खोल द्वार मैया मैं तेरो कान्ह…
⚫ डॉ. नीलम कौर
ठुमक चलत पग छाप धरत
खेल खाल ग्वालन संग
हेर हार सब गैय्यन संग ले
साँझ भयी घर आया कन्हैया
खोल द्वार देख तेरो कन्हैया
द्वार खड़ा कर जोर कहे
बहुत थकों,तिस भी भारी
अंक ले मोहे थोड़ो माखन दे
देख तेरो छोटो सो लल्ला
दाऊ बहुत खिजायो,सब
ग्वालन संग खेलत रह्यो
मोहे कह्यो जाओ गैय्यन चराओ
भोर ते साँझ भई मैं गैय्यन
संग ही रह्यो,यो तेरी शीला,
मोहिनी,गोरी,भूरी ने भी आज
मोकू बहुत भगायो
बंद किवार कर क्रोध में डूबी
मैय्या जशोदा खोले न किवार
टेर लगाए विनती करे ,कहे
खोल द्वार मैया मैं तेरो कान्ह
सुनी अनसुनी करत रही माता
सखियाँ कहे देख मान जशोदा
थकाहारा,भूखाप्यासा होगा लल्ला
खोल किवार भीतर लइके थोड़ा दे दुलार
पर जशोदा एक न माने, कहे
यही बारंबार” कही थी ओको
दूर मति जानो,एक आध प्रहर
में घर आनो” साँझ ढले क्यूं आयो
झूठमूठ को रोए कान्हा,विनती करे,
भीतर ही भीतर मुस्काए
“अबके कहनो मानूंगा मैय्या”
झूठो वादो कर मनाए कन्हैया
रुदन भरी टेर सुनी माता
भर कलेजो किवार दिए खोल
बाँह पसारे बाहर आई ,भींच
कलेजे गरे लगाई,अँखियन नीर बहाय।
खोल द्वार…
⚫ डॉ. नीलम कौर