“झमकी झुकी आई बदरिया कारी, झूला झूले नन्द किशोर” की सुमधुर स्वर लहरियों ने सभी को कर दिया मंत्रमुग्ध
🔲 “संगीत-स्वर एक रूप अनेक” पर हुई कार्यशाला
हरमुद्दा
रतलाम, 28 अक्टूबर। “झमकी झुकी आई बदरिया कारी, झूला झूले नन्द किशोर” की सुमधुर स्वर लहरियों ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। अवसर था शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रतलाम में “विश्व बैंक परियोजना” के अन्तर्गत संगीत विभाग द्वारा आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला के आयोजन का।
“स्वर एक रूप अनेक” विषय पर आयोजित कार्यशाला की मुख्य कलाकार के रूप में ग्वालियर घराने की इंदौर से ख्याति प्राप्त गायिका डॉ. पूर्वी निमगांवकर उपस्थित थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्व बैंक परियोजना प्रभारी डॉ. सुरेश कटारिया ने की। कार्यशाला का शुभारम्भ माँ सरस्वती के पूजन तथा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ।
संगीत की विभिन्न गायन विधाओं से छात्राओं का परिचय करवाना कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य
कार्यक्रम की रूपरेखा एवं उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. बी. वर्षा ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य संगीत की विभिन्न गायन विधाओं से छात्राओं का परिचय करवाना तथा संगीत में अनेक विधाओं का प्रदर्शन, उसकी तकनीक, स्वरों का लगाव, रागों का चयन इत्यादि के विषय में विषय विशेषज्ञ द्वारा छात्राओं को अवगत करवाना है।
हम मन से संगीत को गाएं तो प्रत्यक्ष मिलते हैं ईश्वर से
डॉ. नीमगांवकर ने अपने वक्तव्य का प्रारम्भ सुरों के परिचय से किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक मनुष्य में संगीत है और यदि हम मन से संगीत को गाएं तो प्रत्यक्ष ईश्वर से मिलते हैं। आपने संगीत के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आहत और अनाहत नाद में अनाहत नाद स्वयंभू है। प्राचीन शोधकर्ताओं ने सात सुरों को खोजा तथा शायद इसके अतिरिक्त अन्य कोई स्वर अस्तित्व में नहीं आया इसलिये आज इन सात स्वरों का ही अस्तित्व है। पं. भातखण्डे जी का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने देशभर भ्रमण करके स्वरलिपि का निर्माण कर क्रमिक पुस्तक मालिका के नाम से संग्रहित किया। आपने गायन के प्रकार का उल्लेख करते हुए ध्रुपद, अष्टपदी आदि की चर्चा की।
अन्तर्मन से किया गया ध्यान आध्यात्मिक संगीत
उन्होंने आध्यात्मिक संगीत पर बताते हुए कहा कि अपने अन्तर्मन से किया गया ध्यान आध्यात्मिक संगीत है। आध्यात्मिक संगीत मन्दिरों में हुआ करता था। प्रकृति, नायक-नायिका से होता हुआ संगीत वर्तमान स्वरूप में पहुँचा। विषयों के परिवर्तन से संगीत के प्रति रुचि बढ़ती गयी और संगीत का श्रोता वर्ग तैयार हुआ। उप शास्त्रीय गायन शैली पर बात करते हुए आपने टप्पा, ठुमरी, कजरी, चेता, चैती, दादरा, तराना के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर प्रकाश डाला एवं गायन से प्रदर्शित भी किया। शास्त्रीय संगीत में उपज शब्द का बहुत महत्व है, क्योंकि यह मानसिक विचार से उत्पन्न होता है। आपने विभिन्न शैलियों को प्रस्तुत करके भी दिखाया एवं छात्राओं की जिज्ञासा को भी बहुत सुन्दर तरीके से सन्तुष्ट किया। उन्होंने छात्राओं को सामूहिक रूप में “मोहे लगी लगन गुरु चरणन की” भजन भी सिखाया।कार्यशाला के अंत में प्राचार्य डॉ. आर. के. कटारे ने कहा कि विभिन्न स्वरों के माध्यम से मानसिक शांति एवं आनंद को प्राप्त किया जा सकता है।
किया अतिथियों का स्वागत
कार्यशाला में सरस्वती वन्दना संगीत विभाग की छात्राओं ने प्रस्तुत की, अतिथियों का स्वागत डॉ. स्नेहा पण्डित, डॉ. अनिल जैन, डॉ. अनामिका सारस्वत, डॉ. रोहित चावड़े एवं विवेकानंद उपाध्याय ने किया।
यह थे मौजूद
कार्यशाला में महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. मंगेश्वरी जोशी, प्रो. जे. बी. पंड्या, डॉ. पुष्पा कपूर, प्रो. विनोद जैन, प्रो. वी. के. जैन, डॉ. सुरेश चौहान, डॉ. माणिक डांगे, प्रो. नीलोफर खामोशी, डॉ. वी.एस. बामनिया सहित संगीत विभाग की छात्राएँ, भूतपूर्व छात्राएँ, नगर के गणमान्य रसिक जन सहित बड़ी संख्या में छात्राएँ उपस्थित थीं। संचालन डॉ. वर्षा ने किया। आभार डॉ. पण्डित ने माना।