अंतरराष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी : भाषा से बचा हुआ है देश, रिश्ते, विश्व, वसंत, भाषा को हम नहीं, भाषाएं हमें बचाती
⚫ डॉ. पुष्पिता अवस्थी ने कहा
⚫ खाजा बंदानवाज विश्वविद्यालय, कलबुर्गी में हुई अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी
हरमुद्दा
हैदराबाद 11 फरवरी। भाषा को हम नहीं, भाषाएं हमें बचाती हैं। इसलिए भाषा का महत्व अधिक है। भाषा से देश, रिश्ते, विश्व, वसंत बचा हुआ है जैसे माता-पिता हमें बचाते हैं। हिंदी भाषा को भले ही राष्ट्र्भाषा रूप में घोषित न किया गया हो किंतु अघोषित रूप में भी हिंदी अपना कार्य करती है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा तथा मातृभाषा को महत्व दिया गया है।
यह विचार डॉ. पुष्पिता अवस्थी ने व्यक्त किए। डॉक्टर अवस्थी खाजा बंदानवाज विश्वविद्यालय, कलबुर्गी में अंतरराष्ट्रीय बहु-विषयक संगोष्ठी में मौजूद थी। संगोष्ठी आयोजन की डॉ. मिलन बिश्नोई ने हरमुद्दा को बताया कि हिंदी विभाग में नई शिक्षा नीति में हिंदी तथा अनुवाद पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
एक शिक्षक के पास संवेदनशील तथा रोमांचक भाषा का होना आवश्यक
साहित्यकार, बहुभाषाविद, चिंतक अध्यक्ष यूनिवर्स फाउंडेशन, नेदरलैंडस की डॉ. अवस्थी ने कहा कि मातृभाषा व्यक्तित्व का निर्माण करती है। बच्चों के मन में पहले से ही मातृभाषा के प्रति सम्मान तथा आत्मीयता हो इसका दायित्व शिक्षक पर होता है। एक शिक्षक के पास संवेदनशील तथा रोमांचक भाषा का होना आवश्यक होता है। पाठ्यक्रम समतामूलक तथा मानक निर्धारण करने वाला हो।
भाषा जीविका के लिए नहीं, व्यक्तित्व विकास के लिए जरूरी
हमारी भारतीय संस्कृति सर्वोच्च है । संस्कृति, सम्वेषण, कला, नृत्य,संगीत, ज्ञान- विज्ञान आदि को समझने और समझाने के लिए एक भाषा का होना अत्यंत आवश्यक है। भाषा जीविका के लिए नहीं व्यक्तित्व विकास के लिए जरूरी है। मातृभाषा में लिखी कृति जीवंत और संवेदनशील होती है । पुष्पिता जी ने कहा कि भारत विश्व में एक ऐसा देश है जिनमें अनुवाद के माध्यम से रोजगार हासिल किया जा सकता है । जिसके लिए हमें छात्रों को सचेत करना चाहिए। अनुवाद के लिए कोचिंग सेंटर खोलने चाहिए। जिसमें भाषा की शुध्दता पर ध्यान देना चाहिए।
इनका मिला सहयोग
संगोष्ठी के संयोजक डॉ. निशात आरिफ हुसैनी उपस्थित थे । व्यवस्थापक के रूप में डॉ.अब्दुल नुजीब, डॉ. सयैद अबरार, डॉ.शाजिया फरहीन थे। तकनीकी निर्देशन का कार्य डॉ. तिलक तथा मनीषा ने किया। संचालन हिंदी विभागाध्यक्ष तथा समन्वयक डॉ. देशमुख आफशाँ बेगम ने किया।