कस्तूरबा गांधी की पुण्यतिथि पर मातृशक्ति सम्मेलन का आयोजन कस्तूरबा ग्राम में
कस्तूरबा का 78 वां निर्वाण दिवस है आज
हरमुद्दा
इंदौर, 22 फरवरी। कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट कस्तूरबा ग्राम इंदौर में माता कस्तूरबा गांधी के 78 वें निर्वाण दिवस के अवसर पर मातृ सम्मेलन का आयोजन होगा।
ट्रस्ट सचिव सूरज डामोर ने हरमुद्दा को बताया कि मातृ दिवस के तहत कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट और महिला एवं बाल विकास विभाग मध्यप्रदेश शासन द्वारा 22 फरवरी को कस्तूरबा गांधी की पुण्यतिथि पर कस्तूरबा ग्राम परिसर में विशाल मातृशक्ति सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। दोपहर 12 बजे होने वाले सम्मेलन की मुख्य अतिथि मनोरमा मेनन होगी। अध्यक्षता आकाशवाणी इंदौर की सुधा शर्मा करेंगी। ट्रस्ट सचिव ने महिलाओं से सम्मेलन में शामिल होने का आह्वान किया है।
एक नजर में कस्तूरबा गांधी
कस्तूरबा गांधी, महात्मा गांधी की पत्नी जो भारत में बा के नाम से विख्यात है। कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल सन् 1869 ई. में काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था। इस प्रकार कस्तूरबा गाँधी आयु में गाँधी जी से 6 मास बड़ी थीं। कस्तूरबा गाँधी के पिता ‘गोकुलदास मकनजी’ साधारण स्थिति के व्यापारी थे। गोकुलदास मकनजी की कस्तूरबा तीसरी संतान थीं। उस जमाने में कोई लड़कियों को पढ़ाता तो था नहीं, विवाह भी अल्पवय में ही कर दिया जाता था। इसलिए कस्तूरबा भी बचपन में निरक्षर थीं और सात साल की अवस्था में 6 साल के मोहनदास के साथ उनकी सगाई कर दी गई। तेरह साल की आयु में दोनों का विवाह हो गया।
जन्म की तारीख और समय : 11 अप्रैल 1869, पोरबन्दर
मृत्यु की जगह और तारीख : 22 फ़रवरी 1944, आगा खान पॅलेस, पुणे
पति : महात्मा गांधी (विवा. 1883–1944)
प्रसिद्धि कारण : मोहनदास करमचंद गांधी की पत्नी
बच्चे : हरिलाल मोहनदास गांधी, देवदास गांधी, मणिलाल गांधी, रामदास गांधी
पोते या नाती : अरण मणिलाल गांधी, तारा गांधी भट्टाचार्जी, एला गांधी, ज़्यादा
माता-पिता: व्रजकुंवरबा कपाड़िया, गोकुलदास कपाडिया
बापू के धार्मिक एवं देशसेवा के महाव्रतों में सदैव उनके साथ
पति-पत्नी 1888 ई. तक लगभग साथ-साथ ही रहे किंतु बापू के इंग्लैंड प्रवास के बाद से लगभग अगले बारह वर्ष तक दोनों प्राय: अलग-अलग से रहे। इंग्लैंड प्रवास से लौटने के बाद शीघ्र ही बापू को अफ्रीका जाना पड़ा। जब 1896 में वे भारत आए तब बा को अपने साथ ले गए। तब से बा बापू के पद का अनुगमन करती रहीं। उन्होंने उनकी तरह ही अपने जीवन को सादा बना लिया । वे बापू के धार्मिक एवं देशसेवा के महाव्रतों में सदैव उनके साथ रहीं। यही उनके सारे जीवन का सार है। बापू के अनेक उपवासों में बा प्राय: उनके साथ रहीं। और उनकी सार सँभाल करती रहीं। जब 1932 में हरिजनों के प्रश्न को लेकर बापू ने यरवदा जेल में आमरण उपवास आरंभ किया उस समय बा साबरमती जेल में थीं। उस समय वे बहुत बेचैन हो उठीं और उन्हें तभी चैन मिला जब वे यरवदा जेल भेजी दी गई।
धर्म के संस्कार बा में गहरे बैठे हुए थे। वे किसी भी अवस्था में मांस और शराब लेकर मानुस देह भ्रष्ट करने को तैयार न थीं। अफ्रीका में कठिन बीमारी की अवस्था में भी उन्होंने मांस का शोरबा पीना अस्वीकार कर दिया और आजीवन इस बात पर दृढ़ रहीं।
मंदिर सा बन गया शंकर महादेव का
9 अगस्त 1942 को बापू आदि के गिरफ्तार हो जाने पर बा ने, शिवाजी पार्क (बंबई) में, जहाँ स्वयं बापू भाषण देने वाले थे, सभा में भाषण करने का निश्चय किया किंतु पार्क के द्वार पर पहुँचने पर गिरफ्तार कर ली गई। दो दिन बाद वे पूना के आगा खाँ महल में भेज दी गई। बापू गिरफ्तार कर पहले ही वहाँ भेजे जा चुके थे। उस समय वे अस्वस्थ थीं। 15 अगस्त को जब एकाएक महादेव देसाई ने महाप्रयाण किया तो वे बार बार यही कहती रहीं महादेव क्यों गया; मैं क्यों नहीं? बाद में महादेव देसाई का चितास्थान उनके लिए शंकर-महादेव का मंदिर सा बन गया। वे नित्य वहाँ जाती, समाधि की प्रदक्षिणा कर उसे नमस्कार करतीं। वे उस पर दीप भी जलवातीं।
महिला कल्याण के लिए एक करोड़ एकत्र
गिरफ्तारी की रात को उनका जो स्वास्थ्य बिगड़ा वह फिर संतोषजनक रूप से सुधरा नहीं और अंततोगत्वा उन्होंने 22 फ़रवरी 1944 को अपना ऐहिक समाप्त किया। उनकी मृत्यु के उपरांत राष्ट्र ने महिला कल्याण के निमित्त एक करोड़ रुपया एकत्र किया।
प्रस्तुति : सूरज डामोर