अमृत वेला में हिन्‍दी को नई पहचान देना जरूरी 

संजय भट्ट 

⚫ हम आजादी के 75 बरस बाद हिन्‍दी इस अमृत वेला में हिन्‍दी भाषा की उस पराकाष्‍ठा को अनुभव कर रहे हैं, जहां हिन्‍दी की ऊँचाई को छूने वाली कोई भाषा नहीं है। हिन्‍दी की इस गंगा में हिन्‍दुस्‍तान की आत्‍मा बसती है। गुलामी के बरसों में भी हिन्‍दी भाषा को ग्रामीण क्षेत्रों की बोलियों तथा आम बोलचाल की भाषा में इस देश के लोगों ने जीवन्‍त बनाए रखा। अंग्रेजों की अंग्रेजियत को भी हिन्‍दी का लोहा मानना पड़ा, देश ही नहीं वरन विदेशों में भी हमारी भाषा ने अंग्रेजों को प्रभावित किया है। ⚫

गुलामी के बरसों बरस में भी अपनी जीवन्‍त छवि को बनाए रखने में कामयाब रही हिन्‍दी की ऊँचाईयों को छू पाना किसी के बस में नहीं है। गुलामी के दौर में भाषा की सार्थकता और भाषा की मिठास से अंग्रेज, पूर्तगाली, डच और फ्रांसिस भी आकर्षित रहे। यहां का समृद्ध साहित्‍य उनके भी मन को भाया और उन्‍होंने इसका खूब आनंद उठाते हुए इसी के सहारे यहां की सभ्‍यता, समाजिक तानाबाना और आर्थिक स्थितियों को समझा तथा अपने फायदे के लिए इसे लागू कर हमारे देश के भोले-भाले नागरिकों पर अत्‍याचार किया। 

अंग्रेजों ने अपने स्‍कूलों के माध्‍यम से अंग्रेजी भाषा को आगे बढ़ाने का कार्य किया। अस्‍पतालों की सुविधा से अंग्रेजियत से जोड़ने का काम किया, लेकिन हमारे देश के नागरिेकों ने हमारी हिन्‍दी का हाथ कभी नहीं छोड़ा और हिन्‍दी को ऐसी सर्वग्राह्य भाषा बना दिया कि जो-जो आतताई इस देश में आए और अपने साथ कुछ भी नया शब्‍द लाए उसे हिन्‍दी ने अपने में समाहित कर लिया। 

हमारी सभ्‍यता, संस्‍कृति तथा आचरण का अंग बन चुकी हिन्‍दी

हम आजादी के 75 बरस बाद हिन्‍दी इस अमृत वेला में हिन्‍दी भाषा की उस पराकाष्‍ठा को अनुभव कर रहे हैं, जहां हिन्‍दी की ऊँचाई को छूने वाली कोई भाषा नहीं है। हिन्‍दी की इस गंगा में हिन्‍दुस्‍तान की आत्‍मा बसती है। गुलामी के बरसों में भी हिन्‍दी भाषा को ग्रामीण क्षेत्रों की बोलियों तथा आम बोलचाल की भाषा में इस देश के लोगों ने जीवन्‍त बनाए रखा। अंग्रेजों की अंग्रेजियत को भी हिन्‍दी का लोहा मानना पड़ा, देश ही नहीं वरन विदेशों में भी हमारी भाषा ने अंग्रेजों को प्रभावित किया है। हमारी सभ्‍यता संस्‍कृति तथा आचरण का अंग बन चुकी हिन्‍दी भाषा को नकार पाना आज किसी के बस की बात नहीं है। हिन्‍दी की हिन्‍दुस्‍तानियत का ही कमाल है कि देश में आज भी विभिन्‍न भाषा, बोलियां और उस पर अंग्रेजी की मार ने भी भाषा के उस वजूद को बनाए रखा है, जिसके लिए हमारी भाषा की पहचान है। अन्‍य भाषाएं भाषा की मर्यादा में बंध कर रह गई, लेकिन हिन्‍दी ने कभी भी मर्यादाओं को तोड़ कर भी अपने मूल स्‍वरूप को विकृत नहीं होने दिया। 

लगातार कोशिशें हिंदी भाषियों का दायरा कम करने की

हिन्‍दी भाषियों का दायरा कम करने की लगातार कोशिशों के बीच घरों में बोली जाने वाली भाषा का दर्जा आज भी हिन्‍दी से परे नहीं गया है। शब्‍दों का प्रवाह तथा भाषा की मिठास का जो जायका हिन्‍दी में है, उससे पार पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगता है। अनेक आतताई और हमलावर भारत में आए तथा अपनी भाषा को साथ में लेकर आए, हिन्‍दी ने उन सभी का सम्‍मान करते हुए उनके उन नवीन शब्‍दों से कभी परहेज नहीं किया और लगातार अपने में समाहित करते हुए अपने प्रवाह को निरंतर रखा। हमारी भाषा सिखाती है कि यदि ‘एक दीपक आपके प्रज्‍जवलित है तो उससे मशालें जलाओ’ उसकी लौ को मद्धम कर देने से भी जो प्रकाश होगा उसका अनुमान लगाना आमजन के बस की बात नहीं है। भारत में जितना सम्‍मान गाय, माता और धरती को मिला है उससे कहीं ज्‍यादा सम्‍मान हमारी हिन्‍दी भाषा को मिला है। 

लगातार बढ़ता रहे हिंदी और हिंदुस्तान का गौरव

अब आजादी के अमृत वर्ष में यह कर्तव्‍य सभी हिन्‍दी भाषियों को अपने सिर माथे पर चढ़ाना चाहिए कि हिन्‍दी ने कभी उनका गौरव कम नहीं होने दिया है तो वे भी हिन्‍दी के गौरव को देश ही नहीं विदेशो में भी बढ़ाएं। हिन्‍दी साहित्‍य को वह समृद्धि प्रदान करें कि लगातार हिन्‍दी और हिन्‍दुस्‍तान का गौरव बढ़ता रहे। बच्‍चों को डैड मॉम की संस्‍कृति से दूर रखे तथा उन्‍हें लगातार देश के गौरव की भाषा हिन्‍दी को अपनाने का संस्‍कार दें। हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था में भी अब मातृभाषा को बढ़ावा दिए जाने की पैरवी की गई है तथा प्राथमिक स्‍तर पर बच्‍चों को मातृभाषा में अध्‍यापन के महत्‍व को समझाया गया है। यह एक अच्‍छी पहल है तथा इसी के साथ हिन्‍दी को लगतार आगे बढ़ाने तथा भाषा के समृद्ध साहित्‍य को पढ़ने के लिए पीढ़ियों को तैयार करें। 

तो बच सकेगा हिंदी का मजबूत आधार

इतना सब पा लेने के बाद भी हमने हिन्‍दी के क्षेत्र में बहुत कुछ खोया है, इसमें नवीन तकनीकों की भूमिका रही है, लेकिन फिर भी हिन्‍दी के चाहने वालों ने आज इतना कर दिखाया है कि मोबाईल हो या कंप्‍युटर जो सिर्फ अंग्रेजी भाषा की शब्‍दावली को समझते हैं, हिन्‍दी के विकल्‍प को चुनने की सुविधा देने लगे हैं। समय सदैव परिवर्तनशील है तथा समय के साथ जिसने बदलाव नहीं किया वह क्षीण हो जाता है। इसी कारण समय के महत्‍व को समझते हुए हमें नवीन सोंच की आवश्‍यकता है। हमने शुन्‍य का आविष्‍कार का ढिंढोरा पीटा और उसी शून्‍य से तकनीक के जानकारों ने कंप्‍युटर की भाषा को बना दिया। हम सिर्फ शून्‍य के आविष्‍कार पर गौरवान्वित होते रहे और तकनीक में पिछड़ गए। हमें हमारी मातृभाषा के साथ ही नई तकनीकों को भी हिन्‍दी की तरह सर्वग्राह्य बनाना पडेगा तथा नए विचारों, नए लेखको, नई विधाओं को मौका प्रदान करना होगा। क्‍योंकि कहा गया है तेज अंधड़ मे वे वृक्ष गिरते हैं, जिनका तना मजबूत ठूंठ होता है, लेकिन पौधे हमेशा झुक कर बच जाते हैं। हिन्‍दी को अपनी बपौती समझने वालों से परे नए संकल्‍पों को लेकर आगे बढ़ना होगा तभी हिन्‍दी का मजबूत आधार बच सकेगा।

⚫ संजय भट्ट

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