कुछ खरी-खरी : फैसला देने वालों ने रखा फासला वंदे मातरम से, नगर निगम में सब बदल गए लेकिन शहर का ढर्रा वही का वही

हेमंत भट्ट

पूरा देश पूरा देश प्रदेश शहर आजादी के अमृत महोत्सव मनाने में मशगूल हैं सामाजिक संस्थाओं के साथ कर्मचारी संगठन तिरंगा रैली निकाल रहे हैं संस्थानों पर ध्वज लहरा रहे हैं। खुशियां मनाई जा रही है उत्साह उल्लास नजर आ रहा है लेकिन फैसला देने वाले राष्ट्रीय उत्सव में आम लोगों से दूरियां बना रहे हैं। शहर सरकार तो बदल गई है लेकिन शहर की सूरत वैसी की वैसी ही है। समस्या जस की तस है। शहर वासी ही नहीं बाहर से आने वाले भी परेशान हैं। चुनावी वादे खोखले साबित होने लगे हैं।

वह अपने आप को छोटा महसूस कर रहे थे इनके पीछे वंदे मातरम करने में

शुक्रवार को कोर्ट चौराहे पर ही अधिवक्ता परिषद के बैनर तले रतलाम प्रेस क्लब के सहयोग से वंदे मातरम गीत का आयोजन किया गया, जहां पर शहर विधायक और महापौर भी मौजूद रहे लेकिन फैसला देने वाले न्यायाधीशों ने इस आयोजन से फासला बनाए रखा। यह बात दीगर है कि उन्होंने फासला क्यों बनाया? लेकिन जब अधिवक्ता परिषद के पदाधिकारी ने न्यायालय के बड़े साहब से मुलाकात की तब उन्होंने बिल्कुल रजामंदी जताई कि मैं ही नहीं हमारे सभी न्यायाधीश वंदे मातरम के आयोजन में मौजूद रहेंगे, लेकिन ऐन वक्त पर आने से इंकार कर दिया और वंदेमातरम जैसे आयोजन से दूरी बना ली। वंदे मातरम गीत के सम्मान में शहर विधायक महापौर सहित अभिभाषक, पत्रकार आमजन एक लाइन में खड़े हुए और वंदे मातरम किया। भारत माता के चित्र के सम्मुख पुष्प चढ़ाने के लिए फैसला देने वाले कोर्ट परिसर से बाहर चलकर आने में अपना कद छोटा मान रहे थे। या फिर वे विधायक व महापौर के पीछे लाइन में लगना नहीं चाहते थे। यह तो वही जाने, लेकिन वहां मौजूद लोगों की चर्चा का विषय जरूर है कि कोर्ट के सामने आयोजन होने के बावजूद भी फैसला देने वाले नदारद हैं, जबकि आयोजन करता भी अधिवक्ता परिषद ही है।

फिर से किस काम की ट्रिपल इंजन वाली सरकार

शहर के मतदाताओं ने भले ही ट्रिपल इंजन वाली सरकार चुन ली है। नए महापौर पद पर आसीन हो गए हैं। पार्षदों ने भी पदभार ग्रहण कर लिए हैं। नए आयुक्त ने जिम्मेदारी भी संभाल ली है, लेकिन इसका असर शहर में देखने को नहीं मिल रहा है। आमजन में चर्चा तो यही है कि अब वसूली के नए लोग आ गए हैं। आम जनता की समस्या वही की वही रहेगी और नजर भी आ रही है। नगर निगम में जरूर बदलाव हुआ है लेकिन शहर का ढर्रा तो वही का वही है। जब होती है कर्मचारियों की इच्छा तो लगती है सड़कों पर झाड़ू जब होती है इच्छा तो कचरा कलेक्शन के लिए गाड़ी आ जाती है वरना संभाल के रखो अपना कचरा अपने पास।

बदहाल यातायात व्यवस्था, नकेल कसने का माद्दा नहीं जिम्मेदारों के पास

शहर की बदहाल यातायात व्यवस्था से हर कोई परेशान है। शहर की सड़कों पर जाम लगना आम बात है खास बात तो यह है कि चौराहों पर यातायात पुलिस वाले भी मौजूद नहीं रहते हैं। इसमें भी सरकारी वाहन चलाने वाले तो बिल्कुल दादागिरी ही करते हैं। 5 मिनट के रास्ते में 25 मिनट खर्च हो रहे हैं। वाहनों से प्रदूषण अलग फैल रहा है।  पेट्रोल-डीजल बिना वजह जल रहा है। यातायात व्यवस्था को बदहाल बनाने में सबसे अहम भूमिका ऑटो रिक्शा और मैजिक चालक निभा रहे हैं। इनकी इच्छा होती है जैसे यह सड़कों पर रुकते हैं और चलते हैं। जब इनके वाहनों में सवार या नहीं होती है तो यह धीमी गति के समाचार की तरह रहते रहते हैं और जब इनमें सांवरिया बैठ जाती है तो ऐसे दौड़ आते हैं कि वह सवारिया छलांग छलांग कूदती है।

हालांकि सवारियां वाहनों में बैठने के पैसे देती है लेकिन वह 2 मिनट भी चेन और सुकून से नहीं बैठ पाती। इन वाहन चालकों को कुछ बोलते हैं तो गाली गलौज पर उतारू हो जाते हैं। लगता है इनको नकेल कसने का माद्दा यातायत विभाग के पास भी नहीं है। तभी तो शहर की यातायात व्यवस्था दिन प्रतिदिन बदहाल और खस्ता होती जा रही है। फोरलेन जैसी चौड़ी सड़कें भी गलियों में तब्दील हो गई है। चाहे घास बाजार में बनाई गई फॉरेन हो या फिर अन्य जगह की। चौमुखी पुल से गणेश देवरी तक बनाई गई सीसी रोड का भी यही आलम है। दुकानदारों का कब्जा है। अतिक्रमण सड़कों पर पसरा पड़ा है। दुकानों के आगे फुटपाथ पर सामान जमाना बदस्तूर जारी है।

फिर से कायम हो गया मवेशी राज

नगरी निकाय निर्वाचन के परिणाम की घोषणा और आयुक्त की सेवानिवृत्ति के बाद से ही शहर की सड़कों पर मवेशी राज कायम हो गया है। सड़कों पर मवेशियों का कब्जा है। सांड अपनी कला बाजिया दिखाते रहते हैं। मवेशियों और सांड के साथ ही शहर में कुत्तों का भी आतंक बरकरार है। शहर में जितने लोग एकजुट होकर नहीं घूमते हैं, उतने कुत्ते एकजुट होकर घूमते और हमला कर रहे हैं लेकिन जिम्मेदार मौन हैं। फल और सब्जी वाले सड़कों पर फिर से काबिज हो गए हैं। सब्जी वाले सब्जियों का कचरा सड़क पर फेंकते रहते हैं जिन्हें सड़कों पर घूमने वाले मवेशी खाते रहते हैं और मालिक उनका दूध पीते रहते हैं। पालतू मवेशियों के कारण शहर की तमाम सड़कें गोबर से सनी हुई है, चाहे वह बाजारों की सड़कें हो या फिर कालोनियों की। बारिश के दौरान तो मवेशियों का गोबर दुकानों के ओटले या सामने ही होता है। मवेशी और गोबर मिलना आम बात है। कुत्तों के द्वारा भी घरों के आगे गंदगी की जा रही है। कुत्तों द्वारा दोपहिया और चार पहिया वाहनों को क्षति पहुंचाई जा रही हैं। उनके कवर फाड़ जा रहे हैं। गाड़ियों की सीट को नोचा जा रहा है।

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