गणतंत्र दिवस में भी लापरवाह नजर आए जिम्मेदार : एंबुलेंस बजा रही थी सायरन, महिलाएं हटने का नाम नहीं ले रही थी, आम और खास बजा रहे थे तालियां
⚫ 1 मिनट की झांकी दिखाने के लिए लाखों खर्च, पुरस्कार मिलते ही ऑफिस में जमा
⚫ पीटी प्राइवेट स्कूल की हो तो पुरस्कार, सरकारी हो तो तिरस्कार
⚫ फटा हुआ था साउंड सिस्टम
⚫ पुरस्कार बटे रेवड़ियों की तरह
⚫ पहले लगता था मजमा शहरवासियों का
हरमुद्दा
रतलाम, 26 जनवरी। एक जमाना था राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर शहरवासी का मजमा नेहरू स्टेडियम में लगता था मगर राष्ट्रीय पर्व में भी भ्रष्टाचार हावी हो रहा है। ऐसे में जिम्मेदारों की लापरवाही साफ नजर आ रही है। इन दिनों जो शहर में हो रहा है वही झांकी में भी दिखाया गया, एंबुलेंस का सायरन बज रहा था और आगे महिलाएं चले जा रही थी और अतिथि तालियां बजा रहे थे। शहर के चौराहों की हालत भी ऐसी ही है लेफ्ट साइड जाने के लिए जगह ही नहीं मिल रही है जबकि यातायात की सुगमता के लिए आधा करोड़ से ज्यादा खर्च करने के बाद सिग्नल लगाए गए हैं। मगर सुविधा दुविधा ही बन रही है।
राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस का मुख्य आयोजन शहर के नेहरू स्टेडियम में आयोजित किया गया। प्रदेश के नवकरणीय ऊर्जा मंत्री हरदीप सिंह डंग ध्वजारोहण के लिए मौजूद थे। आयोजन में शहर विधायक चैतन्य काश्यप सहित अन्य मौजूद थे। आयोजन में मौजूद लोगों को फटे हुए साउंड सिस्टम में पता ही नहीं चला कि अतिथि ने ध्वजारोहण कर दिया। वह जब परेड निरीक्षण के लिए निकले, तब पता चला। ऐसा घटिया साउंड सिस्टम था। स्पीकर से आवाज फट रही थी। जबकि संचालन करने वाले वही थे आशीष दशोत्तर और डॉक्टर पूर्णिमा शर्मा। लेकिन उनकी आवाज आस-पास भी प्रसारित नहीं हो रही थी।
याने की झांकी की बदौलत झांकी बाजी
जब झांकी की शुरुआत की गई तो महिला एवं बाल विकास विभाग, उद्यानिकी विभाग, कृषि विभाग, जिला पंचायत सहित अन्य विभाग में झांकियां बनाई, ताकि मंत्री जी झांकी देख कर खुश हो जाए और पुरस्कृत करें। हुआ भी यही। बिना पानी के मछली पालन की सीख देने वाली जिला पंचायत की झांकी अव्वल रही। अपनी झांकी को अपने ही लोगों ने नंबर दे दिए। पुरस्कृत कर दिया। अपने ही हाथों से अपनी पीठ थपथपा दी गई। जबकि देखा जाए तो यह झांकियां पूरे शहर में निकलनी चाहिए थी, ताकि योजनाएं आमजन को पता चले। जो लोग आयोजन में उपस्थित नहीं हो पाए हैं वे झांकी देख कर भी शासकीय योजनाओं को समझ जाते थे। लेकिन यह परंपरा लापरवाह जिम्मेदारों ने काफी पहले ही छोड़ दी है। उसी परंपरा का निर्वहन सालों से बदस्तूर जारी है। बस अब यही रह गया है कि 1 मिनट की झांकी दिखाओ लाखों रुपए खर्च करो और ₹10 का प्रमाण पत्र ले लो। बाकी झांकी प्रभारी और बिल पास करने वाले मजे में। प्रमाण पत्र के साथ फोटो खिंचवा लो ताकि तरक्की में काम आए। याने की झांकी की बदौलत झांकी बाजी करने में काम आए।
…तो भी गर्व की अनुभूति जिम्मेदारों को
स्वास्थ्य विभाग की झांकी में जब एंबुलेंस सायरन बजाकर जा रही थी, तब आगे महिलाएं चल रही थी उन्हें कोई असर नहीं हो रहा था कि उन्हें हटना है। हुबहू झांकी में वही दिखाया गया है, जो शहर के चौराहों और सड़कों पर हो रहा है जिम्मेदार इसमें भी गर्व की अनुभूति कर रहे थे।
मन में आए तो निजी पुरस्कार, बाकी शासकीय को तिरस्कार
कई बार देखने में आया कि गणतंत्र दिवस के आयोजन में जब कोई निजी विद्यालय पीटी का प्रदर्शन करता है तो उसे प्रथम पुरस्कार से नवाजा जाता है। यहां तक कि उसे विशेष श्रेणी के रूप में रखा जाता रहा है। लेकिन जब कोई शासकीय स्कूल या केंद्रीय स्कूल पीटी का प्रदर्शन करता है तो उसे केवल और केवल सांत्वना पुरस्कार ही मिलता है। जबकि पीटी करना भी आसान काम नहीं है। गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर ऐसे भेदभाव करना जिम्मेदारों को शोभा नहीं देता है। इससे लगता है कि वह समाज विशेष के स्कूल को तवज्जो देते हैं। खास बात यह है कि इस मामले में विभाग के प्रमुख भी कुछ नहीं बोलते। शायद वे यह सोचते होंगे कि यदि कुछ बोलेंगे तो बड़े साहब बिना वजह कलमैं पढ़ना शुरू कर देंगे।
रेवड़ी की तरह बटे पुरस्कार
वैसे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर केवल ऐसे लोगों को भी पुरस्कृत किया जाता रहा है जिनसे लोग सीखते हैं। अनुकरणीय कार्य करते हैं लेकिन अब कुछ ऐसा नहीं हो रहा है पुरस्कार रेवड़ियों की तरह बटने लगे हैं। पुरस्कार और श्रेष्ठता धरी रह गई। गुरुवार को आयोजित गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में करीब 200 लोगों को पुरस्कृत किया गया। खास बात यह रही नवाचार करते हुए पहली बार संचालक आशीष दशोत्तर और डॉ. पूर्णिमा शर्मा को भी सम्मानित किया गया।