओं
को मन्द करें
आओ पुष्पांजलि अर्पित करें
आओ मनुष्यता का मार्ग प्रशस्त करें

त्रिभुवनेश भारद्वाज

🔲 त्रिभुवनेश भारद्वाज
(12 मई 2021 की अभिव्यक्ति जो अनुभूति वही शब्द)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *