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व्यंग्य : नए युग के नए एनजीओ

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 आशीष दशोत्तर


ये नए युग के नए एनजीओ हैं। इनका वर्क ही नेटवर्क है और नेटवर्क ही वर्क। इनका जीवन ‘नेटवर्क नहीं तो वर्क नहीं’ के सूत्र से संचालित होता है। ये ग्रेट हैं क्योंकि इनके पास नेट है। ये ‘नेट जीवी औघड़’ उर्फ़ एनजीओ हैं। आप आटा खरीदते हैं लेकिन ये डाटा। आप जीवन की कोरी स्लेट पर  किसी विषय पर लिखने में जितना वक्त गंवाते हैं,ये उतने समय में नेट पर उस विषय का पूरा इतिहास और वर्तमान निकाल कर उसके भविष्य का निर्धारण कर देते हैं। शिकारी अपना शिकार पकड़ने के लिए अक्सर नेट का इस्तेमाल करता है मगर इन्होंने इस ‘नेट को अपनी इच्छा से ही स्वीकार किया । इसके बगैर ये कभी कुछ नहीं करते। इनका सारा वर्क ही नेट से होता है । इस नेट से बाहर ये निकल ही नहीं पाते । दिन-रात, सुबह-शाम लगे रहते हैं। ‘होमवर्क’ करते-करते कब ‘ वर्क फ्राम होम’ करने लगते हैं पता नहीं चलता।

कभी सुनते थे कि ‘सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं।’ लेकिन ये इसके बिल्कुल विपरीत हैं। ये सर कटा सकते हैं लेकिन सर उठा सकते नहीं । इनका सर हमेशा झुका हुआ ही रहता है । झुका भी इतना कि दाएं- बाएं, आमने-सामने  किसी की ख़बर नहीं। सबसे बेख़बर। सबसे अनभिज्ञ। सबसे अनजान। इसके बाद भी इन का नेटवर्क तगड़ा होता है । ये अपने रिश्तेदारों को नहीं जानते, पड़ोसी को नहीं पहचानते, गली- मोहल्ले वाले को तो जानने का प्रश्न ही नहीं, मगर दूसरे शहरों और मुल्कों तक इनके तगड़े संबंध होते हैं। जिनसे फेस टू फेस मिलने से कतराते हैं  ,उन्हें फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेज पौमाते हैं।

इनकी अपनी दुनिया है। उस दुनिया में कौन-कौन हैं इसकी ख़बर इन्हें भी नहीं। ये खुद से आगे कुछ देखते नहीं। इसलिए दूसरों को देखने का सवाल ही नहीं उठता। इनकी दुनिया अगर एक कुआ है तो ये उस कुए के मेंढ़क। मेंढक हैं मगर उछल-कूद नहीं करते। ये शांत किस्म के मेंढ़क है। चुप रहना, स्क्रीन के सामने बैठे रहना, बगैर स्नान वहीं ब्रैकफास्ट से डिनर तक सबकुछ कर लेना इनकी दिनचर्या में शामिल है। पूजा पाठ, ध्यान, व्यायाम, स्नान इनके लिए बकवास है। ये नई व्यवस्था के नए पहरेदार हैं।

इनसे कोई आस, उम्मीद रखना व्यर्थ है। इनके भरोसे रहने वाले घरों में ठीक समय पर न सब्ज़ी बनती है न ही दाल गलती है। ये हमेशा व्यस्त रहते हैं। अपने आप में मस्त रहते हैं । इनकी मस्ती किसी को नहीं भाती और किसी की स्टाइल इन्हें रास नहीं आती। ये इसी दुनिया के होकर भी दुनिया से अलग हैं।  नेट इनके जीवन का आधार है, स्क्रीन इनका जीवन दर्शन । इन्हें प्रदर्शन में यकीन नहीं। इसलिए ये खुद से ही खुश रहते हैं। इनका इतना ही संसार है। अफसोस! ये हमारे भविष्य के आधार हैं।

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