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मालवी-निमाड़ी साहित्य अकादमी के मुद्दे ने पकड़ा जोर, मालवी-निमाड़ी बोली हमारी संस्कृति, हमारी पहचान, हमारा गौरव

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🔲 इंदौर-उज्जैन संभाग के साहित्यकारों ने‌ दर्ज की अपनी राय

🔲 मालवा निमाड़ में आते हैं दो बड़े संभाग

🔲 15 से अधिक जिले शामिल

🔲 करीब ढाई करोड़ लोग करते निवास

🔲 सोशल मीडिया पर हुआ आयोजन

हरमुद्दा के लिए संजय परसाई “सरल”

रतलाम/इंदौर, 26 मार्च। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रख्यात मालवी लेखिका सुश्री हेमलता शर्मा “भोली बेन” द्वारा अपने फेसबुक पेज पर मालवा निमाड़ क्षेत्र के लोगों के लिए साहित्य अकादमी खोलने की मांग यह तर्क देते हुए रखी कि मध्य प्रदेश का लगभग एक लाख वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र मालवा और निमाड़ के अंतर्गत आता है। साथ ही मध्य प्रदेश की 8 करोड़ आबादी में से 2.5 करोड़ (ढाई करोड़) लोग मालवा और निमाड़ में निवास करते हैं, जिनकी बोली मालवी और निमाड़ी है तो इस क्षेत्र के लिए पृथक से मालवी-निमाड़ी अकादमी स्थापित होनी चाहिए जिस पर इंदौर -उज्जैन संभाग के सभी जिलों से साहित्यकारों ने उनकी मांग का समर्थन करते हुए शासन से मालवी-निमाड़ी साहित्य अकादमी खोलने की मांग की है।

हेमलता शर्मा “भोली बेन”

मालवी निमाड़ी क्षेत्र के साहित्यकारों का कहना है कि मालवा निमाड़ में दो बड़े संभाग आते हैं जिनमें 15 से अधिक जिले शामिल है और करीब ढाई करोड़ लोग निवास करते हैं जो अपनी मूल भाषा मालवी और निमाड़ी में बोलचाल के साथ अपनी संस्कृति को समेटे हुए हैं । संपूर्ण मध्यप्रदेश का इतना बड़ा भूभाग जिसमें लगभग इतनी अधिक आबादी निवास करती है वह अभी भी पिछड़ा हुआ है और यहां की प्रमुख बोलियां मालवी और निमाड़ी पिछड़ी हुई है, उनका ना तो कहीं साहित्य उपलब्ध होता है और न ही कहीं शोध आदि के विद्यार्थियों को सहायता मिल पाती है। लिखित रूप में बहुत कम साहित्य आया है। इसलिए मालवी निमाड़ी बोलियों को प्राथमिकता देने के लिए आवश्यक है कि मध्यप्रदेश में मालवी निमाड़ी अकादमी स्थापित होनी चाहिए। यहां पर उर्दू अकादमी, सिंधी अकादमी आदि विभिन्न भाषाओं की अकादमी स्थापित हैं किंतु लंबे समय से मध्य प्रदेश का इतना बड़ा क्षेत्र संपूर्ण मालवा और निमाड़ की बोलियों को प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त नहीं हो सका है।

संभव है सृजन पीठ की स्थापना

डॉ. विकास दवे

साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे दिन-रात बड़ी सजगता से बोलियों और भाषा की गतिविधियों के लिए काम कर रहे हैं। मालवी और उसकी सहोदर निमाड़ी के लिए उनके मन में चिंता और अनुराग दोनों है। उन्होंने कहा कि बोली अकादमी पूर्व से स्थापित हैं तो तकनीकी रूप से तो यह संभव नहीं है किन्तु ‌सृजन पीठ स्थापित की जा सकती है।

क्षेत्र होने के बावजूद अकादमी नहीं

डॉ. स्वाति तिवारी

मालवी निमाड़ी साहित्य शोध संस्थान की अध्यक्ष डॉ. स्वाति तिवारी का कहना है कि सवाल यह है कि मालवा निमाड़ क्षेत्र होने के बावजूद यहाँ मालावी -निमाड़ी साहित्य अकादमी अब तक क्यों नहीं है ? जबकी यहाँ मराठी, भोजपूरी, पंजाबी, सिंधी, उर्दू अकादमी बनी है। इनमे से कुछ तो यहाँ प्रासंगिक भी नहीं है। मालवी -निमाड़ी -बुन्देली जैसे समृद्ध क्षेत्र होने के बावजूद इनकी अकादमी का ना होना विचारणीय है। यह मांग जायज है। इन क्षेत्रों के साहित्य और संस्कृति के संरक्षण के लिए अकादमी का निर्माण किया जाना जरूरी है।

प्रचलन से बाहर हो रही है बोलियां

राजभाषा अधिकारी देवेन्द्र सिंह सिसोदिया ने कहा कि बोलियाँ धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर होती जा रही है। इसके संरक्षण और विकास के लिए आवश्यक है कि अलग से अकादमी बनाई जाए ।‌ मालवी प्रेमी शरद व्यास इंदौर कहते हैं कि क्षेत्रीय भाषा हमारी माटी की भाषा है। इका प्रचार प्रसार सारू मालवी निमाड़ी अकेडमी को होनो घणो जरूरी है। जो साहित्यकार ना बरसो से मालवी निमाड़ी में लिखी रिया है न उकी निस्वार्थ सेवा करी रिया है, उनके इनी अकेडमी में शामिल करनु चईये।

साहित्य होगा समृद्ध रचनाकारों को मिलेगा सम्मान

संजय परसाई “सरल

रचनाकार संजय परसाई “सरल” ने कहा है कि क्षेत्रीय बोली और भाषा का साहित्यिक क्षेत्र में बड़ा योगदान है। मालवी-निमाड़ी भाषा की अकादमी होनी चाहिए जिससे क्षेत्रीय भाषा के रचनाकारों को भी सम्मान मिलेगा और मालवी-निमाड़ी का साहित्य और समृद्ध होगा। क्षेत्रीय रचनाकारों में भी क्षेत्रीय बोली औऱ भाषा के प्रति अधिक रुचि जाग्रत होगी और ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रीय भाषाओं में लेखन होगा।

हम बेहतर अभिव्यक्त होते हैं बोली में

मालवी रंगकर्मी रजनीश दवे के अनुसार यह उचित प्रस्ताव है। बोली के प्रति हम सभी की जवाबदारी है।बोलियाँ हमारे लोकजीवन और लोक संस्कृति को प्रदर्शित करती हैं। अपनी बोली में हम बेहतर अभिव्यक्त होते हैं।इसे प्रचलन में लाने के लिये निरंतर काम होना चाहिये। अकादमी के माध्यम से यह व्यवस्थित रूप से हो सकेगा।

मालवी-निमाड़ी बोली हमारी संस्कृति, हमारी पहचान, हमारा गौरव

निमाड़ी प्रेमी एवं वरिष्ठ साहित्यकार राम सिंघल ने कहा कि बहुत उत्तम विचार है। मालवी-निमाड़ी बोली हमारी संस्कृति, हमारी पहचान, हमारा गौरव है। इनके विकास के लिए मालवी निमाड़ी एकेडमी बनना ही चाहिए । यही बात निमाड़ अखिल भारतीय साहित्य परिषद के सचिव राम शर्मा परिंदा ने‌ कहीं ।
मातृभाषा उन्नयन संस्थान के अध्यक्ष अपर्ण जैन कहते हैं कि मालवी और निमाड़ी बोलियों सहित कई अन्य बोलियाँ भी है ।भाषा का अस्तित्व बोलियों से हैं। वर्तमान में साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश ने बोलियों के लिए कुछ विशेष प्रकल्प और प्रावधान रखें है, उनका समूल सदुपयोग होना चाहिए।

नई शिक्षा नीति भी मातृभाषा में देती शिक्षण को प्राथमिकता

मालवी में पी.एच.डी. करने वाली डॉ. ज्योति बैस भदौरिया कहती हैं कि नई शिक्षा नीति मातृ भाषा मे शिक्षण को प्राथमिकता देती है । ये प्रयास बच्चों की शिक्षा को गुणवत्ता प्रदान करेंगे, तो क्यों न हम भी लौटे अपनी जड़ों की तरफ ,जिसमे हम
अपनी भावाभिव्यक्ति करते है,उस बोली/ भाषा को जो
हमारे क्षेत्र की लोकभाषा है। उसको बढ़ावा देने के लिए साहित्य अकादमी अत्यावश्यक है। अतिशीघ्र स्थापित हो।

कार्य योजना बनाकर सौंपी जाएगी दवे जी को

वरिष्ठ साहित्यकार एवं ‌मंच संचालक संजय नरहरि पटेल ने इस बाबत एक कार्ययोजना ‌बनाकर विकास ‌दवे जी को सौंपने का सुझाव दिया । मनोहर दुबे, विनिता तिवारी, साधना बलवटे, अलक्षेन्द्र व्यास, प्रबोध पंड्या, वासुदेव पटेल तंवर, अर्चना कानूनगो आदि सहित लगभग 400 से अधिक मालवी निमाड़ी प्रेमियों ने अपनी राय दर्ज कराई।

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