आंसूओं और उनके निहितार्थ

 संजय भट्ट

ये आंसू भी कितनी तरह के होते हैं, कभी विचार नहीं किया होगा। सुना तो बहुत था आंसूओं के बारे में लेकिन पता नहीं था कि आंसू की अपनी क्या ताकत होती है। ये आंसू भी बड़े नटखट होते हैं, कभी खुशी में छलक जाते हैं और गम में निकल जाते हैं। खुशी के आंसू, दुख के आंसू और खून के आंसू जैसे आंसूओं के प्रकार के साथ ही आंसूओं का ताकत भी होती है। किसी के आसू सहन हो जाते है तो किसी के असहनीय होते हैं और किसी के आंसू जब टपकते हैं तो वो तुफान ला देते हैं। एक घडियाली और मरमच्छ के आंसू भी होते हैं, जो दुख व सुख दोनों ही घड़ियों में दिखावे के काम आते हैं।

आंसूओं के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि यह भावनाओं को प्रंदर्शित करने का एक माध्यम है। आंसूओं में मन की पीड़ा, भावना, गहराई और अंतर्मन में अनुभव होने वाले एहसास को व्यक्त किया जाता है। खुशी के आंसू जब छलकते हैं तो पता चलता है कि व्यक्ति को भरोसा ही नहीं था उससे ज्यादा उसे मिल गया है। बहुत ज्यादा खुशी होने पर यह आंसू अपने आप आंखों से छलक जाते हैं। दुख या गम के आंसूओं की बात अलग है। जरा सा कांटा चूभ जाने पर भी ये आंसू आह के साथ निकलते हैं तो किसी अपने को खोने तथा उसके खोने से हुई असहनीय पीड़ा के कारण आंखों में आते हैं। गम के आंसू इज्जत गंवाने तथा किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए चलाए जाने वाले अभियान के असफल होने पर भी निकल जाते हैं।
आंसू की एक खासियत और है यह अचानक से आते हैं और अचानक से गायब भी हो जाते हैं।

कुछ लोग अपनी साख बताने के लिए आंसूओं का सहारा लेते हैं तो कुछ अपनी साख को बचाने के लिए आंसूओं का सहारा लेते हैं। जोर जबरदस्ती किसी को हंसा तो सकते हो लेकिन रूला नहीं सकते। रोना हमेशा किसी कारण से ही आता है। इसका साफ मतलब है कि आंसू चाहे खुशी के हो, गम के हो, खून के हो या मगरमच्छ के हो इन सभी के पीछे कोई न कोई कारण होता है। हां ये बात दिगर है कि प्याज काटने तथा धूंआ होने पर भी आंसू आ जाते हैं, लेकिन इनकी गिनती नहीं के बराबर है। आंसूओं का सैलाब भी आता है और गुजर भी जाता है, लेकिन एक के आसू आने से दूसरों की प्रतिक्रिया जरूर आती है।


आजकल तो लोग मौका देख भी आंसूओं का प्रदर्शन इतनी सफाई से करते हैं कि वास्तविक लगते हैं। इज्जत बचाने की खातिर अब कई मौकों पर आंसूओं को टपकाना इतना आम हो गया है कि कोई भी पिघल जाए। जान की जोखिम बता कर आंसूओं को छलकाने से थमता सैलाब फिर से चल पड़ता है। सभी को लगने लगता है कि  यही वक्त है जब उनकी तकलीफ को अपनी तकलीफ समझा जाए और लोगों की भीड़ जमा होने लग जाती है। ठीक इसके विपरित अपने मन की अपार पीड़ा को बताने के लिए सार्वजनिकतौर पर छलके आंसूओं का मजाक बन जाता है।

सीधे से बात की जाए तो खुशी के आंसू के अब आने के मौके बहुत कम लोगों को नसीब होते हैं, दुख के आंसू हर किसी को आ ही जाते है। खून के आंसू भगवान किसी को नहीं दे, लेकिन घड़ियाली आंसूओं का जमाना है। पहले भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आंसूओं का सहारा लिया जाता था, लेकिन अब लोगों की भावनाओं से खेल कर उनकी सहानुभूति को अपने साथ जोड़ने के लिए आंसूओं का उपयोग किया जाने लगा है। आज कल तो टीवी वालों ने भी अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए आंसुओं को अपना अस्त्र बना लिया है। जिस सीरियल की हिरोइन को जितना ज्यादा कष्ट देकर टसुएं बहाओ उतनी ज्यादा सफलता मिल जाती है।

संजय भट्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *