महारैली की तैयारियां तेज : धर्मांतरित होकर ईसाई व मुस्लिम बने लोगों को जनजाति की सूची से बाहर करने आदिवासी में आई जागरूकता

⚫ 1 मई को महारैली कर बुलंद करेंगे आवाज

हरमुद्दा
रतलाम, 28 अप्रैल। जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर तले जिले के आदिवासी एकजुट हो गए हैं और जागरूकता के साथ एक दूसरे को 1 मई को रतलाम नगर में निकलने वाली महारैली में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। जनजाति सुरक्षा मंच के हजारों कार्यकर्ता गांव-गांव में जाकर आमंत्रण दे रहे हैं और इस कार्य में काफी तेजी आई। महा रैली निकालने का एक ही उद्देश्य है कि जो व्यक्ति जनजाति समाज को छोड़कर अन्य समाज में चले गए उन्हें डीलिस्टिंग किया जाए। जनजाति समाज की किसी भी सुविधा का लाभ उन्हें नहीं दिया जाए।

मंच के जिला संयोजक कैलाश वसुनिया, प्रांत निधि प्रमुख रूपचंद मईडा, प्रचार प्रसार प्रभारी दीपक निनामा, सह संयोजक कैलाश देवड़ा व सुमित निनामा सहित अन्य पदाधिकारी आदिवासी अंचल सहित जिले के सभी विकास खंडों के गांव गांव में सक्रियता से समाज को एकजुट करने में लगे हुए हैं।

650 गांवों के 50 हजार लोगों को लाने का लक्ष्य

मंच के पदाधिकारियों ने बताया कि दुर्भाग्यवश धर्मांतरित लोग मूल जनजातियों का 80 फीसदी लाभ छीन रहे हैं। ऐसे लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने की मांग रखी जाएगी। जनआंदोलन 1 मई को दोपहर 12.30 बजे शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय रतलाम से महारैली निकाली जाएगी। इसमें 650 गांवों के 50 हजार लोगों को लाने का लक्ष्य है।

संविधान की इस विसंगति के कारण छिन रहा जनजातियों का हक

मंच के पदाधिकारियों के मुताबिक धर्मांतरण पहले भी होता रहा है लेकिन आजादी के बाद ज्यादा तेजी से हुआ। संविधान के अनुच्छेद 341 एवं 342 में क्रमशः अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए अखिल भारतीय व राज्यवार आरक्षण तथा संरक्षण के उद्देश्य से 1950 तत्कालीन राष्ट्रपति ने सूचियां जारी की थीं। इन सूचियों के आधार पर ही संविधान के अनुसार ही अजा और अजजा वर्ग के लिए विभिन्न प्रावधान लागू किए गए थे। सूची जारी करते समय धर्मांतरित ईसाई और मुस्लिमों को अनुसूचित जाति में तो शामिल नहीं किया गया किंतु अनुसूचित जनजातियों की सूची से धर्मातरित होकर उक्त समुदायों में जाने वालों को बाहर नहीं किया गया। यह बड़ी विसंगति है।

जनजाति समुदाय को नहीं मिल पाएगा नौकरियों का अवसर कभी

सरकारी नौकरियां पहले से ही कम हैं, यदि समय रहते धर्मांतरित लोगों को पदच्युत नहीं किया गया तो जनजाति समुदाय को नौकरियों का अवसर कभी नहीं मिल पाएगा। इसलिए इस लड़ाई में सभी की भागीदारी आवश्यक है।

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