संसार को सीख : कर्त्तव्य को दे प्राथमिकता, दिखावे को नहीं, प्रधानमंत्री ने किया मां का अंतिम संस्कार और निकल गए कर्त्तव्य पथ की ओर…
⚫ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीख ने देश दुनिया को सोचने, समझने और विचार करने के लिए विवश कर दिया है कि आखिर आज तक ऐसा उन्होंने क्यों नहीं किया। एक ही संदेश में जहां कर्त्तव्य परायणता का सबक सिखाया, वही शासकीय मिशनरी का दुरुपयोग होने से बचाया। देश का अरबों रुपया स्वाहा होने से बचाया। मितव्ययिता का पाठ पढ़ाया। पर्यावरण को बचाया। दिखावा संस्कृति से बचाया। देश के ऐसे प्रधानमंत्री की कर्त्तव्य परायणता शिरोधार्य है। ⚫
⚫ हेमंत भट्ट
जब देश के लोग बिस्तर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे, कुछ जाग गए थे, कुछ जागने को तैयार थे। टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर खबर फैली कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां का निधन हो गया है। देश के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री सहित भाजपाई अंतिम संस्कार में जाने का विचार कर रहे थे, तभी भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी मां का सादगी के साथ अंतिम संस्कार कर दिया। प्रधानमंत्री का कहना था किसी को भी आने की आवश्यकता नहीं। सभी अपना कर्त्तव्य करते रहे। यह निहायत ही निजी कार्यक्रम है। आपकी संवेदना मुझे मिल गई। मां के अंतिम संस्कार के पश्चात प्रधानमंत्री मोदी देश के कर्तव्य के लिए निकल गए।
निजी जीवन की क्षति निजी होती है, इसमें जरूरत नहीं दिखावे की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश दुनिया को एक और सीख दे दी की जीवन की निजी क्षति निजी होती है, उसमें बाहरी दिखावे की जरूरत नहीं होती है। दिखावे की बजाय अपना कार्य करते रहें, वही बेहतर है। वही सच्ची श्रद्धांजलि है, वही सच्ची संवेदना है, वही अपनत्व है, अपने देश के प्रधानमंत्री के लिए।
कर्त्तव्य पथ पर हमेशा आगे बढ़ते रहें, बढ़ते रहें, बढ़ते रहें…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन सभी को सबक सिखा दिया है कि कार्य को महत्व देना ही जरूरी है। कार्य टालना अच्छी प्रवृत्ति नहीं है, उसे उसे सुधारना जरूरी है। आपके कार्य करने से ही आम जनता का भला होगा। उनकी दिक्कतें दूर होगी। उनकी समस्या का समाधान होगा। उनकी सुविधाओं के लिए विस्तार होगा, जिस कार्य के लिए आप को नियुक्त किया है। वह कार्य आप बिना किसी बाधा के, बिना किसी बहाने के पूरा करें। टालने की स्थिति ठीक नहीं है कितनी भी विकट परिस्थिति जीवन में क्यों ना आ जाए कर्त्तव्य पथ पर हमेशा आगे बढ़ते रहें। बढ़ते रहें। बढ़ते रहें।
किया अंतिम संस्कार और निकल गए कर्त्तव्य पथ की ओर
जीवन में मां का साया सर से उठना कोई छोटी बात नहीं है लेकिन उन्हीं मां का सिद्धांत भी है कि कर्त्तव्य सबसे जरूरी है। सभी कर्त्तव्य का निर्वहन करें उसके पीछे शोक या दुख न मनाएं प्रधानमंत्री ने भी वही किया, जो मां ने कहा था। बेटे ने अंतिम दर्शन किए। कंधा दिया। अंतिम संस्कार किया और मुक्तिधाम से ही निकल पड़े अपने कर्तव्य पथ की ओर ताकि वे देशवासियों को सुविधाओं की सौगात दे सके।
संदेश एक, फायदे अनेक
यदि प्रधानमंत्री सभी को यह संदेश नहीं देते कि आप वहीं पर रहे, जहां पर हैं। अपने कर्त्तव्य का पालन करें तो आज देश के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री मंत्री, कैबिनेट मंत्री, पार्टी पदाधिकारी सहित हजारों लोग केवल और केवल यह दिखाने के लिए अंतिम संस्कार में मौजूद होते कि हम प्रधानमंत्री के साथ हैं। लेकिन देश के प्रधानमंत्री ने साफ शब्दों में मना कर दिया कि आने की आवश्यकता नहीं है। आप की संवेदनाएं मुझे मिल रही है। परिवार का निजी कार्यक्रम है। यदि प्रधानमंत्री जी ऐसा नहीं कहते तो केवल और केवल दिखावे में हो जाता अरबों रुपए स्वाहा और काम प्रभावित होते सो अलग। पर्यावरण को नुकसान होता वह अलग ही। वाकई में हमारे देश के प्रधानमंत्री ने संसार को सबक सिखाया है कि कर्त्तव्य परायणता से बढ़कर और कुछ नहीं है। परिवार में हुई निजी क्षति से, समाज और देश को सुविधा से वंचित नहीं किया जा सकता। अपने कर्त्तव्य से दूरी नहीं बना सकते। जब-जब, जो जो करना है तब-तब, वह वह अवश्य करना चाहिए। बहानेबाजी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। देश के ऐसे प्रधानमंत्री की कर्त्तव्य परायणता शिरोधार्य है।